देशभर में शहरों में आवास की मांग बढ़ गयी. इस मांग को पूरा करने के लिए तमाम निजी बिल्डरों ने अपने स्तर से फ्लैट्स और अपार्टमेंट बनाने शुरू कर दिये. देखा गया है कि सरकार की ओर से तय दिशानिर्देशों के अभाव में खरीदारों को अक्सर नुकसान उठाना पड़ता है.
ज्यादातर बिल्डर या डेवलपर किये गये वादे के मुताबिक संपत्ति नहीं मुहैया कराते हैं. ऐसे में कई बार ग्राहक खुद को ठगा महसूस करता है. कई बार मकान खरीदते समय जो कीमत तय की जाती है, उसकी सुपुर्दगी करते समय खरीदार को कहीं ज्यादा रकम चुकाना होता है. इन्हीं समस्याओं को खत्म करने के लिए सरकार संभवत: मौजूदा मॉनसून सत्र में रीयल एस्टेट बिल पेश कर सकती है.
इस विधेयक में यह प्रावधान किया जायेगा कि किसी भी तरह की निर्माण गतिविधि से पूर्व डेवलपर को अपनी प्रस्तावित परियोजना को रेगुलेटरी यानी नियामक के समक्ष रजिस्टर्ड कराना होगा. 4,000 वर्ग मीटर या उससे ज्यादा क्षेत्र में बनाये जाने वाली किसी भी परियोजना के लिए इसे जरूरी बनाया जायेगा. ऐसा करने से पहले डेवलपर को परियोजना से संबंधित सभी तरह की जरूरी मंजूरी लेनी होगी. रजिस्ट्रेशन के बाद डेवलपर को परियोजना से संबंधित तमाम विवरणों का ब्योरा देना होगा, जैसे- सभी फ्लैट की संख्या और उनका कारपेट एरिया, लेआउट प्लान, विकास के चरण, एग्रीमेंट का प्रारूप, बुकिंग की सूची, परियोजना का नक्शा या इंजीनियरिंग संबंधी ढांचा आदि. इसके अलावा, सभी अद्यतन सूचना को नियामक की वेबसाइट पर दर्शाया जायेगा, ताकि इसमें पारदर्शिता बरकरार रहे.