मित्रो, आप पंचायती राज संस्थाओं के प्रतिनिधि हैं. जनता ने आपको इसलिए चुना कि आप पंचायत, प्रखंड और जिला स्तर पर उनकी बुनियादी समस्याओं को दूर करने के लिए योजनाएं बनाएं, उनका कार्यान्वयन करें और उन पर नियंत्रण रखें. संविधान के 73वें संशोधन ने आपको वही ताकत दी है, जो अपने क्षेत्र में विधायकों और सांसदों को मिला हुआ है. निचले स्तर पर आप पंचायत सरकार हैं. पंचायत सरकारें सत्ता के लोकतांत्रिक ढांचे की बुनियाद हैं. यह बुनियाद बेहद कमजोर स्थिति में है. त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव और पंचायती राज संस्थानों के गठन के बाद भी लोकतांत्रिक शक्तियां अधिकार विहीन हैं. आप वार्ड सदस्य हों या मुखिया, प्रमुख हों या जिला परिषद के जनप्रतिनिधि, सभी उन अधिकारों को पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जिसकी गारंटी संविधान देता है. सरकार आपको वह अधिकार देने को तैयार नहीं है. अफसर अपना अधिकार छोड़ नहीं रहे हैं. ग्रामसभा की अनुशंसाओं को अधिकारी तरजीह नहीं दे रहे हैं. जाहिर है कि ऐसे हालत में आप अपनी लड़ाई को जारी रखेंगे. आपकी लड़ाई को ताकत देने के लिए सूचना का अधिकार आपके पास है. आप पंचायती राज संस्थानों के अधिकारों को बंधक बनाने के मामले में आरटीआइ से सरकार और ब्यूरोक्रेसी की मंशा को बेनकाब कर सकते हैं. जिला और प्रखंड स्तर पर जो अधिकारी ग्रामसभाओं की उपेक्षा कर मनमाने ढंग से काम कर रहे हैं, उन्हें आप ऐसा नहीं करने के लिए मजबूर भी कर सकते हैं. अनियमिताओं को उजागर कर उन्हें जेल भिजवा सकते हैं. हम इस अंक में पंचायती राज जनप्रतिनिधियों को आरटीआइ का इस्तेमाल करने के बारे में जानकारी दे रहे हैं.
आम आदमी को बनायें मॉडल
हमने इससे पहले (8 अप्रैल-14 अप्रैल 2013 के अंक में) वार्ड संदस्यों को सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 का इस्तेमाल कर अपने अधिकारों को हासिल करने की लड़ाई को धार बनाने की सलाह दी थी. आप जानते हैं कि यह अधिनियम देश के सभी नागरिकों को यह अधिकार देता है कि वह सरकार, सरकारी उपक्रम व संस्थान तथा सरकारी धन से या सरकारी नियम के तहत चलने वाले संगठनों से ठीक उसी तरह सूचना मांग सकता है, जिस तरह एक सांसद या विधायक उनसे जानकारी प्राप्त करता है. यानी सरकारी तंत्र से सूचना उजागर करने में आम आदमी को भी यह कानून सांसद और विधायक के बराबर अधिकार देता है. आम आदमी इस अधिकार का बड़ी संख्या में और बड़े स्तर पर उपयोग कर रहा है. सरकार की पोल खोल रहा है. अधिकारियों की नकेल कस रहा है. भ्रष्टाचारियों और बचौलियों में खलबली पैदा कर रहा है. यह काम स्कूली बच्चे भी कर रहे हैं. आम आदमी अपने अधिकार और अवसर पाने के लिए भी इस आरटीआइ का इस्तेमाल कर रहा है. आप भी इसके जरिये अपने अधिकार के लिए लड़ाई को असरदार बना सकते हैं.
आम आदमी क्या कर रहा
आम आदमी आरटीआइ का इस्तेमाल किस-किस तरह के कार्य के लिए कर रहा है, इस पर एक नजर डालिए, तो यह तस्वीर सामने आयेगी : पहला : रूका हुआ काम निकालना. दूसरा : सरकार को अपनी नीतियों में सुधार लाना, तीसरा : सरकार और अधिकारियों को अपनी जिम्मेवारियों को पूरा करने के लिए मजबूर करना. चौथा : भ्रष्टाचार, अनियमितता और घोटालों को उजागर करना. पांचवा : साक्ष्य जुटाना. छठा : भ्रष्टचारियों, घोटालेबाजों और अपने कर्तव्य के पालन में लापवाही बरतने वालों को जेल भेजवाना. सातवां : पारदर्शिता लाना.
अब खुद के बारे में सोचें
अब आप अपनी स्थिति पर नजर डालिए : आपका अधिकार आपको नहीं मिल रहा है. सरकार पंचायती राज अधिनियम के सभी प्रावधानों को लागू नहीं कर रही है. अधिकारी पंचायती राज संस्थानों को उनका अधिकार सौंपने की जिम्मेवारी पूरी नहीं कर रहे हैं. ग्रामसभाओं की अनुशंसाओं को नहीं माना जा रहा है. इंदिरा आवास हो या मनरेगा हर काम में भ्रष्टाचार चरम पर है. बिचौलिया, ठेकेदार और अधिकारी मिल कर सरकारी योजनाओं की राशि में बंदरबांट कर रहे हैं. कहीं किसी स्तर पर पारदर्शिता नहीं है. सोचिए, क्या इन मामलों में आरटीआइ का इस्तेमाल किया जा सकता है? अगर आप इन सबके खिलाफ आरटीआइ से साक्ष्य जुटा कर मामलों को उजागर करते हैं, तो क्या आपकी लड़ाई असरदार नहीं हो सकती है? जब इस पर विचार करेंगे, तो आपको पता चलेगा कि आरटीआइ आपके लिए भी है.
तो बन जाइए आम आदमी
एक सवाल है. क्या मुखिया या पंचायत जनप्रतिनिधि आरटीआइ का इस्तेमाल कर सकता है? जवाब होगा, नहीं. सूचना का अधिकार केवल नागरिकों को है, किसी पद या संस्था को नहीं. इसलिए पंचायतों के अधिकार क्षेत्र में अधिकारियों के हस्तक्षेप या कोई अन्य विषय, आप एक नागरिक की हैसियत से सूचना मांग सकते हैं. हां, पते के तौर पर आप अपने पदनाम का इस्तेमाल कर सकते हैं, जैसे ‘कालीचरण पहाड़िया, मुखिया, अमड़ापहाड़ी, थाना रामगढ़, जिला दुमका’. इसका मतलब हुआ कि सूचना कालीचरण पहाड़िया मांग रहे हैं, जो एक नागरिक हैं. ‘मुखिया, अमड़ापहाड़ी, थाना रामगढ़, जिला दुमका’ उनका पता है, जिस पर उनसे लोक सूचना पदाधिकारी पत्रचार कर सकता है. उसी प्रकार मुखिया संघ या वार्ड सदस्य संघ या उसके पदाधिकारी सूचना नहीं मांग सकता है. उस संघ या पद जुड़ा व्यक्ति नागरिक के रूप में व्यक्तिगत रूप से सूचना मांग सकता है. पते के रूप में अपने पद या संघ के नाम का इस्तेमाल कर सकता है.
कैसे करेंगे खुलासा
पंचायतों को जिन 29 विषयों के अधिकार की बात पंचायती राज अधिनियम में कही गयी है. राज्य सरकार उन कामों में हस्तक्षेप नहीं कर सकती है. अगर अधिकारी उन मामलों में हस्तक्षेप जारी रखते हैं, तो आप उनमें से प्रत्येक विषय से जुड़ी हुई सूचना अलग-अलग आरटीआइ आवेदन डाल कर मांगें. आप आरटीआइ के जरिये पंचायतों को अधिकार देने संबंधी सरकार के निर्णय, संचिका में अधिकारियों द्वारा दी गयी टिप्पणी, मंत्रियों के विमर्श आदि की प्रति की मांग करें. इससे सरकार की मंशा का आप खुलासा कर सकेंगे. आप संबंधित विभागों के सचिवालय और निदेशालय स्तर से यह पूछ सकते हैं कि पंचायती राज अधिनियम के तहत पंचायतों को दी गयी शक्तियों को हस्तांतरित करने लिए क्या कार्रवाई की गयी है? अगर पंचायतों को अधिकार नहीं दिया गया है, तो उन विषयों का कार्य निष्पादन कौन कर रहा है?
संविधान का अनुच्छेद 243(छ)
कृषि, जिसके अंतर्गत कृषि-विस्तार है.
भूमि विकास, भूमि सुधार का कार्यान्वयन, चकबंदी और भूमि संरक्षण.
लघु सिंचाई, जल प्रबंध और जलविभाजक क्षेत्र का विकास.
पशुपालन, डेरी उद्योग और कुक्कुट-पालन.
मत्स्य उद्योग.
किस कर्मचारी या अधिकारी के पास किस तरह के काम और किन मामलों की संचिकाएं हैं.
सामाजिक वानिकी और फार्म वानिकी
लघु वन उपज
लघु उद्योग, जिनके अंतर्गत खाद्य प्रसंस्करण उद्योग भी हैं.
खादी, ग्रामोद्योग और कुटीर उद्योग.
ग्रामीण आवासन.
पेय जल.
ईंधन और चारा.
सड़कें, पुलिया, पुल, फेरी, जलमार्ग और अन्य संचार साधन.
ग्रामीण विद्युतीकरण, जिसके अंतर्गत विद्युत का वितरण है.
अपारंपरिक ऊर्जा स्रोत्र.
गरीबी उन्मूलन कार्यक्र म.
शिक्षा, जिसके अंतर्गत प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय भी है.
. तकनीकी प्रशिक्षण और व्यावसायिक शिक्षा.
प्रौढ़ और अनौपचारिक शिक्षा.
पुस्तकालय.
सांस्कृतिक क्रि याकलाप.
. बाजार और मेले.
स्वास्थ्य और स्वच्छता, जिनके अंतर्गत अस्पताल, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और औषधालय भी हैं.
परिवार कल्याण.
महिला और बाल-विकास.
समाज कल्याण, जिसके अंतर्गत विकलांगों और मानिसक रु प से मंद व्यक्तियों का कल्याण भी है.
दुर्बल वर्गों का और विशिष्टतया, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों का कल्याण.
सार्वजनिक वितरण प्रणाली.
सामुदायिक आस्तियों का अनुरक्षण.
ग्यारहवीं अनुसूची की विशेषताएं
हमारे संविधान में अब 460 अनुच्छेद, तथा 12 अनुसूचियां हैं और ये 25 भाग हैं. जब यह बना था तक इसमें 395 अनुच्छेद, 22 भाग व आठ अनुसूचियां ही थीं. सातवीं अनुसूची में केंद्र और राज्य सरकार के बीच शक्तियों का विभाजन है. उसी तरह अनुच्छेद 243(छ) के प्रावधानों को अनुसूची 11वीं रखा गया है. यह पंचायतों के अधिकार क्षेत्र को सुनिश्चित करता है. इसमें राज्य सरकार का हस्तक्षेप नहीं हो सकता. उसी तरह 12वीं अनुसूची में अनुच्छेद 243(ब) के विषयों को रखा गया है, जो नगर निकाय से जुड़े हैं.