।। प्रदीप कुमार/प्रवीण चौधरी, निरसा।।
90 वर्ष की उम्र आमतौर पर आराम की मानी जाती है, मगर सहदेव झा इस उम्र में भी अहले सुबह से बच्चों के लिए काम में जुट जाते हैं. शिक्षा के प्रति यह सर्मपण ही है कि उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी बच्चों की शिक्षा में लगा दी. वह अंतिम सांस तक पढ़ाते रहना चाहते हैं. आजादी के दो साल बाद यानी 1949 में शिक्षण कार्य से जो जुड़ाव हुआ, वह जीवन के ढलान पर भी खत्म नहीं हो रहा. साल-दर-साल उम्र बुढ़ापे की ओर बढ़ती गयी, पर उनके अंदर का शिक्षक जवान होता गया. बतौर शिक्षक राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कर चुके सहदेव झा फिलहाल धनबाद जिले के निरसा स्थित तालडांगा हाउसिंग कॉलोनी में स्कूल ऑफ कंपीटीशन के निदेशक हैं. यहां एक हजार से अधिक छात्र हैं.
मुंगेर से शुरू हुआ सफर
एक शिक्षक के रूप में झा का सफर बिहार के मुंगेर से शुरू हुआ. मुंगेर के बढ़ोनिया स्थित पब्लिक हाइ स्कूल में शिक्षक के रूप में झा ने पहली बार अपना योगदान दिया. इसके बाद पश्चिम बंगाल के मिदनापुर स्थित हित कामिनी हाइ स्कूल में अपनी सेवाएं दी. वर्ष 1959 में वह धनबाद जिले के कुमारधुबी इलाके में पहुंचे. यहां हाइस्कूल की स्थापना की और प्रधानाध्यापक बने. 1977 में विद्यालय का सरकारीकरण हुआ. गणित, अंगरेजी व हिंदी में इनकी पकड़ का लोहा आज भी लोग मानते हैं.
राष्ट्रपति से पुरस्कृत
5 सितंबर, 1984 को शिक्षण में उत्कृष्ट कार्य के लिए झा को तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानीजैल सिंह ने पुरस्कृत किया. इसी वर्ष झा ने तालडांगा हाउसिंग कॉलोनी में स्कूल ऑफ कंपीटीशन की स्थापना की.
शिक्षक की सरकारी नौकरी से रिटायर होने के बाद झा के सामने आराम से जिंदगी गुजारने के कई सारे विकल्प थे, मगर उन्होंने तय किया कि ‘जब तक एक भी सांस है, तब तक आराम नहीं करना.’ स्कूल ऑफ कंपीटीशन के संचालन में झा पूरी तरह जुट गये. आर्थिक तौर पर कमजोर छात्रों के लिए यह स्कूल सहारा बना. स्कूल ऑफ कंपीटीशन को 2005 में सीबीएसइ बोर्ड से 10 वीं व 2012 में 12 वीं कक्षा की मान्यता प्राप्त हुई. झा के पढ़ाये सैकड़ों छात्र इंजीनियर, डॉक्टर, प्रशासनिक अधिकारी के पदों को सुशोभित कर रहे हैं. झा ने बिहार के मुंगेर स्थित पैतृक गांव लोढ़िया, तारापुर के सरकारी विद्यालय में छह कमरों का निर्माण अपने स्तर से कराया.