फिशरीज साइंस विभिन्न प्रजातियों की मछलियों के अध्ययन से जुड़ा विषय है, जिसके तहत उनके संरक्षण, पालन-पोषण आदि की संपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है. कई विशेष प्रकार की मछलियों का उपयोग जीवनरक्षक दवाओं के निर्माण में भी किया जाता है, जिनकी विश्व बाजार में भारी मांग है. आज तेजी से उभर रहे इस क्षेत्र में प्रोसेसिंग से लेकर पैकेजिंग तथा मार्केटिंग की जरूरत ने इस कोर्स को प्रोफेशनल कैरियर का रूप दे दिया है.
रत की लंबी सीमा समुद्री तटों को छूती है. ये विशाल समुद्री तट लाखों लोगों के लिए मत्स्य पालन रोजगार और जीवनयापन के साधन भी बने हुए हैं. मत्स्य पालन का क्षेत्र पिछले कुछ वर्षो में तेजी से बढ़ा है. संयुक्त राष्ट्र संघ के फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार भारत का मत्स्य उत्पादन लगभग दोगुना हो गया है. मछलियों की विभिन्न प्रजातियों को संरक्षित कर इनकी संख्या की देख-रेख की जाती है, जिससे लोगों के उपभोग के लिए इन्हें पर्याप्त मात्र में उपलब्ध किया जा सके.
इनकी आवश्यकता को देखते हुए मछली पालन कैरियर के रूप में उभरता जा रहा है और इस क्षेत्र से जुड़नेवालों की संख्या भी बढ़ती जा रही है. मछली पालन के क्षेत्र में मछलियों के प्रजनन और मछलियों से बने विभिन्न उत्पादों को तैयार किया जाता है. पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, ओड़िशा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, गुजरात जैसे तटवर्तीय राज्यों के अलावा जिन राज्यों में मछली का ज्यादा उपभोग होता है, वहां कृत्रिम तरीके से तालाब बनाये जाते हैं. इनमें मछलियों के प्रजनन के लिए अनुकूल वातावरण का निर्माण किया जाता है. ऐसे राज्यों की फेहरिस्त में मुख्यत: शामिल हैं बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, असम, राजस्थान व पंजाब.
क्यों है इतना महत्वपूर्ण
हमारे देश की 80 लाख से भी अधिक जनसंख्या किसी -न-किसी रूप में मत्स्य उद्योग से जुड़ी है. पुराने समय में मछुआरे केवल समुद्र से मछलियां पकड़ कर इन्हें बाजार में बेच दिया करते थे, पर इस तरह से अन्य समुद्री जीवों की जनसंख्या लगातार घटने लगी. इसको देखते हुए मछलियों को पकड़ने और बेचने के साथ ही अब इनके संरक्षण की भी आवश्यकता समझ आने लगी. इसी जरूरा को पूरा करता है फिशरीज साइंस. इसके तहत छात्रों को मछलियों के पालन-पोषण, प्रजनन, सुरक्षा और विभिन्न प्रजातियों को बचाये रखने की शिक्षा दी जाती है.
छात्रों को यह खास तौर से सिखाया जाता है कि किस प्रकार मछलियों और अन्य जीवों को हर तरह से पानी में सुरक्षित रखा जा सकता है. समुद्र एवं नदियों के तट पर रहनेवाली एक बड़ी आबादी की आजीविका इन जलीय जीव-जंतुओं खास कर मछलियों पर ही निर्भर हैं. आज भी मत्स्य उद्योग के प्रति लोगों में जागरूकता की कमी है. देश में उपलब्ध समुद्र, नदियों, नहरों, तालाबों, झीलों आदि में पायी जानेवाली मछलियों का उपयोग केवल भोजन के रूप में ही नहीं, बल्कि कई तरह की जीवनरक्षक दवाएं निíमत करने में भी किया जाता है. इन कार्यो में विशेष प्रकार की मछलियों का प्रयोग होता है. इन मछलियों की मांग विश्व बाजार में बहुत अधिक है. इसी को ध्यान में रखते हुए फिशरीज साइंस की शिक्षा का महत्व आज बढ़ा है.
कोर्स में क्या पढ़ाया जाता है
फिशरीज साइंस का फील्ड काफी बड़ा है, इसके तहत मछली पकड़ने से लेकर उनकी प्रोसेसिंग और सेलिंग तक की जानकारी दी जाती है. इसमें मछलियों का जीवन, इकोलॉजी, उनकी ब्रीडिंग और दूसरे तमाम विषय भी शामिल हैं. इसके तहत स्टूडेंट्स को एक्वाकल्चर, मेरिकल्चर, फिश प्रोसेसिंग, स्टोरेज टेक्नोलॉजी, उनकी बीमारियों का उपचार और इकोलॉजी आदि विविध विषयों के बारे में पढ़ाया जाता है. साथ ही प्रैक्टिकल ट्रेनिंग अहम हिस्सा है. मछली से संबंधित आंकड़े इकट्ठा करना भी इस पढ़ाई में शामिल है.
फिशरीज पैथोलॉजी में मछलियों का सूक्ष्म स्तर पर अध्ययन किया जाता है और उनके स्वास्थ्य संबंधी जानकारी दी जाती है. फिश प्रोसेसिंग टेक्नोलॉजी के तहत मछलियों के संरक्षण के विभिन्न तरीकों और उपायों और मछलियों से बननेवाले उत्पाद के विषय में सिखाया जाता है. अक्वॉटिक्स इनवायरनमेंट साइंस में विभिन्न जलीय जीवों के शारीरिक बारीकियों को समझाया जाता है. इसकी पढ़ाई फिशरीज इंजीनियरिंग के तहत होती है. इस सब्जेक्ट में उपकरण निर्माण के बारे में भी बताया जाता है.
कैरियर की संभावनाएं : मत्स्यपालन ने अब संगठित इंडस्ट्री का रूप ले लिया है. बड़ी-बड़ी कंपनियां लाभ की संभावनाओं को देखते हुए इस ओर कदम बढ़ा रही हैं. इस क्षेत्र में कैरियर की अच्छी संभावनाएं हैं. कोर्स पूरा करने के बाद एक प्रोफेशनलिस्ट के लिए फिशरीज सेक्टर में ढेरों संभावनाएं हैं. इस कोर्स में बैचलर डिग्री प्राप्त करके पब्लिक सेक्टर जैसे डिपार्टमेंट ऑफ फिशरीज व नेशनलाइज्ड बैंकों में बेहतरीन अवसर पा सकते हैं.
इसके अलावा इस स्तर की पढ़ाई से राज्य के कृषि विभाग, सरकारी एजेंसियों और राज्य स्तरीय कृषि विभाग में असिस्टेंट फिशरीज डेवलपमेंट ऑफिसर, डिस्ट्रिक्ट फिशरीज डेवलपमेंट ऑफिसर और फिशरीज एक्सटेंशन ऑफिसर बन सकते हैं. केंद्र सरकार के कृषि विभाग में मरीन प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट ऑथिरिटी, फिशरीज सर्वे ऑफ इंडिया, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ऑसियोनोग्राफी जैसे विभागों में काम कर सकते हैं.
इसके अलावा प्राइवेट और नेशनलाइज्ड बैंकों के कृषि विभाग में फील्ड बैंक ऑफिसर और मैनेजर के तौर पर भी काम कर सकते हैं. निजी क्षेत्र में एक्वाकल्चर फार्म्स, हैचरीज और प्रोसेसिंग प्लांट्स में नौकरी पा सकते हैं. यदि आपकी रुचि रिसर्च में है तो मत्स्य विभागों के सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं और विभागों में आप रिसर्च असिस्टेंट, फिशरीज डेवलपमेंट ऑफिसर, बायोकेमिस्ट, बायोलोजिस्ट और तकनीशियन के पद पर काम कर सकते हैं. कोर्स के बाद आप प्राइवेट फिशिंग कंपनियों में भी विभिन्न पदों पर काम कर सकते हैं. वहीं अगर आप कोर्स के बाद नौकरी न करना चाहें, तो खुद का बिजनेस भी शुरू कर सकते हैं.
प्रमुख संस्थान
* सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फिशरीज एजुकेशन, मुंबई
* कॉलेज ऑफ फिशरीज साइंस, वेरावल ढोली (बिहार)
* कॉलेज ऑफ फिशरीज साइंस, भुवनेश्वर
* कोच्ची यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी, कोच्ची
* इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, खड़गपुर
* कर्नाटक यूनिवर्सिटी, धारवाड़
* नेशनल ब्यूरो ऑफ फिश जेनेटिक रिसोर्स, लखनऊ
कौन-कौन से कोर्स
अगर आपने 12वीं की परीक्षा बायोलॉजी, फिजिक्स और केमिस्ट्री विषयों के साथ पास की है, तो फिशरीज साइंस में बैचलर कोर्स कर सकते हैं. विभिन्न संस्थान चार वर्ष के इस कोर्स में अंतिम वर्ष में छह महीनों के लिए फील्ड ट्रेनिंग के लिए भी भेजते हैं. इसके बाद मास्टर इन फिशरीज साइंस के विकल्प भी हैं.
इस कोर्स की अवधि दो वर्ष की होती है. मास्टर इन फिशरीज साइंस के लिए बीएससी/बीएफएससी की डिग्री या फिर जूलॉजी में बीएससी की डिग्री होना आवश्यक है. चाहें तो एक्वाकल्चर, फिशरीज बायोलॉजी, फिशरीज मैनेजमेंट, फिश प्रोसेसिंग टेक्नोलॉजी में पीएचडी भी कर सकते हैं. इन कोर्सेज के अलावा कई संस्थान फिशरीज मैनेजमेंट में पीजी डिप्लोमा कोर्स भी ऑफर करते हैं. सभी संस्थानों में एडमिशन अखिल भारतीय स्तर पर आयोजित प्रवेश परीक्षा के आधार पर होता है.
फिशरीज को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा उठाये कदम
बिहार सरकार ने मत्स्यकी को कृषि का दर्जा प्रदान किया और मखाना पर जो टैक्स लगाया जा रहा था, उसे समाप्त कर दिया है. उसके बाद 44 करोड़ रुपये का समग्र मत्स्य विकास योजना लागू किया, जिसमें पुराने तालाबों के जीर्णोद्घार पर 50}, फिसफिल मिल निर्माण पर 50}, हेचरी निर्माण में 50}, अर्धजल केंद्र पर 60}, सोलर पंप निर्माण में 90} सब्सिडी राज्य सरकार द्वारा लागू की गयी. इसके अलावा बिहार जलकर प्रबंध अधिनियम 2006 लागू किया जाना, मछलियों का बीमा प्रारंभ किया जाना, प्रतिवर्ष 10 जुलाई को मछुआरा दिवस के अवसर पर मछुआरों की समस्याओं को सुनना, मछुआरों को प्रशिक्षण, पंगिसियस मत्स्य पालन को बढ़ावा देना, कृषि रोड मैप में मत्स्यकी को बढ़ावा देना व मत्स्यकी के विभिन्न योजनाओं का प्रचार-प्रसार राज्य सरकार द्वारा किया जा रहा है.
केंद्र सरकार द्वारा मत्सस्य पालकों के लिए सामाजिक सुरक्षा स्कीम लागू करना, जिसके अंतर्गत राज्य के सभी मछुआरों को सामूहिक जीवन दुर्घटना लागू करना, मछुआरों के लिए स्वालंबन (पेंशन) योजना लागू करना इसके अलावे मछुआरों को नये तालाब निर्माण, पुराने तालाबों के जीर्णोद्घार, नाव, जाल खरीद पर अनुदान मुहैया कराना, मछुआरों के लिए आवास, प्रशिक्षण भवन एवं प्रशिक्षण दिलाना, तालाबों के प्रबंधन, बाढ़ में हुए क्षति में मुआवजा, तालाबों का संरक्षण, फिशरीज कोर्स को बढ़ावा देना, राष्ट्रीय स्तर पर फिसकोफिड की स्थापना एवं अनुदान उपलब्ध कराना, पहचान पत्र उपलब्ध कराना और मत्स्य उत्पादन को विदेशों में निर्यात जैसी नीतियां केंद्र सरकार द्वारा मत्स्यकी को बढ़ावा देने के लिए लागू की गयी है.
(आलेख बातचीत पर आधारित)
प्रस्तुति : अंकुर