सिमुलतला. झाझा प्रखंड क्षेत्र से लगभग 20 किलोमीटर की दुरी पर स्थित डहुआ गांव की महिलाएं आज के दौर में भी जंगली पत्तांे में अपनी जिंदगी तलाशती नजर आती हैं. सरकार महिला स:शक्तिकरण से संबंधित लाख ऊंची-ऊंची बाते कर ले लेकिन पहाड़ों की तराई व घने जंगलों के बीच बसे इस गांव के लाचार विवश व मजबूर महिलाओं के लिए सरकारी योजना महज एक मजाक बन कर रह गयी है. अपनी पेट की आग बुझाने के लिए ये लोग प्रत्येक दिन जंगलों की खाक छान कर दतवन पत्तें एकत्रित करती हैं और इसे बेच कर अपना जीवकोपार्जन करती हैं. इस संदर्भ में गांव की पार्वती देवी, बिंदु देवी, कपड़ा देवी, कलावती देवी, सुमंती देवी, विनोदा देवी आदि महिलाएं बताती हैं कि इस बीच ”जंगल में कहियो यहां कौनो आफिसर लोग नय आवय छैय, सिर्फ वोट के समय कुछ नेता लोग वोट मागैंल आवय छैय”वे लोग सिर्फ बड़े-बडे़ बात करके वोट ले के फिर ई गांव के तरफ झांक के भी नय देखैय छै, हमनी के सरकार से ना कौनो आशा छय और ना भरोसा, काहे कि ई लोग के बड़े-बडे़ बात से हमर परिवार के भुखमरी नय मिटतैय, हमनी सब तो भगवान से प्रार्थना करय हिय कि सिर्फ ई जंगल के दतवन और पत्तल जियल रहैय कौनो तरह से हमनी के नमक रोटी खाय के गुजर बसर हो जईतय, इस संदर्भ में खुरंडा पंचायत के मुखिया बालदेव यादव ने बताया कि डहुआ गांव पूर्ण रुपेन वन विभाग की भूमि पर बसा है. इसलिए किसी भी सरकारी कार्य के लिए वन विभाग आपत्ति करता है.
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पत्तों में जिंदगी तलाशती डहुआ की महिलाएं
सिमुलतला. झाझा प्रखंड क्षेत्र से लगभग 20 किलोमीटर की दुरी पर स्थित डहुआ गांव की महिलाएं आज के दौर में भी जंगली पत्तांे में अपनी जिंदगी तलाशती नजर आती हैं. सरकार महिला स:शक्तिकरण से संबंधित लाख ऊंची-ऊंची बाते कर ले लेकिन पहाड़ों की तराई व घने जंगलों के बीच बसे इस गांव के लाचार विवश […]
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