कोलकाता के नोइहाटी स्थित लालन अकादमी की सचिव व गायिका तापसी राय चौधरी पहली बार जमशेदपुर शहर आयी हैं. बंगाल क्लब द्वारा आयोजित लालन उत्सव में वह शरीक हो रही हैं प्रभात खबर से खास बातचीत में उन्होंने संगीत से जुड़े अपने अनुभव बांटे.
लालन अकादमी का उद्देश्य क्या है?
पर्व-त्योहार या किसी खास अवसर पर पहले लोक संगीत हर गांव-घर में गूंजा करता था लेकिन आधुनिक संगीत के चकाचौंध में आज लोक संगीत अपना अस्तित्व खो रहा है. लालन अकादमी के माध्यम से पिछले 12 वर्षो से लोक गीत को लोगों के बीच ले जाकर फिर से इसे जीवंत रूप देने की कोशिश कर रही हूं. अब तक पश्चिम बंगाल के सभी जिलों में लालन अकादमी द्वारा लोक संगीत प्रस्तुत किया जा चुका है.
संगीत की शिक्षा की शुरुआत कैसे हुई.
संगीत की पहली शिक्षा तो मां से ही मिली. बाद में लोक संगीत सीखा. इसकी मिठास को जनजन तक पहुंचाने के लिए लालन अकादमी से जुड़ी. अकादमी में सिर्फ संगीत की शिक्षा ही नहीं दी जाती, बल्कि यह संगीत की पुस्तकों का संग्रहालय भी है. यहां ऑडियो स्टूडियो भी है.
वर्क शॉप में आप ने लोक संगीत की शिक्षा दी. आगे कोई और भी सीखना चाहे तो अकादमी से कैसे जुड़े.
पुणे में लोक संगीत कार्यक्रम काफी सफल रहा. वहां अब संगीत की कक्षा शुरू की गयी है. जमशेदपुर के संगीत प्रेमियों व कलाकारों को लोक संगीत की सीखने की इच्छा होने पर यहां भी क्लास प्रारंभ कर सकती हैं.
पहली बार आप जमशेदपुरशहर आयी हैं. शहर के श्रोताओं को लोक संगीत से कैसे जोड़ेंगी?
21 सितंबर को रवींद्र भवन में आयोजित लालन उत्सव में दाजिर्लिंग का लोक संगीत व बांकुड़ा का बाउल संगीत सुनने को मिलेगा. साथ ही कई जिलों के लोक संगीत की मधुरता से श्रोता रू-ब-रू होंगे. लोक संगीत गांव की मिट्टी से जुड़ा संगीत है, इससे लोग खुद ब खुद जुड़ जाते हैं. हर साल अकदामी द्वारा एक विषय के आधार पर संगीत की रचना की जाती है. इस वर्ष जारि एवं आगमनी गीत का विषय रखा गया है.