दक्षा वैदकर
एक लड़का हर रविवार को सुबह दौड़ने जाता था. दौड़ते हुए वह हमेशा एक बूढ़ी महिला को देखता, जो बैंच पर बैठ कर तालाब के छोटे-छोटे कछुओं की पीठ को साफ कर रही होती थी.
एक दिन उससे रहा नहीं गया और उसने बात करने का इरादा किया. वह बूढ़ी महिला के पास गया और उनसे बोला- ‘‘नमस्ते, मैं हमेशा आप को कछुओं की पीठ साफ करते हुए देखता हूं. आप ऐसा क्यों करती हैं?’’ महिला ने मासूम लड़के को देखा और कहा कि मैं हर रविवार यहां आती हूं और सुख-शांति का अनुभव लेते हुए इन छोटे-छोटे दोस्तों के कवच साफ करती हूं.
दरअसल, इनकी पीठ पर जो कचरा जमा रहता है उसकी वजह से कवच की गरमी पैदा करने की क्षमता बहुत ही कम हो जाती है और इन्हें तैरने में भी फिर मुश्किल होती है. इससे कुछ समय के बाद इनके ये कवच भी कमजोर हो जाते हैं. इसलिए मैं इनके कवचों को साफ करती हूं.
यह बात सुन कर लड़का हैरान था. वह सोच में पड़ गया और फिर बोला कि बेशक आप बहुत ही अच्छा काम कर रही हैं, लेकिन ऐसे बहुत से कछुएं हैं, जो इनसे भी बुरे हालात में हैं. उनका क्या? आप के अकेले ये सब करने से कोई बदलाव नहीं आयेगा.
आप अपना समय फालतू में बर्बाद कर रही हैं. महिला ने कहा कि भले ही दुनिया में कोई बदलाव न हो, किंतु इस एक छोटे-से कछुए के जीवन में तो बदलाव आयेगा. महिला ने उस लड़के को कहा कि दुनिया को ध्यान में रख कर किसी की सेवा नहीं करनी चाहिए. हमें किसी व्यक्ति के जीवन में खुशियां आयें, यह बात ध्यान में रख कर उनकी सेवा करनी है. हमें बड़े बदलाव की कभी आशा नहीं रखनी चाहिए. हमें छोटे बदलाव से ही शुरुआत करनी चाहिए.
यह छोटी-सी कहानी कितनी गहरी सीख दे जाती है. दरअसल कई बार हम समाज में लोगों की मदद यह सोच कर नहीं करते कि भला एक इनसान की मदद करने से क्या हो जायेगा. कई बार हम सड़क पर यूं ही कचरा फेंक देते हैं, यह सोच कर कि भला सिर्फ मेरे सुधरने से क्या हो जायेगा? हम भूल जाते हैं कि बूंद-बूंद से ही घड़ा भरता है. शुरुआत छोटी-सी चीज से ही होती है.
बात पते की..
जब भी कोई मुसीबत में दिखे, उसकी मदद करें. फिर भले ही वह इनसान हो या जानवर. यह न सोचें कि एक इस इनसान को बचाने से फायदा नहीं.
कई बार हमें पता ही नहीं होता कि किसी इनसान की छोटी-सी मदद कर के हम उसके जीवन में कितना बड़ा बदलाव ला रहे हैं. इसलिए मदद करें.