हो सकता है कि आज की यंग बिग्रेड ने ‘जुबान संभाल के’ सीरियल के बारे में न सुना हो, लेकिन एक दौर में यह सीरियल टीवी पर धूम मचाता था. ‘जुबान संभाल के’ में पंकज कपूर ने हिंदी टीचर का किरदार बेहद स्वाभाविक अंदाज में निभाया था. वे देसी-विदेशी छात्रों को पढ़ाते हैं. ‘जुबान संभाल के’ में दिखाई जानेवाली क्लास से मिलते-जुलते माहौल को आप दक्षिण दिल्ली में चल रही क्लास में भी देख सकते हैं. जहां जापान, बुरकिनो फासो, फिनलैंड, पुर्तगाल, स्विट्जरलैंड जैसे देशों के छात्र-छात्रएं पूरी तन्मयता से बोलचाल की हिंदी सीख रहे हैं.
आज मास्टर जी अपने शिष्यों को ‘लगना’ शब्द का विभिन्न कोणों से प्रयोग समझा रहे हैं. उदाहरण के रूप में भूख लगना, फिल्म अच्छी लगना वगैरह. 35 वर्षीय जापानी नागरिक तेतसु तनाशा भारत में मित्शुबिशी कंपनी में सीनियर ऑफिसर हैं. तनाशा कहते हैं, मुङो और मेरी कंपनी को लगा कि भारत में तीन-चार साल रहना है, तो बेहतर रहेगा कि मैं बेसिक हिंदी सीख लूं.
‘हिंदी गुरु’ के डायरेक्टर चंद्र पांडे बताते हैं, आमतौर पर हमारे पास तीन तरह के लोग हिंदी सीखने के लिए आते हैं. पहले, वे पर्यटक जो भारत में दो-तीन महीने घूमने के इरादे से आते हैं. वे बहुत ही बुनियादी किस्म की हिंदी सीखते हैं. जैसे किसी दुकान में जाकर मोल-भाव कैसे किया जाये, किसी अनजान इंसान से रास्ता कैसे पूछा जाये आदि. इन छात्रों को कुछ जरूरी शब्दों के बारे में ही बताया जाता है. दूसरे, वे जो भारत में तीन-चार साल की पोस्टिंग पर आते हैं. इनमें अनेक उच्चायुक्तों, राजनयिकों के अलावा जापान इंटरनेशनल को-ऑपरेशन सिस्टम (जिक्स), मित्शुबिशी, साब इंटरनेशनल एजेंसी वगैरह के मुलाजिम भी होते हैं. ये हमारे पास गुजारे लायक से एक कदम आगे की हिंदी सीखने आते हैं. इनके लिए छह महीने की क्लासेज चलती हैं. इनके अलावा, किसी एनजीओ के माध्यम से भारत में किसी विषय पर गंभीर अध्ययन करनेवाले लोग हिंदी सीखने की चाहत रखते हैं, जिससे कि उनका अध्ययन का काम बेहतर तरीके से हो सके. हर साल फुलब्राइट छात्रवृत्ति हासिल करनेवाले बच्चे भी आते हैं. दरअसल, ये भारत में किसी विषय पर गंभीर अध्ययन करने के लिए आते हैं.
राजधानी और गुड़गांव में विदेशियों को हिंदी बोलचाल का सरल ज्ञान दिलाने के इरादे से कुछ संस्थान चल रहे हैं. गुड़गांव में हिंदी गुरु सेंटर हर साल लगभग 100 विदेशियों को तीन दिन के क्रैश कोर्स से लेकर दो साल का कोर्स करवाता है. इसमें उन कंपनियों के मुलाजिम आते हैं, जिनके ऑफिस गुड़गांव में हैं. गुड़गांव के हिंदी सेंटर में पिछले एक महीने से हिंदी सीख रहे 33 वर्षीय ड्रायल सिम एक मल्टीनेशनल कंपनी के गुड़गांव दफ्तर में आइटी इंजीनियर हैं. ड्रायल कहते हैं, अगर मैं हिंदी न भी सीखूं तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा, पर मैं चाहता हूं कि भारत से थोड़ा-बहुत हिंदी तो सीख कर जाऊं.
मुंबई में भी विदेशी हिंदी सीख रहे हैं. हिंदुस्तानी प्रचार सभा जुझारू प्रतिबद्धता से इस काम को अंजाम दे रही है. दस वर्ष से मुंबई में हिंदी पढ़ा रही डॉ सुशीला गुप्ता बताती हैं,‘हमारे यहां हिंदी सीखने आनेवालों में आमतौर पर मुंबई स्थित विदेशी कॉन्सुलेट के लोग होते हैं. हमारे पास दक्षिण कोरिया, श्रीलंका जापान, न्यूजीलैंड और डेनमार्क के मुंबई स्थित कॉन्सुलेट से जुड़े राजनयिक आते हैं.’ श्रीलंका के हेरात डिसिल्वा कहते हैं, उन्होंने शुक्रिया, नमस्ते, अच्छा, ठीक है और चलो जैसे शब्दों को सही जगहों पर प्रयोग करना सीख लिया है.
हिंदुस्तानी प्रचार सभा को गांधी जी की पहल पर 1942 में स्थापित किया गया था. डॉ गुप्ता बताती हैं, रूस और स्पेन के छात्र काम-चलाऊ हिंदी लिखने-बोलने में आगे रहते हैं, वहीं जापानी अपने अध्यापक का सम्मान करने में. 49 वर्षीय आइ सोरेनसन मूलत: डेनमार्क से हैं. पति मुंबइकर हैं इसलिए विवाह के बाद मुंबई में बस गयी सोरेनसन ने चार साल के एडवांस कोर्स में दाखिला ले लिया है. वह गुजारे लायक हिंदी सीख गयी हैं और टेलीफोन पर बातचीत में हिंदी में ही बड़े उत्साह से बताती हैं, अब भारत में बस गये तो हिंदी ठीक से जाननी ही पड़ेगी. फ्रांस की रिटेल कंपनी कॉरफोर के कॉरपोरेट डायरेक्टर एस मोहन बताते हैं कि उनके गुड़गांव स्थित ऑफिस में काम करनेवाले विदेशी लोगों को हिंदी सिखाने के लिए कॉरफोर ने भी कुछ हिंदी के अध्यापक रखे हैं. यह अच्छी बात है कि विदेशी हिंदी सीख रहे हैं, लेकिन हिंदी को विश्व स्तर पर अंग्रेजी, फ्रेंच और अरबी भाषा के बराबर स्थान तब मिलेगा जब ये रोटी की जुबान बनेगी.