दक्षा वैदकर
एक भिक्षुक भोजन बनाने के लिए जंगल से लकड़ियां चुन रहा था कि तभी उसने कुछ अनोखा देखा. उसने बिना पैरों की लोमड़ी को देखते हुए मन ही मन सोचा. आखिर इस हालत में यह जिंदा कैसे है? ऊपर से बिल्कुल स्वस्थ है. उसे आश्चर्य हुआ. वह अपने खयालों में खोया हुआ था कि अचानक चारों तरफ अफरा-तफरी मचने लगी. जंगल का राजा शेर उस तरह आ रहा था.
भिक्षुक भी तेजी दिखाते हुए एक ऊंचे पेड़ पर चढ़ गया और वहीं से सब देखने लगा. शेर ने एक हिरण का शिकार किया था और उसे अपने जबड़े में दबा कर लोमड़ी की तरफ बढ़ रहा था, पर उसने लोमड़ी पर हमला नहीं किया, बल्कि उसे भी खाने के लिए कुछ टुकड़े डाल दिये. ये तो घोर आश्चर्य है, शेर लोमड़ी को मारने की बजाय उसे भोजन दे रहा है..भिक्षुक बुदबुदाया. उसे भरोसा नहीं हो रहा था, इसलिए वह अगले दिन फिर आया और छिपकर शेर का इंतजार करने लगा. आज भी वैसा ही हुआ, शेर ने अपने शिकार का कुछ हिस्सा लोमड़ी के सामने डाल दिया. यह भगवान के होने का प्रमाण है. भिक्षुक ने अपने आप से कहा, ‘आज से इस लोमड़ी की तरह मैं भी ऊपर वाले की दया पर जीऊंगा, ईश्वर मेरे भी भोजन की व्यवस्था करेगा और ऐसा सोचते हुए वह एक वीरान जगह पर जाकर एक पेड़ के नीचे बैठ गया. दूसरे दिन भी कुछ लोग उधर से गुजर गये पर भिक्षुक की तरफ किसी ने ध्यान नहीं दिया. इधर बिना कुछ खाये-पीये वह कमजोर होता जा रहा था.
इसी तरह कुछ और दिन बीत गये, अब तो उसकी रही-सही ताकत भी खत्म हो गयी. उसकी हालत बिल्कुल मृत व्यक्ति की तरह हो चुकी थी कि तभी एक महात्मा उधर से गुजरे और भिक्षुक के पास पहुंचे. उसने अपनी सारी कहानी महात्मा को सुनाई और बोला, अब आप ही बताइये कि भगवान इतना निर्दयी कैसे हो सकते हैं, क्या किसी व्यक्ति को इस हालत में पहुंचाना पाप नहीं है? बिल्कुल है, महात्माजी ने कहा, लेकिन तुम इतने मूर्ख कैसे हो सकते हो? तुम ये क्यों नहीं समङो कि भगवान तुम्हें उस शेर की तरह बनते देखना चाहते थे, लोमड़ी की तरह नहीं.
बात पते की..
ईश्वर ने हम सभी के अंदर कुछ न कुछ ऐसी शक्तियां दी हैं, जो हमें महान बना सकती हैं, जरूरत है कि हम उन शक्तियों को पहचानें.
हमेशा मांगने वाले पक्ष में न रहें. मेहनत व काम करें और कोशिश करें कि आप देने वाले पक्ष में आ कर खड़े हो जायें. खुद के पांव पर खड़े हों.