झारखंड की लड़कियां हर साल ट्रैफिकिंग की शिकार होती हैं. दलाल इन्हें नौकरी व बेहतर जिंदगी का ख्वाब दिखा कर महानगरों में भेज देते हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी है, रोजगार का अभाव भी. दलाल इसी का फायदा उठाते हैं. कई लड़कियां अपने परिजनों की धोखाधड़ी की भी शिकार होती हैं. यहां ऐसी ही कुछ लड़कियों के बारे में जानकारी दे रहे हैं.
प्रवीण मुंडा, रांची
हमारे घर में कुछ नहीं था. कभी-कभी खाने को भी तरस जाते थे. गांव के लोगों ने कहा कि बाहर जाओ और काम करो. तब मैं अपने भाई के साथ बड़े शहर में (दिल्ली) गयी थी. साथ में कुछ और लोग थे. उसके बाद प्लेसमेंट एजेंसी के लोगों से मुलाकात हुई. उन लोगों ने मुङो एक बड़े घर में काम पर लगा दिया.
मुङो लगा कि काम करने पर पैसा मिलेगा. हमने वहां दो माह पांच दिन तक काम किया. सुबह सात बजे से मेरा काम शुरू होता था. झाड़ू देना, पोछा लगाना और बर्तन साफ के अलावा बर्तन धोना पड़ता था. इसके बाद भी कुछ न कुछ काम लगा रहता था. मालकिन से हमेशा फटकार खानी पड़ती थी. यह कहना था चाईबासा की रहनेवाली विनीता (बदला हुआ नाम) का. 12 साल की विनीता ने कहा कि पहले महीने के बाद मैंने जब पैसा मांगा, तो मालकिन ने डांटा. दूसरे महीने भी जब पैसा नहीं मिला, तो मैंने वहां से भाग निकलने का फैसला किया. एक दिन मौका देख कर भाग निकली. इधर-उधर भटक रही थी तो पुलिस ने पकड़ कर एक संस्था में पहुंचा दिया. वहां से फिर रांची आ गयी.
दो माह तक दिल्ली में विनीता ने बंधुआ मजदूर की तरह काम किया. अब वह दिल्ली वापस नहीं जाना चाहती. यहीं पर रह कर कुछ काम सीखना चाहती है. विनीता ने कहा कि काम सीख जायें, तो यहां पर रह कर भी पैसे कमा लेंगे.