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विज्ञापन की दुनिया में सेक्स ऑब्जेक्ट बन रहीं महिलाएं

नयी दिल्ली : सरकार की ओर से महिलाओं को समाज में बराबरी का दर्जा दिलाने और उनके खिलाफ अपराधों को रोकने के लिए तमाम कदम उठाने के बावजूद देश में विज्ञापनों, फिल्मों, टेलीविजन धारावाहिकों और प्रचार माध्यमों में महिलाओं को ईल, अपमानजनक एवं अभद्र तरीके से प्रस्तुत करने की प्रवृत्ति घटने की बजाय बढ़ती जा […]

नयी दिल्ली : सरकार की ओर से महिलाओं को समाज में बराबरी का दर्जा दिलाने और उनके खिलाफ अपराधों को रोकने के लिए तमाम कदम उठाने के बावजूद देश में विज्ञापनों, फिल्मों, टेलीविजन धारावाहिकों और प्रचार माध्यमों में महिलाओं को ईल, अपमानजनक एवं अभद्र तरीके से प्रस्तुत करने की प्रवृत्ति घटने की बजाय बढ़ती जा रही है.

आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक पिछले तीन साल के दौरान विज्ञापनों में महिलाओं के अभद्र चित्रण के संबंध में दर्ज करायी गयी शिकायतों की संख्या नौ से बढ़ कर 23 हो गयी है. वर्ष 2010-11 में जहां नौ शिकायतों में से केवल एक सही पायी गयी थी, वहीं 2012-13 में 23 में से 10 शिकायतें सही पायी गयीं. आंकड़ों की मानें तो विज्ञापनों एवं संदेशों में महिलाओं के अशोभनीय चित्रण को रोकने की सरकार की तमाम कोशिशें विफल नजर आती हैं. तमाम कोशिशों के बावजूद पिछले तीन साल के दौरान महिलाओं का ईल एवं अभद्र चित्रण करने और वयस्क सामग्री प्रकाशित, प्रसारित करने को लेकर सरकार ने कार्रवाई की, लेकिन यह प्रवृत्ति थमने की बजाय और बढ़ गयी.

नारी देह दिखाना बना फैशन : टेलीविजन और मुद्रित विज्ञापनों में महिलाओं को बेहद अभद्र तरीके से पेश करने का आजकल जैसे चलन शुरू हो गया है. घरेलू उपयोग की वस्तुओं अथवा सौंदर्य प्रशाधन के विज्ञापन में तो महिलाओं की जरूरत समझ में आती है, लेकिन पूरी तरह पुरुषों के इस्तेमाल में आनेवाली वस्तुओं के विज्ञापन में भी जबरदस्ती उन्हें ठूंसने की कोशिश की जा रही है. शायद ही कोई ऐसा विज्ञापन हो जिसमें नारी देह का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा हो.

शेविंग क्रीम, रेजर, डियोडरेंट और पुरुषों की फेसक्री समेत ऐसे सैकड़ों उत्पाद हैं, जिनके विज्ञापन के लिए सिर्फ महिलाओं का सहारा लिया जा रहा है बल्किउन्हें सेक्स ऑब्जेक्ट की तरह पेश किया जा रहा है. फलां ब्रांड का डियो लगाते ही सैकड़ों लड़कियां पुरुष मॉडल के पीछे पड़ जाती हैं, क्या इस तरह के विज्ञापनों को महज विज्ञापन भर मान लेना चाहिये? क्या ये महिलाओं के प्रति हिंसा और अपराधों को बढ़ावा नहीं देते. क्या ऐसे विज्ञापन समाज में महिलाओं को केवल एक देह अथवा उपभोक्ता वस्तु के तौर पर पेश नहीं कर रहे हैं?

क्या कहता है कानून

अक्तूबर 2012 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने महिला अशोभनीय चित्रण प्रतिबंध कानून 1986 में संशोधन को मंजूरी देकर विज्ञापन दाताओं की इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने का प्रयास किया था, लेकिन इसका कोई ठोस परिणाम नजर नहीं आया. पहले यह कानून केवल प्रिंट मीडिया पर लागू होता था, लेकिन संशोधन के बाद इसका दायरा बढ़ा कर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, इंटरनेट, केबल टीवी, मोबाइल और मल्टीमीडिया को भी इसमें शामिल कर लिया गया. इस कानून के तहत महिलाओं को गलत तरीके से पेश करने का दोषी पाये जाने पर दो से तीन साल की कैद और 50 हजार से एक लाख रुपये का जुर्माना हो सकता है. दोबारा इसी अपराध में लिप्त पाये जाने पर सात वर्ष की कैद और एक से पांच लाख रुपये तक जुर्माना अदा करना पड़ सकता है.

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