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आजाद हिंद फौज के लिए सुभाषचंद्र बोस ने इकट्ठा की थी रकम, नेहरू की अनदेखी से गायब हुआ खजाना

नयी दिल्ली: नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जासूसी कराने के खुलासे के बाद अब आजाद हिंद फौज की रकम को लेकर नयी जानकारी सामने आयी है. एक अंगरेजी वेबसाइट की रिपोर्ट के अनुसार, आजाद हिंद फौज के लिए नेताजी ने काफी रकम एकत्र की थी, जिसमें नकदी के अलावा 100 किलो सोना और जेवर भी शामिल […]

नयी दिल्ली: नेताजी सुभाषचंद्र बोस की जासूसी कराने के खुलासे के बाद अब आजाद हिंद फौज की रकम को लेकर नयी जानकारी सामने आयी है. एक अंगरेजी वेबसाइट की रिपोर्ट के अनुसार, आजाद हिंद फौज के लिए नेताजी ने काफी रकम एकत्र की थी, जिसमें नकदी के अलावा 100 किलो सोना और जेवर भी शामिल थे. लेकिन, 1945 में नेताजी की मौत के बाद इस धन को गायब कर दिया गया और तत्कालीन सरकार को इस बारे में जानकारी थी, लेकिन सरकार ने इस पर आंखें मूंद ली.

वेबसाइट ने गोपनीय दस्तावेजों के आधार पर दावा किया है कि तत्कालीन जवाहरलाल नेहरू सरकार को इस बारे में तोक्यो से तीन बार चेतावनी जारी की गयी थी. इसके अनुसार, विदेश मंत्रालय में अधिकारी आरडी साठे ने नेहरू को पत्र लिख कर बताया था कि बोस ने वियतनाम के सेगोन शहर में काफी मात्र में सोना और कीमती जवाहरात छोड़ दिये हैं. इस खजाने को कुछ लोग गायब भी कर चुके हैं, लेकिन इन सभी चेतावनियों को नजरअंदाज किया गया. किसी तरह की जांच के आदेश नहीं दिये गये. यहां तक खजाने को गायब करने के संदिग्ध व्यक्ति को आरामदायक नौकरी भी दी गयी.

पहले दिखायी थी रुचि : भारत सरकार ने इस खजाने में पहली बार 1951 में रुचि दिखाई. उस समय के जापान में भारतीय मिशन के प्रमुख केके चेत्तूर ने सरकार को कई जानकारियां दी. इसके बाद जापान में नियुक्त किये गये भारतीय मिशन के प्रमुखों ने इस बारे में कई खत भेजे. उन्होंने आजाद हिंद फौज के पब्लिसिटी मिनिस्टर एसए अय्यर और एम रामामूर्ति पर इस खजाने को दबाने का आरोप लगाया.

पीएमओ में है फाइल

इस मामले से जुड़ी फाइलें प्रधानमंत्री दफ्तर के पास है. करीब एक दशक से सरकार इन्हें सार्वजनिक करने से इनकार कर रही है. इनमें लिखा है कि 29 जनवरी, 1945 को बोस को उनके 48वें जन्मदिन पर रंगून में उनके वजन के बराबर सोने से तोला गया था. उस सप्ताह दो करोड़ रुपये से ज्यादा का दान इकट्ठा किया गया था, जिसमें 80 किलो सोना भी शामिल था. लेकिन, ब्रिटिश सेना के बर्मा में बढ़ते कदमों के चलते 24 अप्रैल को नेताजी 63.5 किलो खजाना छोड़ कर बैंकॉक चले गये. 15 अगस्त, 1945 को जापान ने मित्र राष्ट्रों के सामने समर्पण कर दिया.

नेताजी के साथी ने बताया था

नेताजी के साथी हबीबुर ने वर्ष 1956 में शाहनवाज कमिटी के सामने बताया था कि, इसके बाद नेताजी एक जापानी विमान में सवार होकर रूस के लिए रवाना हो गये. इसी दौरान कथित तौर पर विमान क्रैश हो गया. इस दौरान सोने से भरे दो लैदर बैग भी नष्ट हो गये. बाद में जापानी सेना ने बिखरे हुए सोने को इकट्ठा किया. इसे सीलबंद सैन्य मुख्यालय में जमा किया था.

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