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टाइपिंग आसान बना रही है प्रिडिक्टिव टेक्स्ट टेक्नोलॉजी

स्मार्टफोन पर टाइपिंग के वक्त आपके द्वारा टाइप किये अक्षर से शुरू होनेवाले शब्दों के कई विकल्प आपके सामने आ जाते हैं, जिनमें से आप इच्छित शब्द को सेलेक्ट कर अपनी टाइपिंग स्पीड बढ़ा लेते हैं. इसे ही प्रिडिक्टिव टेक्स्ट टेक्नोलॉजी के नाम से जाना जाता है. ऑपरेटिंग सिस्टम आधारित प्रिडिक्टिव टेक्स्टिंग टेक्नोलॉजी के अब […]

स्मार्टफोन पर टाइपिंग के वक्त आपके द्वारा टाइप किये अक्षर से शुरू होनेवाले शब्दों के कई विकल्प आपके सामने आ जाते हैं, जिनमें से आप इच्छित शब्द को सेलेक्ट कर अपनी टाइपिंग स्पीड बढ़ा लेते हैं. इसे ही प्रिडिक्टिव टेक्स्ट टेक्नोलॉजी के नाम से जाना जाता है. ऑपरेटिंग सिस्टम आधारित प्रिडिक्टिव टेक्स्टिंग टेक्नोलॉजी के अब तक के सफर पर नजर डालने के साथ-साथ ऑटोकरेक्ट और प्रिडिक्टिव टेक्सटिंग में फर्क, बच्चों के दिमाग पर इसके असर, भविष्य में इस तकनीक के विकास की संभावनाओं के बारे में बता रहा है आज का नॉलेज..

स्पीड और एक्यूरेसी- टेक्नोलॉजी के गर्भ से निकले दो ऐसे शब्द हैं, जो सही मायने में टेक्नोलॉजी का आम लोगों से परिचय कराते हैं. स्पीड यानी गति और एक्यूरेसी यानी परिशुद्धता, दोनों व्यक्ति विशेष के लिए उतना ही जरूरी है, जितना कि उसके द्वारा निर्धारित किया गया खुद का लक्ष्य. सूचना प्रौद्योगिकी के इस दौर में तकनीक ने लोगों को कंप्यूटर और सेलफोन जैसी तमाम सुविधाएं प्रदान की हैं.

और इन दोनों ही डिवाइसेस का बेहद महत्वपूर्ण हिस्सा है की-बोर्ड या की-पैड, जो इनपुट के लिए प्रयोग में लाया जाता है. आम भाषा में कहें तो की-बोर्ड का इस्तेमाल टाइपिंग, नंबर डायलिंग जैसे कार्यो के लिए किया जाता है. हम जानते हैं कि अक्षरों या शब्दों को स्क्रीन पर देखने के लिए की-बोर्ड की अलग-अलग ‘की’ को दबाना जरूरी होता है. लेकिन जरा सोचिए कि केवल एक ही ‘की’ को दबाने पर आपके सामने आपके मन में चल रहे शब्दों के कई मिलते-जुलते विकल्प स्क्रीन पर दिख जायें, तो कम समय में आप कितनी तेजी से काम कर सकते हैं. ऐसे ही शब्दों को प्रिडिक्टिव टेक्स्ट कहते हैं. पिछले कुछ वर्षो में यह तकनीक तेजी से चलन में आयी है, जिसके विकास की संभावनाएं अभी और भी हैं. मतलब साफ है कि की-बोर्ड पर आपकी अंगुलियों के चलना शुरू करने के साथ ही सेलफोन या कंप्यूटर आपके दिमाग में चल रहे शब्द या वाक्य के कई विकल्प खोज सकता है. इनपुट प्रक्रिया को तेज व सटीक बनाने की दिशा में प्रिडिक्टिव टेक्स्ट टेक्नोलॉजी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है.

क्या है प्रिडिक्टिव टेक्स्ट की तकनीक

प्रिडिक्टिव टेक्स्ट इनपुट टेक्नोलॉजी आधारित एक प्रक्रिया है, जो मोबाइल पर उपभोक्ता को टाइपिंग के दौरान शब्दों के विकल्प को सुझाती है. सुझाये गये शब्दों में से चयन करके टाइपिंग की गति में तेजी लायी जा सकती है. इससे एसएमएस भेजना और मैसेंजर, व्हाट्सएप जैसे विभिन्न एप्लीकेशन में तेजी से रिप्लाई करना आसान हो गया है.

मोबाइल निर्माता कंपनी ‘एप्पल’ द्वारा मुहैया करायी जा रही सेवा आइओएस-8 में उपभोक्ताओं को प्रिडिक्टिव बार फीचर की सुविधा दी जाती है, जिसे ‘क्विकटाइप’ कहते हैं. क्विकटाइप में ‘मशीन लर्निग’ नाम का एक बेहद महत्वपूर्ण घटक काम करता है, जो इस सॉफ्टवेयर को कस्टम डिक्शनरी बनाने में मदद करता है. यह सॉफ्टवेयर यह भी याद रखने में मदद करता है कि उपभोक्ता ने व्यक्ति विशेष से किस प्रकार से संवाद (कम्युनिकेशन) स्थापित किया था. यह सॉफ्टवेयर उपभोक्ता द्वारा पूर्व में इस्तेमाल किये गये शब्दों में से ही उसी प्रकार से उनके विकल्प मुहैया कराता है.

‘व्हाटइज डॉट कॉम’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2012 में इसी प्रकार का प्रिडिक्टिव टेक्स्ट बार ‘जेली बीन 4.1’ ने उपभोक्ताओं को मुहैया कराया था. इस तकनीक का सबसे नया एप्लीकेशन ‘टी9’ (टेक्स्ट ऑन नाइन की) स्मार्टफोन और अन्य छोटी डिवाइसेस के लिए प्रयोग में लाया जा रहा है.

ऑपरेटिंग सिस्टम आधारित प्रिडिक्टिव टेक्स्ट तकनीक

प्रिडिक्टिव टेस्क्ट एप्लीकेशन इनपुट के आधार पर शब्दों को पूरा करता है. इनपुट इंटरफेस डिवाइस के तौर पर कंप्यूटर की-बोर्ड और मोबाइल फोन कीपैड का इस्तेमाल किया जाता है, जिसमें वर्णो (लेटर) को प्रत्येक ‘न्यूमेरल की’ के लिए मैप किया जाता है. दरअसल, प्रिडिक्टिव टेक्स्ट सॉफ्टवेयर आधारित तकनीक होती है, इसलिए ऑपरेटिंग सिस्टम (विंडोज, लिनक्स आदि) की जरूरत पड़ती है. ऑपरेटिंग सिस्टम की मदद से सभी टेक्स्ट-कम्प्लीटिंग एप्लीकेशन रन होते हैं. सभी प्रकार के ऑपरेटिंग सिस्टम चाहे मोबाइल गैजेट्स हों या स्टैंडर्ड कम्यूटर या फिर अन्य इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस, प्रोसेसर से संचालित होते हैं. अत: इसके लिए उपभोक्ता को यह जानना जरूरी होता है कि किस प्रकार का टेक्स्ट इंटर किया गया है और अस्पष्ट की-पैटर्न को कैसे इस्तेमाल करना है. विजुअल डिस्प्ले बड़े कंप्यूटर का मॉनीटर हो सकता है या छोटा लिक्विड क्रिस्टल डायोड यानी एलसीडी. दोनों को संचालित करना और समझना जरूरी होता है.

टी9 एप्लीकेशन है बेहद खास

एंड्रॉयड द्वारा वर्ष 2012 में जेली बीन 4.1 प्रिडिक्टिव टेक्स्ट बार लाने के बाद ज्यादातर स्मार्टफोन में इस एप्लीकेशन का इस्तेमाल होने लगा. इसके बाद नये स्मार्टफोन में इस्तेमाल होने वाले टी9 यानी ‘टेक्स्ट ऑन नाइन की’ ने मल्टी टैपिंग प्रक्रिया को पूर्ण रूप से खत्म कर दिया. मल्टी टैपिंग प्रक्रिया में मोबाइल फोन में टेक्स्ट लिखने के लिए किसी एक ‘की’ को कई बार दबाना होता था. जैसे अंगरेजी के वर्ण ए, बी, सी को टाइप करने के लिए की नंबर दो को कई बार दबाना होता है. ‘ए’ के लिए एक बार, ‘बी’ के लिए दो बार और ‘सी’ के लिए इसे तीन बार दबाना होता है. प्रिडिक्टिव सॉफ्टवेयर के आने के बाद से ‘की’ को बार-बार दबाने के बजाय एक बार में ही दबाने पर पूरा शब्द लिख पाना आसान हो गया है.

टी9 तकनीक को टेजिक कम्युनिकेशन द्वारा विकसित किया गया था. उसके बाद टी9 प्रिडिक्टिव टेक्स्ट बार के विकल्प के रूप में मोटोरोला का आइटैप, रिम का स्योरटाइप और लेटरवाइज व एटोनी का वर्डवाइज एप्लीकेशन बाजार में आया. फिलहाल, ज्यादातर नये स्मार्टफोन में टी9 प्रिडिक्टिव टेक्स्ट एप्लीकेशन पहले से ही मौजूद होते हैं. टी9 की खासियत यह है कि स्मार्टफोन यूजर द्वारा कोई टाइप किया गया शब्द यदि टी9 की डिक्शनरी में उपलब्ध नहीं है, तो वह शब्द प्रिडिक्टिव डाटाबेस से जुड़ जाता है. अगली बार लिंक होने पर यह शब्द स्मार्टफोन पर डिस्प्ले होने लगता है. टी9 सॉफ्टवेयर की प्रक्रिया उपभोक्ता के अनुभवों पर आधारित होती है. ‘एबाउट डॉट कॉम’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एक ही न्यूमेरिक सिक्वेंस (अंक आधारित अनुक्रम) से इसमें कई शब्द टाइप किये जा सकते हैं. जैसे कोई यूजर ‘4663’ टाइप करता है तो ँ,ि ँेी, ॅल्ली का विकल्प सामने आता है. इस प्रक्रिया को तकनीक की भाषा में ‘टेक्स्टोनिम्स’ कहा जाता है. इसके अलावा, टी9 के अत्याधुनिक संस्करण में स्मार्ट पंक्चुएशन की सुविधा होती है, जहां यूजर किसी शब्द या शब्दों के युग्म को शॉर्टफॉर्म में टाइप कर सकते हैं. नया प्रिडिक्टिव टेक्स्ट बार टी9 शब्द युग्मों को भी पढ़ने में सक्षम होता है. अगर आप ‘कम’ टाइप करने जा रहे हैं, तो आपके सामने ‘कम ऑन’ लिखा विकल्प उपलब्ध होता है.

बच्चों के दिमाग पर हो रहा है प्रिडिक्टिव टेक्स्टिंग का असर

प्रिडिक्टिव टेक्स्ट मैसेजिंग बच्चों के दिमाग को प्रभावित करने और सामान्य गलतियां करने के लिए जिम्मेवार होता है. ‘डेली मेल’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वर्ष 2009 में हुए एक सर्वे में पाया गया था कि प्रिडिक्टिव टेक्स्ट एप्लीकेशन का इस्तेमाल करनेवाले काम तो तेजी से करते हैं, लेकिन उनके गलतियां करने की संभावनाएं उतनी ही अधिक होती हैं. इससे बच्चों के सामान्य जीवन और बर्ताव पर भी असर पड़ता है.

आधुनिक स्मार्टफोन में बिल्ट-इन डिक्शनरी लोगों को एक ‘की’ प्रेस करने पर कई शब्द उपलब्ध कराती है. अमूमन प्रत्येक की से तीन शब्द लिखे जा सकते हैं. इससे मिस-कम्युनिकेशन की समस्या उत्पन्न हो सकती है, क्योंकि कुछ शब्द एक जैसी ही ‘की’ की मदद से टाइप किये जाते हैं. अध्ययन के मुताबिक, मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने वाले बच्चों का आइक्यू स्तर भी प्रभावित होता है. ‘बायोइलेक्ट्रोमैग्नेटिक’ जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में शामिल इपिडेमोलॉजिस्ट के प्रोफेसर माइकल अब्राम्सन का मानना है कि फोन का इस्तेमाल करने वाले बच्चे कुछ टेस्ट में काफी तेज पाये गये, लेकिन ज्यादातर की एक्यूरेसी कम थी. इसके पीछे उन्होंने प्रिडिक्टिव टेक्स्ट जैसे एप्लीकेशन को जिम्मेवार माना था. प्रोफेसर माइकल का मत है कि ऐसे बच्चे जिनके दिमाग का विकास हो रहा है, उनके लिए प्रिडिक्टिव टेक्स्टिंग जैसे सॉफ्टवेयर नुकसानदायक साबित होते हैं. उन्होंने कहा कि वह मोबाइल फोन के इस्तेमाल को गलत नहीं मानते, लेकिन प्रिडिक्टिल टेक्स्टिंग में जहां शब्द स्वत: मिल जाते हैं, ऐसे में बच्चों को हर जगह ऐसी ही उम्मीद पालने की आदत हो जाती है.

अंतर है ऑटोकरेक्ट और प्रिडिक्टिव टाइपिंग में

मोबाइल फोन में टाइपिंग करते समय तकनीकी रूप से मिलनेवाली सहायता ऑटोकरेक्ट और प्रिडिक्टिव टाइपिंग दोनों महत्वपूर्ण हैं. ऑटोकरेक्ट की स्थिति में आपको बहुत सावधानी बरतने की जरूरत होती है. ऑटोकरेक्ट एप्लीकेशन में टाइपिंग के समय लापरवाही बरतने पर गलत लिखे जाने की संभावना ज्यादा होती है.

‘लूपइनसाइट डॉट कॉम’ के अनुसार, थोड़ी सी भी असावधानी होने पर ऑटोकरेक्ट एप्लीकेशन आपकी टाइपिंग को हाइजैक कर सकता है, जबकि प्रिडिक्टिव टाइपिंग पूरी तरह से आपपर निर्भर होती है. दोनों में मूल अंतर यह है कि ऑटोकरेक्ट हमें यह बताने का प्रयास करता है कि जो भी हम टाइप पर कर रहे हैं, उसमें वर्तनी की त्रुटि तो नहीं है? प्रिडिक्टिव टाइपिंग एप्लीकेशन, टाइपिंग के संदर्भ को समझने का प्रयास करता है. ऑटोकरेक्ट में किसी शब्द के लिखने के बाद आप स्पेस के लिए हिट करते हैं तो आइओएस-8 जैसे स्मार्ट ऑपरेटिंग सिस्टम आपको जरूरत के मुताबिक संशोधन का विकल्प सुझाते हैं. अगर आपको सुधार की जरूरत नहीं है तो इसे डिलीट करके आगे बढ़ सकते हैं, लेकिन आपकी मूल टाइपिंग में बबल दिखाई पड़ता रहेगा. नये स्मार्टफोन में टाइपिंग करते समय स्पेस को एप द्वारा खुद-ब-खुद व्यवस्थित कर लिया जाता है. पंक्चुएशन मार्क भी जरूरत के मुताबिक उपलब्ध होता है.

क्या दिमाग को पढ़ लेगा फोन!

एक बार मशहूर अमेरिकी कॉमेडियन पैटन ओस्वाल्ट ने एक कहानी में अपनी महिला मित्र के साथ हुए संवाद का जिक्र करते हुए कहा था कि उनकी महिला मित्र ने लिखा- ‘आइ लव यू’. ओस्वाल्ट ने जवाब में ‘आइ लव यू टू’ लिखा. इसके बाद ‘आइ.. ’ और ‘..हेट..’ के साथ दोनों एक दूसरे से संवाद करने लगे और दोनों को बीच प्रिडिक्टिव टेक्स्ट का सिलसिला शुरू हो गया.

वर्ष 2009 में प्रिडिक्टिव टेक्स्ट बिल्कुल नयी प्रक्रिया थी. ओस्वाल्ट ने उस समय इस कहानी का बेहद सामान्य तरीके से जिक्र किया था. लेकिन पांच वर्ष बाद स्मार्ट व तेज प्रोसेसर और उसके साथ वायरलेस ब्रॉडबैंड ने स्मार्टफोन में प्रिडिक्शन की इस प्रक्रिया को इतना आसान बना दिया कि यूजर के दिमाग में क्या चल रहा है और वह आगे क्या करने वाला है, यह डिवाइस उसे भांप लेती है.

एप्पल के नये मोबाइल ऑपरेटिंग सिस्टम आइओएस-8 ने थंब्स और स्पीच रिकॉग्निशन के साथ प्रिडिक्शन को तेज कर दिया है. स्पीच रिकॉग्निशन की प्रक्रिया उपयोग में लायी जानेवाली सामान्य अंगरेजी पर आधारित होती है. अस्पष्ट शब्दों की स्थिति में सॉफ्टवेयर डाटाबेस में उपलब्ध शब्दों से उसका मिलान करने का प्रयास करता है. अगर कंप्यूटर को सुनाई देता है कि ‘फोर स्कोर एंड सेवेन एगो’ तो सॉफ्टवेयर डाटाबेस को स्कैन करने के बाद अनुमान लगाता है कि शायद यह शब्द ‘इयर्स’ हो सकता है. आइओएस-7 में लिखे गये पूरे पैराग्राफ का जिम्मेवार यूजर स्वयं होता था. ‘डन’ टाइप करने के बाद अगले टेक्स्ट के लिए यूजर को कुछ सेकेंड के लिए रुकना पड़ता था. जबकि आइओएस-8 में डिस्प्ले होनेवाला शब्द उच्चरणवाले शब्द के बेहद करीब होता है. बहुत कम समय में सही शब्दों के टाइप होने से भाषा विज्ञानियों को सॉफ्टवेयर के दिमाग का लोहा मानना पड़ता है. जैसे कि यूजर ने ‘फोर स्कोर एंड सेवेन ररररर्स एगो’ का उच्चरण किया, तो शुरू के चार शब्द तो आसानी से प्रदर्शित हो जायेंगे. अगले शब्द के लिए सॉफ्टवेयर कुछ पल के लिए ठहरता है और हम्म्म्म या ररररर्स जैसी ध्वनि के लिए डाटाबेस खंगालता है. लेकिन ‘फोर स्कोर एंड सेवेन’ की ध्वनि के आधार पर यह आसानी से परख लेता है कि अगला शब्द ‘इयर्स’ ही होगा और इसे प्रदर्शित कर देता है.

आइओएस-8 की दूसरी बड़ी खासियत टाइपिंग के लिए प्रिडिक्टिव टेक्स्ट की है. किसी संदेश या इ-मेल को लिखते वक्त यूजर को शब्दों के तीन विकल्प मिलते हैं. ये तीनों शब्द लिखे जानेवाले संभावित शब्द से काफी मिलते-जुलते हैं. स्पीच रिकॉग्निशन के लिए सॉफ्टवेयर को वास्तविक इंगलिश टेक्स्ट से जोड़ना जरूरी होता है, लेकिन एप्पल का दावा है कि सॉफ्टवेयर व्यक्ति विशेष से सीखने में सक्षम होता है.

आइओएस-8 को किसी के लेख आदि लिखनेवाले की आदत को सीखने में एक माह का समय लगता है. एप्पल तीन शब्दों पर गौर करता है कि लेखक सामान्य तौर पर ‘आइ’, ‘द’ और ‘आइएम’ से शुरुआत करता है. आइ दबाने पर सॉफ्टवेयर तीन शब्दों के लिए विकल्प सुझाता है-‘लव’, ‘डॉन्ट’ और ‘जस्ट’. कई वाक्यों को सिस्टम अपने अनुमान के आधार पर दोहराता है.

(‘द इकोनॉमिस्ट’ के ब्लॉग से साभार)

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