* शौक बना जुनून
– कहते हैं न ईमानदार प्रयास और जुनून हो, तो मंजिल कहां दूर. ऐसे में समस्याएं बाधक नहीं, साधक बनती हैं. संसाधनों की कमी के बीच से भी व्यक्ति रास्ता निकाल लेता है. कुछ ऐसा ही मिजाज है जाग्रत चटर्जी का. ऐतिहासिक स्मृतियों की तारीखें व दिन जानने में जहां लोग घंटों जूझते रहते हैं, वहीं चटर्जी जी का कैलेंडर सेकेंडों में इसे सुलझा देता है. –
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के 33 वर्षीय जाग्रत चटर्जी के लिए तारीखें व दिनों को ढ़ूंढ़ना एक जुनून हैं. उन्हें इस काम में मजा आता है. गहरे सीलन भरे कमरे में बैठे चटर्जी के सामने रखे कैलेंडर में ऐतिहासिक दिन व तिथियों को आसानी से देखा जा सकता है. उदाहरण के लिए लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम की पहली लड़ाई की तारीख क्या है. पर, उन्हें इस बात की जानकारी नहीं होगी कि वह दिन कौन-सा था. चटर्जी के कैलेंडर से इस बात का पता लगाया जा सकता है.
* विचारों ने दिखाया रास्ता : इस बाबत चटर्जी बताते हैं कि मैंने स्नातक में इतिहास पढ़ा. पर तारीखों और दिन को ढ़ूंढ़ने से प्यार कक्षा 12 वीं में ही हो गया था. स्नातक के दौरान ही देखा कि लोगों में हमेशा यह बात जानने की उत्सुकता रहती है कि वह सप्ताह का कौन-सा दिन था, जब भारत आजाद हुआ या फिर जिस दिन इंदिरा गांधी की हत्या हुई वह कौन-सा दिन था. तब से ही मैंने तारीखों व दिनों को ट्रेस करना आरंभ किया. जल्द ही लगा कि मुझे कैलेंडर बनाना चाहिए. आज मैं बिना किसी कंप्यूटर की मदद के किसी भी तारीख के दिन की जानकारी दे सकता हूं. चाहे वह एक लाख वर्ष पीछे या एक लाख वर्ष आगे की तारीख ही क्यों न हो.
* कैसे की शुरुआत : अंकों के साथ खेलते हुए चटर्जी ने अपना पहला कैलेंडर वर्ष 2000 में प्रकाशित किया. उन्होंने यह कैलेंडर 10,080 वर्षो का बनाया, जिसकी शुरुआत ईसा पूर्व पहली सदी से होती है. चटर्जी के अनुसार पहले कैंलेंडर को बनाने में 18 महीनों का समय लगा. पर, चटर्जी खुद भी इससे पूरी तरह संतुष्ट नहीं थे. जल्द ही उन्होंने दूसरा कैलेंडर बनाना आरंभ किया. यह कैलेंडर 4,27,000 वर्षो के दिन व तारीख को बता सकता था. 2002 में प्रकाशित इस कैलेंडर को बनाने में 15 महीनों का समय लगा.
* मुसीबतें भी हिला नहीं पायी : चटर्जी जब 20 वर्ष के भी नहीं हुए थे, तभी उनके पिता का देहांत हो गया. उनके पिता (ज्योत्सनामय चटर्जी) पुलिस विभाग में वायरलेस ऑपरेटर थे. यह समय उनके लिए मुसीबतों भरा था. पर, व्यक्तिगत क्षति भी उनके पढ़ाई के जुनून को रोक नहीं पायी. उन्होंने 2003 में लखनऊ के विद्यांत हिंदू पीजी कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली. दिलचस्प बात है कि चटर्जी ने कैलेंडरों को कई गलतियों और परीक्षणों से गुजारते हुए बनाया. पर उन्होंने कभी भी इसके लिए न तो किसी तरह का प्रशिक्षण लिया और न ही किसी उपकरण का. पिता की मृत्यु के बाद जब नौकरी ढ़ूंढ़ने में असफल हुए तो उन्होंने दसवीं के विद्यार्थियों को टय़ूशन पढ़ाना आरंभ किया.
* नया सृजन : चटर्जी का नया सृजन 1,00,800 वर्षों का कैलेंडर बनाना है, जो 1,008 सदियों के बराबर होगा. इस संदर्भ में वह कहते हैं कि इस तुलनात्मक कैंलेंडर को बनाने में 540 दस्तावेजों सहित लगभग 10 वर्षों का समय लगेगा. नये कैलेंडर का अंतिम स्वरूप 12 अप्रैल 2012 को बनाया गया. कैलेंडर की विशेषता है कि इसमें सदियों और वर्षों के लिए अलग लाइन होगी. वहीं अलग-अलग बॉक्स की मदद से दिन व तारीख की जानकारी ली जा सकती है. फिलहाल चटर्जी 25 लाख वर्षों का कैलेंडर बनाने के बारे सोच रहे हैं.
* विश्व ख्याति की चाहत : वर्तमान में उनकी इच्छा है कि उनके प्रयास को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में स्थान मिले. इसके लिये उन्होंने प्रकाशक को पत्र भी लिखा है. वह बताते हैं कि प्रकाशक ने मेरे काम के विषय में मेल भेजने के लिए कहा है. फिलहाल मैं उनके उत्तर की प्रतीक्षा कर रहा हूं. उनके इस काम को हिंदी के कुछ सामान्य अध्ययन की किताबों में पाया जा सकता है. उन्होंने लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड से भी संपर्क किया है.
प्रस्तुति : राहुल गुरु
(इनपुट: द वीक से साभार)