भारत मूल रूप से एक कृषि प्रधान देश है, जिसकी अर्थव्यवस्था कृषि उपज पर काफी हद तक निर्भर करती है. कृषि क्षेत्र का देश के सकल घरेलू उत्पाद में 25 प्रतिशत योगदान है. भारतीय उर्वरक उद्योग प्रौद्योगिकी के मामले में विकसित हो रहे हैं. वर्तमान में भारत में 57 से अधिक उर्वरक के बड़े कारखाने हैं, उन्हीं में एक है ‘पारादीप फास्फेट लिमिटेड’, जो एक जिम्मेवार कॉरपोरेट के रूप में जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए वचनबद्ध है. अपनी कॉरपोरेट जिम्मेवारी के तहत कंपनी किसानों व महिलाओं के लिए कई कार्यक्रम चला रही है, जिसका लाभ लोगों को मिल रहा है.
रादीप फास्फेट लिमिटेड (पीपीएल) द्वारा बिहार के अररिया, पूर्णिया, वैशाली, गया, खगड़िया व बांका जिले के कई गांवों में किसानों, महिलाओं और बच्चों के विकास के लिए कई कार्यक्रम संचालित किये जा रहे हैं. कॉरपोरेट रिस्पॉसिबिलिटी के तहत पीपीएल की ओर से कई कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं. किसानों को पपीता और ओल की खेती के लिए डेमोस्ट्रेशन की सुविधा दी जाती है तथा 75 प्रतिशत सब्सिडी पर दवा छिड़काव मशीन भी उपलब्ध कराया जाता है.
किसान प्रशिक्षण केंद्र
किसानों को खेती नये एवं उन्नत तकनीक की जानकारी देने के लिए भुवनेश्वर में प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना की गयी है. इस प्रशिक्षण केंद्र में किसानों को फल, सब्जी से लेकर विभिन्न प्रकार की फसलों की तैयारी का प्रशिक्षण दिया जाता है. गांवों में किसानों को वर्मी कंपोस्ट बनाने के लिए प्रशिक्षण केंद्र खोले गये है, जहां इसका प्रशिक्षण दिया जा रहा है. इसके अलावा कंपनी द्वारा किसानों को सस्ते दर पर खाद भी उपलब्ध कराया जाता है.
मिट्टी की जांच
अब तक बिहार के अलग-अलग गांवों से 9781 मिट्टी के नमूने लेकर इसकी जांच की गयी है तथा इसकी रिपोर्ट भी किसानों को उपलब्ध करा दी गयी है. रिपोर्ट के आधार पर किसानों को यह भी सलाह दी जा रही है कि वे कितनी मात्र में रासायनिक खादों का उपयोग करें ताकि खेतों की उर्वरकता बनी रहे.
बेटियों को संरक्षण
भ्रूण हत्या रोकने और बेटियों को संरक्षण प्रदान करने के लिए भी पारादीप फास्फेट्स लिमिटेड द्वारा गांवों में अभियान चलाया जा रहा है. बेटी के जन्म पर पौधा लगाने की परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए ग्रामीणों को प्रोत्साहित किया जा रहा है. इसके तहत गांव की प्रत्येक बेटी के नाम पर आम और नारियल के पौधे लगाये जाते हैं. अब तक कई गांवों इस अभियान के तहत हजारों पौधे लगाये जा चुके हैं.
नवरत्न चौपाल
किसानों को कृषि की नवीनतम जानकारी देने के लिए किसान चौपाल का भी संचालन किया जा रहा है. इन चौपाल केंद्रों में किसान नयी तकनीक व अपनी फसलों की उचित मूल्य की जानकारी प्राप्त करते हैं. बांका जिले के रजाैन प्रखंड के नरीपा और भूसिया गांव में किसान चौपाल खोले गये है, जहां किसानों को खेती से संबंधित समस्याओं का समाधान किया जाता है. चौपाल के माध्यम से किसानों को भी प्रशिक्षित किया जा रहा है.
स्वरोजगार के लिए प्रशिक्षण भी
महिलाओं व लड़कियों को आत्म निर्भर बनाने के लिए प्रशिक्षण केंद्र भी खोले गये हैं. इन प्रशिक्षण केंद्रों पर महिलाओं को सिलाई-कढ़ाई के साथ मशरूम उत्पादन के लिए भी प्रशिक्षण दिया जा रहा है. प्रशिक्षण के बाद महिलाओं को सिलाई मशीन भी उपलब्ध करायी जाती है, ताकि वे आत्मनिर्भर हो सकें.
केंचुआ बैंक
इसके लिए किसानों को केचुआ के साथ घड़ा भी उपलब्ध कराया जाता है, ताकि उसमें वर्मी कंपोस्ट का उत्पादन किया जा सके. किसान इसी घड़े में ही गोबर डालकर केंचुआ खाद का निर्माण करते हैं. किसान वर्मी कंपोस्ट तैयार कर अपनी खेतों में तो इसका उपयोग करते ही है, इसके अलावा इन्हें बेच कर लाभ भी अजिर्त कर रहे हैं. सफाई के प्रति लोगों को जागरूक करने तथा प्लास्टिक का उपयोग कम करने के लिए कंपनी कई कार्यक्रम चला रही है. जगह -जगह पर कचरा बॉक्स लगाये गये हैं. बच्चों को स्कूल बैग देकर उन्हें स्कूल जाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है.
सामाजिक जिम्मेदारी के तहत कंपनी महिलाओं, किसानों ओर बच्चों के लिए अलग-अलग कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं. महिलाओं और लड़कियों को सिलाई-कढ़ाई के साथ ही मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. किसानों को वर्मी खाद उत्पादन की विधि बतायी जा रही है. साथ किसानों को मुफ्त केंचुआ उपलब्ध कराया जाता है. जितनी बेटियां उतने पौधे लगाने का अभियान चलाया जा रहा है. विभिन्न कार्यक्रमों में लाखों रुपये खर्च किये जाते हैं. बच्चों को किसान, स्कूल बैंग आदि कंपनी की ओर से दिये जाते हैं. रासायनिक खाद का अंधाधुंध प्रयोग ठीक नहीं है. किसानों को संतुलित खाद का ही प्रयोग करना चाहिए. यूरिया सस्ता होने के कारण किसान इसका अधिक उपयोग करते हैं, लेकिन डीएपी, एनपीके आदि खादों का प्रयोग नहीं करते हैं. कंपनी के डीलर और रिटेलर से भी कहा जाता है कि खाद बेचने के चक्कर में खेती चौपट नहीं हो. मिट्टी की उर्वरा क्षमता बर्बाद नहीं हो, इसका ध्यान रखें. रासायनिक खाद से होनेवाले दुष्प्रभाव के बारे में किसानों को अलग से भी प्रशिक्षण दिया जाता है. जिस मिट्टी में पर्याप्त पोषक तत्व हैं, उसमें बेवजह रासायनिक खाद का उपयोग नहीं करना चाहिए. किसान अपने घर पर ही वर्मी कंपोस्ट बना कर उपयोग कर सकते हैं. इससे खेती का लागत खर्च भी कम होगा.
डॉ. एसपी सिंह, प्रबंधक पीपीएल, बिहार