मित्रो,
राज्य में पंचायती राज विभाग द्वारा दो तरह की योजनाएं चलायी जा रही हैं. पहली योजनाएं केंद्र प्रायोजित हैं. इसमें पिछड़ा क्षेत्र अनुदान कोष योजना यानी बीआरजीएफ तथा समेकित कार्य योजना शामिल हैं. इन दोनों योजनाओं पर केंद्र सरकार से राज्य को करीब नौ सौ करोड़ रुपये मिलते हैं. दूसरी योजनाएं भी केंद्र प्रायोजित हैं, जिनमें 25 प्रतिशत राज्य का भी हिस्सा होता है यानी 25 फीसदी राशि राज्य सरकार खर्च करती है. इसमें राष्ट्रीय ग्राम स्वराज योजना (आरजीएसवाइ) आती है. तीसरी श्रेणी की योजनाएं राज्य संपोषित हैं.
इसमें गैर पिछड़ा क्षेत्र अनुदान कोष योजना एवं गैर समेकित कार्य योजना वाले जिलों को अनुदान योजना शामिल है. राज्य के सात जिले दुमका, देवघर, जामताड़ा, साहबगंज, गोड्डा एवं धनबाद इसमें लाभान्वित हैं. साथ पूर्वी सिंहभूम को भी इस योजना का लाभ मिलता है. राज्य संपोषित अन्य योजनाओं में जिला परिषदों को पंचायत भवन निर्माण एवं आय स्नेत वृद्धि हेतु परिसंपत्तियों के निर्माण के अनुदान, क्षमता विकास के लिए प्रशिक्षण संस्थानों के सुदृढ़ीकरण, कार्यालयों के सुदृढ़ीकरण, परामर्श आदि की योजनाएं शामिल हैं. इन सभी राज्य संपोषित योजनाओं पर सरकार का करीब पौने दस-दस सौ करोड़ रुपये खर्च करती है. यानी केंद्र और राज्य संपोषित सभी योजनाओं को जोड़ दें, तो 19-20 सौ करोड़ रुपये राज्य में पंचायती राज विभाग खर्च करता है.
इसका लक्ष्य तीनों स्तर की पंचायती संस्थानों को मजबूत करना, पंचायतों के आधारभूत संसाधन को विकसित करना तथा पिछड़े गांवों को विकास की मुख्यधारा से जोड़ना है. इन योजनाओं को कितना लाभ मिल रहा है, यह आपको जानना चाहिए. आप पंचायत जनप्रतिनिधि हों या आम आदमी, इस खर्च से सभी का सरोकार है. इसलिए आप सूचना का अधिकार का इस्तेमाल कर जानकारी सार्वजनिक कर सकते हैं. सच तो यह है कि अब भी ग्रास रूट पर लोगों को इन योजनाओं और उस पर होने वाले खर्च की जानकारी नहीं हो पाती है. कहने को आम आदमी का शासन है, लेकिन पंचायती राज संस्थानों पर अब भी नौकरशाहों का कब्जा है. ये नौकरशाह अपने काम-काज और खास कर वित्तीय मामलों में पारदर्शिता के पक्षधर नहीं हैं. कई मुखिया ऐसे हैं, जो यह नहीं चाहते कि गांव के आम आदमी को इन मामलों की ज्यादा जानकारी हो. इसलिए वे वार्ड सदस्यों से भी सूचना छुपाते हैं. सूचना छुपाने के पीछे एक ही मकसद होता है भ्रष्टाचार. आप सजग नागरिक हैं, तो इसके खिलाफ आवाज उठा सकते हैं.
गैर पिछड़ा क्षेत्र अनुदान कोष एवं गैर समेकित कार्य योजना
झारखंड के सात जिले गैर समेकित कार्य योजना वाले जिले हैं. यानी इन जिलों में भारत सरकार द्वारा संचालित समेकित कार्य योजनाएं नहीं चल रही हैं. इसलिए इन जिलों में सामाजिक-आर्थिक विकास की गतिविधियों को चलाने के लिए राज्य सरकार अपने कोष से राशि देती है. यह राशि प्रत्येक जिले के लिए करीब 10 करोड़ की होती है. ये जिले हैं दुमका, देवघर, जामताड़ा, साहबगंज, गोड्डा एवं धनबाद जिला शामिल हैं. इनके अलावा पूर्वी सिंहभूम गैर पिछड़ा क्षेत्र अनुदान कोष जिला है. इस जिले के पंचायतों के विकास के लिए भी राज्य सरकार धन उपलब्ध कराती है. यह राशि लगभग 15 करोड़ है.
पंचायत भवनों का निर्माण
राज्य की सभी पंचायतों में पंचायत भवनों के निर्माण के लिए सरकार ने राशि उपलब्ध करायी. सरकार के दावे के मुताबिक ज्यादातर पंचायत भवनों का निर्माण कार्य या तो करा लिया गया है या फिर निर्माण कार्य प्रगति पर है. आप इस मद की राशि के उपयोग, भवनों की गुणवत्ता आदि की पड़ताल कर सकते हैं. आप सूचनाधिकार से इस मद में खर्च हुए एक-एक पैसे का हिसाब मांग सकते हैं. मजदूरों एवं अन्य मद में हुए वास्तविक भुगतान की भी आप इस तरह से जांच कर सकते हैं. निर्माण कार्य में इस्तेमाल किये की गयी सामग्री की गुणवत्ता की जांच के लिए आप नमूने की भी मांग कर सकते हैं. अगर कहीं पंचायत भवन का निर्माण नहीं हो सकता है, तो आप आरटीआइ से उसके बारे में भी जानकारी मांग सकते हैं.
आय स्नेत की वृद्धि के लिए परिसंपत्ति निर्माण अनुदान
राज्य के सभी जिला परिषदों को आय के स्नेत बढ़ाने के लिए परिसंपत्ति निर्माण के लिए विशेष अनुदान दिये गये. इसके तहत करीब 7.50 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है. जिला परिषदों को इन पैसों से ऐसी परिसंपत्तियां तैयार करनी थी, जिससे उसे नियमित रूप से आय हो और वे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन सकें. इस राशि के उपयोग तथा उससे हुए लाभ के बारे में आप जानकारी प्राप्त कर सकते हैं.
क्षमता विकास योजना
पंचायती राज जनप्रतिनिधियों को प्रशिक्षित करने के लिए पंचायती राज प्रशिक्षण संस्थान संचालित हैं. इन संस्थानों को सुदृढ़ करने कराने के लिए सरकार उन पर खर्च कर रही है. इन संस्थानों को कंप्यूटर, प्रशिक्षण सामग्री और उपस्कर आदि की खरीद के लिए सरकार राशि देती है. आप उन संस्थानों को मिले फंड एवं खर्च का हिसाब मांग सकते हैं.
क्षेत्रीय कार्यालयों के सुदृढ़ीकरण की योजना
पंचायती राज व्यवस्था को लागू करने के लिए पंचायती राज विभाग के प्रमंडल और जिला स्तर पर कार्यालय हैं. जिला स्तर पर जिला पंचायती राज पदाधिकारी तथा प्रमंडल स्तर पर उप निदेशक पंचायती राज के कार्यालय हैं. इन कार्यालयों को भी सरकार ने सुदृढ़ करने की योजना बनायी और उन्हें कंप्यूटर, उपकरण, उपस्कर आदि की खरीद के लिए फंड उपलब्ध कराया. हर वर्ष इन कार्यालयों को कितने पैसे मिले और उनका उपयोग किस तरह किया गया, इसका हिसाब आप मांगें.
मुख्यालयों को सुदृढ़ करने पर भी हुए हैं खर्च
पंचायती राज व्यवस्था को प्रभावी रूप से संचालित करने के लिए पंचायत से राज्य मुख्यालय स्तर तक के कार्यालयों को सुदृढ़ करने पर खर्च किया गया है. यह खर्च हर साल हो भी रहा है. इसमें पंचायती राज निदेशालय भी शामिल है. आप इस खर्च का भी हिसाब मांग सकते हैं.
पंचायती राज विभाग का ढांचा
मुख्यालय स्तर
सचिव अपर सचिव उप सचिव
निदेशालय स्तर
निदेशक उप निदेशक सहायक निदेश
जिला स्तर
जिला पंचायती राज पदाधिकारी
उप विकास आयुक्त-सह-मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी, जिला परिषद
प्रखंड स्तर
प्रखंड विकास पदाधिकारी
प्रखंड पंचायत पदाधिकारी
पंचायती राज के नियम-कानून
पंचायती राज नियमावली
एसएफसी नियमावली
ग्राम रक्षादल (दलपति) नियमावली, 2002
ग्राम पंचायत सेवक नियमावली, 2002
ग्रामसभा नियमावली, 2003
यहां से मांगें सूचना
आप सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत पंचायती राज एवं एनआरइपी (विशेष प्रमंडल) से जुड़ी सूचनाएं इन अधिकारियों से मांग सकते हैं.
मुख्यालय स्तर
लोक सूचना पदाधिकारी : उप निदेशक, पंचायती राज विभाग,एफएफपी बिल्डिंग, धुर्वा रांची.
सहायक लोक सूचना पदाधिकारी : सहायक निदेशक, पंचायती राज विभाग, एफएफपी बिल्डिंग, धुर्वा रांची.
प्रथम अपीलीय पदाधिकारी : प्रधान सचिव, पंचायती राज विभाग, एफएफपी बिल्डिंग, धुर्वा रांची.
जिला स्तर
लोक सूचना पदाधिकारी : निदेशक, लेखा प्रशासन-सह- अपर मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी, जिला परिषद.
प्रथम अपीलीय पदाधिकारी : उप विकास आयुक्त-सह- मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी, जिला परिषद.
पंचायत स्तर
लोक सूचना पदाधिकारी : प्रखंड विकास पदाधिकारी.
प्रथम अपीलीय पदाधिकारी : अनुमंडल पदाधिकारी.
ग्राम स्तर
लोक सूचना पदाधिकारी : प्रखंड पंचायती राज पदाधिकारी.
प्रथम अपीलीय पदाधिकारी : प्रखंड विकास पदाधिकारी.