दिल्ली में चारों ओर दौड़ती मेट्रो सभी को प्रभावित करती है. पर क्या आपने कभी सोचा है कि इसकी शुरुआत करनेवाले इ श्रीधरन खुद अपनी जिंदगी को इतना आगे कैसे लाये? मूल्यों से भरपूर उनके सफर पर एक नजर..
इ श्रीधरन, दिल्ली मेट्रो के पूर्व चेयरमैन
मेट्रोमैन के नाम से जाने जानेवाले इ श्रीधरन ने दिल्ली मेट्रो को दिल्ली की अधिकांश जगहों तक दौड़ाया. आज इसे दिल्ली की लाइफलाइन समझा जाने लगा है. श्रीधरन से जब भी बात की जाती है, तो वे कभी भी अपनी सफलता का सेहरा खुद पर न रख कर अपनी टीम पर रखते हैं. वे कहते हैं कि मैं भाग्यशाली हूं कि मैंने सही लोगों को नौकरी के लिए चुना. जब भी उनसे पूछा जाता है कि आप अच्छे लोगों का चुनाव कैसे करते हैं, तो उनका जवाब होता है कि मेरे अंदर अच्छे लोगों को चुनने की कोई अलग क्षमता नहीं है. मैंने हमेशा पाया है कि अगर आप अच्छी नियति और किसी अच्छी चीज के लिए काम कर रहे हैं, तो आपको अच्छे ही लोग मिलते हैं. किसी भी काम को करने के लिए बस फोकस और जुनून का होना जरूरी होता है.
चुनौतियों को करें स्वीकार
जब श्रीधरन दक्षिणी रेलवे में काम करते थे, तब उन्हें एक प्रोजेक्ट दिया गया था. उसमें अंगरेजों के समय के बने हुए एक पुल को दोबारा से अलग तरह के उपयोग के लिए बनाना था. उस समय वे 31 वर्ष के थे. उन्होंने इस चुनौती को स्वीकार किया. उन्होंने एक महीने की समय-सीमा बढ़ाने की बात कही. उस पुल को उन्होंने 46 दिनों में काम करने लायक बनाया. इसके लिए वे सिर्फ कुछ साधारण मूल्यों को श्रेय देते हैं. उनका कहना है कि अनुशासन, समय की पाबंदी, ईमानदारी और काम करने के नये तरीकों के होने से कोई भी काम पूरा किया जा सकता है.
डेडलाइन बनाना जरूरी
श्रीधरन कहते हैं कि जब कोई काम प्राइवेट संस्थानों को दिया जाता है, तो उसके समय पर पूरे होने की संभावना ज्यादा होती है, क्योंकि वहां सिर्फ एक बॉस होता है. जबकि सरकारी कामकाज में कई बॉस होते हैं और काम में मदद करानेवाले लोग कम. इसलिए बॉस का कहा पूरा होना मुश्किल होता है. फिर भी काम होने की संभावना खत्म नहीं होती. डेडलाइन तय कर उसे किया जा सकता है. मुङो लगता है कि स्लिम ऑर्गनाइजेशन काम के लिहाज से ज्यादा बेहतर होती हैं. डेडलाइंस पर जोर देने का ही नतीजा था कि शुरुआती कैरियर में उनके 20 ट्रांसफर किये गये.
धार्मिकता का अर्थ समझना जरूरी
इ श्रीधरन कहते हैं कि मैं धार्मिक इनसान हूं, पर धार्मिकता का अर्थ सिर्फ मंदिर जाने से नहीं होता. मेरे लिए धर्म का मतलब सदाचार से है.
काम की लत होना भी सही नहीं
इ श्रीधरन के अनुसार काम के प्रति जिम्मेदार होना सही है, पर अत्यधिक काम करना सही नहीं है. मैं अपने काम के प्रति समर्पित रहता हूं, पर मुझमें हमेशा काम करने की लत नहीं है. उनके साथ काम करनेवाले लोगों का भी कहना है कि वे देर तक ऑफिस में बैठने के पक्षधर नहीं हैं. अगर दिया गया काम खत्म हो गया हो, तो वे अपने साथ काम करनेवाले लोगों को देर तक बैठने के लिए नहीं कहते थे. साथ ही वे दोपहर में थोड़ी देर की नींद भी लिया करते थे.