दक्षा वैदकर
आखिर जिस बात का अंदेशा था, वही हुआ. रमाकांत की मृत्यु के बाद उनके दोनों बेटों में ठन गयी. मां रेवती के लाख समझाने पर भी राधाकांत पिताजी की जायदाद के बंटवारे की बात करने लगा. छोटा बेटा कृष्णकांत वैसे तो खुल कर कुछ नहीं कह रहा था, परंतु बड़े भाई के व्यवहार से दुखी हो कर उसने भी बंटवारे के लिए हामी भर दी.
मकान का बंटवारा हो गया. चार-चार कमरे दोनों के हिस्से में आये. पीछे के आंगन के बीचो-बीच दीवार खड़ी होने लगी. ऊपर का एक कमरा, जो रमाकांत का स्टडी रूम था, बंटने के लिए शेष रह गया था.
दोनों भाई ऊपर पहुंचे, जहां दो अलमारियां थीं. अलमारियों और उस कमरे का बंटवारा कैसे हो, इस पर विचार हो रहा था. कृष्णकांत ने देखा कि पिताजी की एक अलमारी पर लिखा था- ‘मिलो’ और दूसरी पर लिखा था ‘मुस्कुराओ’. उसे कुछ अजीब-सा लगा. इसका मतलब क्या है, वह सोचने लगा.
वैसे तो बचपन से ही दोनों भाइयों में आपस में बहुत स्नेह था, किंतु जैसे कि आजकल आम बात हो गयी कि विवाह के बाद परिवारों में फूट पड़ जाती है, रमाकांत के बेटों के विवाह के बाद उनके परिवार को भी किसी आसुरी शक्ति की नजर लग गयी थी. रोज कलह होने लगी. मनमुटाव बढ़ने लगा, जो चाय की प्याली में तूफान की तरह था. पिताजी के रहने तक अंगारे राख में दबे थे, किंतु उनके जाने के बाद लावा फूट पड़ा था. कृष्णकांत बोला- भैया, मैं ‘मिलो’ वाली अलमारी लूंगा.
ठीक है, तो मैं ‘मुस्कुराओ’ वाली ले लेता हूं. राधाकांत कुछ सोचते हुए और मुस्कुरा दिया. ‘बहुत दिन बाद आपके चेहरे पर मुस्कान देख रहा हूं. कितने अच्छे लग रहे हो आप भैया’- कृष्णकांत ने हंसते हुए कहा. राधाकांत को हंसी आ गयी. पिताजी ने अलमारियों पर यह क्यों लिखवाया, समझ में नहीं आया. वह बोला- मिल कर रहेंगे, तभी तो मुस्कुरायेंगे. यही तो मतलब हुआ. कृष्णकांत जोर से खिल-खिलाकर हंसने लगा और बड़े भाई के गले लग गया. राधाकांत भी मोम की तरह पिघल गया. पिताजी के विचार कितने ऊंचे थे. उसने कहा. आंगन और बरामदे की आधी बन चुकी दीवारों को गिरा दिया गया.
बात पते की..
आपस में मिल-जुल कर रहो और एक-दूसरे को देख कर मुस्कुराओ. जीवन सुखमय हो जायेगा. यही तो सुखी जीवन का रास है.
जो प्रेम बचपन से आपके बीच में है. उसे किसी और के आने के बाद मिटने न दें. आप अगर मिल-जुल कर रहेंगे, तो कोई आपको तोड़ न पायेगा.