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।। प्रभात, तेल बचाओ अभियान।।-अनुज कुमार सिन्हा-देश गंभीर आर्थिक संकट में फंस चुका है. प्रधानमंत्री ने संकट को भांपते हुए देशवासियों से पेट्रोल-डीजल की खपत कम करने की जनता से अपील की है. संभवत: पहली बार उनकी ओर से ऐसी अपील आयी है. इसलिए अंदाजा लगाया जा सकता है कि स्थिति कितनी गंभीर है. वक्त […]

।। प्रभात, तेल बचाओ अभियान।।
-अनुज कुमार सिन्हा-
देश गंभीर आर्थिक संकट में फंस चुका है. प्रधानमंत्री ने संकट को भांपते हुए देशवासियों से पेट्रोल-डीजल की खपत कम करने की जनता से अपील की है. संभवत: पहली बार उनकी ओर से ऐसी अपील आयी है. इसलिए अंदाजा लगाया जा सकता है कि स्थिति कितनी गंभीर है. वक्त आ गया है, जब हम चेत जायें. ऐसा नहीं हो सकता कि देश संकट में हो और हमलोग पर असर न पड़े. महंगाई बेतहाशा बढ़नेवाली है. कई कंपनियां बंद हो सकती हैं. नौकरियां खतरे में होंगी. डॉलर के मुकाबले जिस रफ्तार से रुपया कमजोर हो रहा है, वह संकट को बता रहा है. स्थिति 1991 जैसी या उससे भी बुरी हो सकती है. हो सकता है कि फिर भारत को सोना गिरवी रखना पड़े. भारत में कोई निवेश करने को तैयार नहीं है. व्यापार घाटा बढ़ रहा है. निर्यात कम और आयात ज्यादा इसका बड़ा कारण है. ऐसे में अगर हर व्यक्ति सचेत रहे, थोड़ी परेशानी ङोल कर भी राष्ट्रधर्म निभाये, बचत करे, तो हालात से निबटने में आसानी होगी.

सीधा फॉर्मूला है. भारत के पास तेल नहीं है. प्रकृति ने भारत को लगभग सभी खनिज दिया है, पर कच्च तेल (क्रूड ऑयल) नहीं. इसलिए दूसरे देशों से मंगाने की मजबूरी है. जैसे-जैसे डॉलर मजबूत हो रहा है, तेल अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेजी से महंगा होता जा रहा है. ऐसे में भारत को आयात बढ़ाये बगैर पहले की तुलना में बड़ी राशि का भुगतान करना पड़ रहा है. बिना तेल के काम भी नहीं चल सकता और तेल की कीमत चुकाने के लिए पैसे भी नहीं हैं. ऐसे में तेल की खपत कम करना ही एकमात्र रास्ता है. आपका छोटा प्रयास भी इस राष्ट्रीय संकट को सुलझाने में सहायक बन सकता है.

प्रयास ऊपर से होना चाहिए. अगर देश में आर्थिक संकट है, तो एक-एक मंत्री तीन-तीन गाड़ी क्यों रखें, अपने साथ दर्जनों गाड़ियों का काफिला लेकर क्यों चलें? क्या इससे कम में काम नहीं चल सकता है. गाड़ियों का उतना ही और वहीं पर उपयोग करें, जो अति आवश्यक है. इसे प्रतिष्ठा का सवाल नहीं बनाना होगा. महसूस करना होगा. अफसर पहले घर से दफ्तर जाते हैं, दफ्तर से दिन में खाना खाने घर लौटते हैं. फिर दफ्तर जाते हैं. साथ में लंच लेकर जायें, दिन में घर नहीं आयें तो पेट्रोल-डीजल बच सकता है. ऑटो-वाहन चालक चौक-चौराहे पर 10-15 मिनट गाड़ी स्टार्ट कर तेल जलाते हैं. ट्रॉफिक जाम में हजारों लीटर अनावश्यक तेल जलता है. इस पर चौकस रहना होगा.

घर से बाजार, दुकान या दफ्तर अगर नजदीक है, तो क्यों जायें गाड़ी से? पैदल जायें, तेल भी बचेगा, हेल्थ भी बेहतर रहेगा. बार-बार बाजार क्यों जायें? ऐसी योजना बनायें कि एक बार निकले, सारे काम को नोट कर लें, फिर सारे काम को एक साथ कर ही घर लौटें. समय भी बचेगा और तेल में बड़ी बचत होगी. ये छोटे-छोटे प्रयास हैं, पर राष्ट्र पर इसका अच्छा और बड़ा असर पड़ेगा. सिर्फ तेल संकट ही क्यों, आज हम ऐसे सामान खरीदने में ज्यादा रुचि दिखाते हैं, जिसका पैसा देश के बाहर जाता है यानी विदेशी सामान. भारत का बाजार तो चीन के उत्पादों से भरा पड़ा है. सस्ता सामान भले ही हो, पर यह देश को काफी महंगा पड़ा है. हम एक जिम्मेवार नागरिक की भूमिका अदा करें और ऐसे विदेशी सामानों को कम से कम खरीदें. इसका दोहरा लाभ होगा. देसी उत्पाद को बढ़ावा मिलेगा. साथ ही भारत का पैसा भारत में ही रहेगा, विदेशों में न जायेगा. चीनी उत्पाद खरीद कर हम अपने दुश्मन देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत कर रहे हैं.

आइए, हम सभी मिल कर सार्थक प्रयास करें और तेल बचाने के अभियान में जुट जायें. भले ही थोड़ी शारीरिक परेशानी लगे पर आपका यह प्रयास देश को आर्थिक संकट से उबारने में बड़ी भूमिका अदा करेगा.

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