आंध्र प्रदेश स्थित राजापेट रियासत के जागीरदार राजा जगपाल राव के घर जन्मीं रुक्मिणी राव की पहचान आज देश-विदेश में महिलाओं और बच्चियों के हक की आवाज उठानेवाली शख्सीयत के रूप में बन चुकी है. ‘द वीक’ पत्रिका ने उन्हें 2014 की वुमन ऑफ द इयर घोषित किया है. आइए जानते हैं, जमींदार घराने की एक बेटी का सामाजिक कार्यकर्ता बनने का यह सफर ..
सेंट्रल डेस्क
बात लगभग 40 साल पुरानी है, जब रुक्मिणी राव ने हैदराबाद शहर से महज सौ किलोमीटर दूर पहली बार कन्या शिशु हत्या की घटना के बारे में सुना था. रुक्मिणी बताती हैं कि यह खबर सुन कर जो पहली बात मेरे मन में आयी, वह यह थी कि इन बेकसूर और बेबस बच्चों की जान ले कर किसी को क्या मिलता होगा. ग्राम्या रिसोर्स सेंटर फॉर वीमेन की संस्थापिका डॉ रुक्मिणी आगे कहती हैं कि दूसरी बात मेरे मन में आयी कि मासूम बच्चियों की जान लेने की यह घटना किसी दूरदराज के इलाके की नहीं, बल्कि हमारे शहर के करीब की ही थी. इसे लेकर मेरे मन में गुस्सा था, जिसने मुङो कुछ करने के लिए प्रेरित किया. यही चीज मुङो आज भी काम करने की शक्ति देती है.
ग्राम्या रिसोर्स सेंटर, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक जैसे राज्यों के ग्रामीण इलाकों में महिलाओं की जिंदगी में बेहतरी लाने के प्रयासों में जुटीं रुक्मिणी की विविध गतिविधियों में से केवल एक है. वह समय-समय पर ऐसे कई कार्यक्रम और अभियान चलाती रहती हैं. शिक्षा की जरूरत और उसके असर पर विश्वास करनेवाली रुक्मिणी बताती हैं, जब भी मैं इन ग्रामीण इलाकों में जाती हूं, तो पाती हूं कि कमजोर से कमजोर पृष्ठभूमि से आनेवाले लोगों के पास भी अपने आसपास और समाज के बीच बांटने के लिए कुछ न कुछ जरूर होता है. ऐसे में जब ईश्वर ने मुङो शक्ति और संसाधन दिया है तो मुङो भी इनके बीच अपना योगदान करना चाहिए और मैं बस यही कर रही हूं.
तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के गांवों में महिलाओं से रूबरू होकर भी रुक्मिणी इसी बात पर जोर देती हैं, और यही वजह है कि आज इन इलाकों में उनके प्रयासों का असर साफ देखा जा सकता है. इस बारे में वह कहती हैं, पहली बार जब मैं इन इलाकों की महिलाओं से मिली थी तो इन्हें न खुद की परवाह थी और न ही अपने अस्तित्व का कोई बोध, लेकिन आज वे न सिर्फ अपने अधिकारों को जानने-समझने लगी हैं, बल्कि उन्हें किस तरह हासिल करना है, इस बात से भी वाकिफ होने लगी हैं.
उदाहरण के तौर पर रुक्मिणी तेलंगाना में जारी किसानों की आत्महत्या के मुद्दे से जुड़ा वाकया साझा करते हुए बताती हैं, हाल ही में हमने इस मामले में किसानों की विधवाओं और महिला किसानों की जन सुनवाई आयोजित करायी. उन्हें अभी तक मुआवजा नहीं मिला था और उनके राशन कार्ड की भी वैधता समाप्त हो चुकी थी. ऐसे में इन महिलाओं ने स्थानीय राजस्व मंडल पदाधिकारी के कार्यालय पर धमक दी और अपना काम कराया. रुक्मिणी बताती हैं कि पहले जहां इन महिलाओं को बस अपने पति के भरोसे ही रहना पड़ता था, उनकी मार-दुत्कार को ही अपना नसीब समझना होता था, आज वे इस पीड़ित और शोषित मानसिकता से पुरी तरह से बाहर आ चुकी हैं.
यही नहीं, महिलाओं को खेती की नयी-नयी तकनीकों से रूबरू कराने, सरकारी स्कूलों को विविध संसाधनों के जरिये सहायता मुहैया कराने, लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देने के कामों में भी रुक्मिणी की सक्रिय भागीदारी रहती है. इन कामों को वे अपने स्तर से भी करती हैं और जरूरत पड़ने पर देश-विदेश की एजेंसियों की मदद भी लेती हैं. उदाहरण के तौर पर वे शिक्षा के क्षेत्र में एड एट एक्शन, साउथ एशिया के साथ मिल कर काम कर रही हैं. वह बताती हैं, हम फिलहाल 50 सरकारी स्कूलों के साथ काम कर रहे हैं, जहां बच्चों को सारी जरूर सुविधाएं मुहैया कराना हमारा प्रयास होता है. इसके साथ ही हम इन बच्चों की प्रतिभा तलाश कर उन्हें निखारने की भी कोशिश करते हैं.
इन इलाकों में कन्या शिशु हत्या के मामलों में कमी लाने का श्रेय भी रुक्मिणी के ही हिस्से आता है, जिनके प्रयासों की बदौलत लोगों में जागरूकता आयी है. लेकिन उनका मानना है कि हमारे देश का डेवलपमेंट मॉडल महिलाओं को हाशिये पर रखने के लिए जिम्मेवार है और मर्दो को महिलाओं की इज्जत करना सीखना चाहिए. देश में दुष्कर्म के बढ़ते मामलों पर रुक्मिणी कहती हैं कि न्यायिक प्रक्रिया में तेजी और लड़कों, पुरुषों की सोच बदलने के उपायों के साथ ऐसी घटनाओं पर काबू पाया जा सकता है.
‘वुमन ऑफ द इयर’ चुने जाने पर रुक्मिणी कहती हैं कि ऐसे सम्मान हमारे काम को पहचान देते हैं, जिससे खुशी तो होती ही है, साथ ही हमें और बेहतर करने की प्रेरणा भी मिलती है.