।। दक्षा वैदकर ।।
एक बार जंगल में बहुत ठंड पड़ी. सारे जानवर मरने लगे. उस जंगल में बड़ी संख्या में साही (एक कांटेदार जानवर) रहते थे. उनके सामने केवल दो विकल्प थे. वे सभी या तो आपस में चिपट जायें, ताकि गर्माहट बनी रहे या अलग–अलग रह कर ठंड से मर जायें.
जब सभी साही करीब आये, तो उन्हें एक–दूसरे के शरीर के कांटे चुभने लगे. सभी थोड़ा–थोड़ा घायल हो गये. उन्हें दर्द होने लगा. उन्हें ऐसा लग रहा था कि एक–दूसरे को छोड़ दें, लेकिन कुछ ही देर में उन्हें यह एहसास हो गया था कि छोटे–छोटे घावों व दर्द को सहन करना, जिंदगी गंवाने से ज्यादा बेहतर है. उन्होंने अपने साथियों द्वारा दिये गये घावों को सहन करना सीख लिया और इस तरह वे बच गये.
दोस्तो, हम इनसान भी साही की तरह ही हैं. हम सभी के पास अलग–अलग तरह के कांटे हैं, जो हम जाने–अनजाने में एक–दूसरे को चुभाते हैं. साहियों को तो पता भी था कि अगर सामनेवाला के कांटे मुझे चुभ रहे हैं, तो मेरे कांटे भी सामनेवाले को चुभ रहे हैं. लेकिन हम इनसान यही समझते हैं कि केवल सामनेवाला ही हमें कांटे चुभा रहा है. हम तो अच्छे हैं. ऐसा इसलिए, क्योंकि हम खुद को संपूर्ण और सामनेवाले को अपूर्ण समझते हैं.
समझने की बात है कि पूर्ण और अपूर्ण केवल हर व्यक्ति के देखने का नजरिया होता है. एक माता–पिता के लिए उनका बच्चा अपूर्ण हो सकता है, क्योंकि वह गुस्सैल है, उनकी बात नहीं मानता और बच्चे के लिए माता–पिता अपूर्ण हो सकते हैं, क्योंकि वे बेवजह चिल्लाते हैं, उसे गुस्सा करने के लिए उकसाते हैं. सच तो यह है कि हम सभी अपूर्ण है. हमें यह स्वीकार करना होगा और एक–दूसरे के साथ रहना सीखना होगा. अगर आप साही की तरह घाव देनेवाले लोगों से अलग होना चाहेंगे, तो भले ही आप ठंड से न मरें, लेकिन आप अकेले जरूर रह जायेंगे.
हम अक्सर लोगों को यह कहते सुनते हैं– ‘मैं इस आदमी के साथ काम नहीं कर सकता’, ‘मैं अपनी पत्नी से तंग आ गया हूं, मुझे तलाक चाहिए’, ‘मैं अपने घर को छोड़ना चाहता हूं.’ क्या किसी व्यक्ति या हालात को छोड़ना इस समस्या का हल है? आखिर आप कितनी नौकरियां बदलेंगे, कितनी बार शादी करेंगे और तलाक लेंगे?
– बात पते की
* लोग जैसे हैं, उन्हें वैसा ही स्वीकारें. लोगों द्वारा दिये छोटे–छोटे घावों के साथ जीना सीखें और रिश्तों की गरमाहट को महसूस करें. उनसे भागें नहीं.
* यह सत्य जान लें कि हम सभी एक साही हैं. हम सभी में कुछ कमियां हैं. जब लोग हमारी कमियों, बुराइयों को झेल सकते हैं, तो हम क्यों नहीं?