अनुज कुमार सिन्हा
जापानियों की एक खूबी है. वे हार नहीं मानते. सब कुछ तहस-नहस हो जाये, फिर भी अपनी मेहनत और जुनून से उसे खड़ा कर लेते हैं. चाहे अमेरिका द्वारा गिराये गये परमाणु बम के बाद की स्थिति हो या फिर भूकंप-सुनामी के कारण तबाही, जापानी एकजुट हुए और खुद रास्ता निकाल लिया,अपनी पहचान बनायी. दुनिया को दिखा दिया कि लगन हो तो कुछ भी असंभव नहीं हो. वे हाथ पर हाथ रख कर बैठना नहीं जानते.
बचपन में पढ़ा करता था कि जापान में भूकंप बहुत आता है, इसलिए वहां लकड़ी का घर होता है. अब जापान बदल गया है. तकनीकी तौर पर इतना समृद्ध कि भूकंप की जानकारी उसे पहले मिल जाती है. भवन ऐसे बन रहे हैं कि भूकंप का उन पर असर नहीं पड़ता. सिर्फ प्राकृतिक आपदा की ही बात नहीं है. हिरोशिमा और नागासाकी में 1945 के परमाणु हमले के बाद से जापान अपनी सुरक्षा के प्रति बहुत ही गंभीर है. इसका उदाहरण देखने को उस समय मिला, जब हम सभी 29 मई को जापान के प्रधानमंत्री के कार्यालय में जा रहे थे.
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे एटमी डील समेत कई मुद्दों पर हस्ताक्षर कर, संयुक्त संबोधन करनेवाले थे. यह कार्यालय तोक्यो के कानतेई में है. पूरी जांच के बाद हमलोगों को कार्यालय के अंदर ले जाया जा रहा था. लगा किसी तहखाने में जा रहा हूं. सीढ़ी से उतर रहा था. गिना तो नहीं, पर बताया गया कि जमीन से चार तल्ला नीचे पहुंच चुके हैं. बिल्कुल सुरक्षित स्थान. अगर कभी मिसाइल से हमला भी होता है, तो यहां कोई असर नहीं पड़नेवाला. जापान ने ऐसे ही अपने महत्वपूर्ण स्थानों को सुरक्षित कर लिया है.
जापान का भी अपने कई पड़ोसियों से बेहतर संबंध नहीं है. चीन के साथ सेनकाकू द्वीप पर विवाद है. रूस के साथ भी विवाद है. पर हाल में उसे सबसे ज्यादा खतरा उत्तरी कोरिया से आया है. जब उत्तरी कोरिया ने धमकी देते हुए अपनी मिसाइल का रुख तोक्यो की ओर कर दिया, तो जापान ने अपनी सुरक्षा में पीएससी-3 मिसाइल इंटरसेप्टर यूनिट तैनात कर दिया, ताकि हमले से बचा जा सके. पर एक बात सच है कि आम जापानी अभी भी 1945 की बरबादी को भूल नहीं सके हैं. वे परमाणु बम, परमाणु हथियार के खिलाफ हैं. वैसे भी 2011 में जापान के हुकुसामा में परमाणु रिएक्टर में हुए विस्फोट के बाद जापानी इस तकनीक के खिलाफ खड़े हैं.
यही कारण है कि 29 मई को इधर भारत और जापान के प्रधानमंत्री आपस में परमाणु समझौते को आगे बढ़ाने की बात कर रहे थे, उसी समय सैकड़ों लोग जापान के प्रधानमंत्री कार्यालय के बाहर न्यूक्लियर विरोधी प्रदर्शन कर रहे थे. दरअसल जापानियों ने परमाणु हादसे के दर्द को ङोला है, इसलिए वे इसके विरोध में खड़े हैं.
जापान को परमाणु बम से जो तबाही मिली, उससे कम तबाही भूकंप से नहीं मिली. 1923 के भूकंप में जापान बरबाद हो गया था. थोड़ा संभला तो अमेरिका ने परमाणु बम गिरा दिया. अपने श्रम, तकनीक, बेहतर करने के हठ और कर्मठता से जापानियों ने बहुत हद तक भूकंप से होनेवाली क्षति पर अंकुश लगा लिया है. अब तोक्यो में पुराने और पारंपरिक मकान नहीं दिखते.
बहुमंजिली इमारतें बनती हैं और इन्हें बनाने की तकनीक ऐसी होती है कि इस पर भूकंप का असर नहीं पड़ता. रेनबो समेत जितने भी पुल बन रहे हैं, वे भूकंपरोधी हैं. दुनिया का सबसे ऊंचा टावर स्काई ट्री तोक्यो में है जिस पर भूकंप का कोई असर नहीं पड़नेवाला. जापान के अस्पताल, प्रयोगशाला या मध्यम ऊंचाई के भवन (100 फीट तक) बड़े रबर या तरल भरे साक आब्जर्बर पर टिके होते हैं.
जापान ने बिल्डिंग नियम भी कड़े बनाये हैं. जहां कहीं भी लकड़ी के भवन हैं, वे दोमंजिले से ज्यादा ऊंचे नहीं हो सकते. विशेष परिस्थिति में ही तीन मंजिला हो सकता है. जहां तक कंक्रीट भवन का सवाल है, वे नयी तकनीक से बन रहे हैं. जापान में पुराने मकान नहीं दिखते. वहां नियम बना कर भवनों की उम्र तय की जा चुकी है. हर 20 साल में लकड़ी के मकान, हर 30 साल में कंक्रीट के मकान/भवन को ध्वस्त कर देना होता है.
उनकी जगह नये भवन बनते हैं. अभी हाल में जापान में 88 ऐसे मकान बन रहे हैं जो भूकंप आने के एक सेकेंड के अंदर जमीन से तीन सेंटीमीटर ऊपर उठ जाता है. ऐसे मकानों का बेस कंक्रीट का होता है. इसके एयरबैग होता है. उसके ऊपर मकान. जैसे ही सेंसर भूकंप की जानकारी देता है, एक सेकेंड के अंदर एयरबैग हवा से भर जाता है और मकान तीन सेंटीमीटर ऊपर उठ जाता है. जब तक भूकंप रहता है, मकान ऊपर ही रहता है. इसे जापान की कंपनी एयर डैनशिन ने तैयार किया है. बिल्डिंग तकनीक में जापान अमेरिका से काफी आगे निकल चुका है.
(अंतिम किस्त कल)