मेरा एक दोस्त दिल्ली में इसरो की परीक्षा दे कर आया. पेपर कैसा गया? इस सवाल के जवाब में उसने अपना एडवेंचरस किस्सा बताया. उसने कहा कि जब वह ट्रेन में बैठ गया, तो उसे ध्यान आया कि परीक्षा का टाइम तो उसने देखा ही नहीं है.
उसने मोबाइल में नेट ऑन किया और टाइम देखा. उसे लगा था कि परीक्षा एक बजे शुरू होगी, लेकिन यहां तो 10 बजे का समय लिखा था. अब उसने भगवान से प्रार्थना की कि ट्रेन सही वक्त 8.35 पर पहुंच जाये, ताकि वह एग्जाम सेंटर सही समय पर जाये.
लेकिन ऐसा हुआ नहीं. ट्रेन 9.15 बजे दिल्ली स्टेशन पहुंची. उसे लेने आये दोस्त ने कहा कि एग्जाम में रिपोर्टिग टाइम 9 बजे था. अभी तो तुम्हें सेंटर में पहुंचने में ही वक्त लग जायेगा. अब एग्जाम सेंटर जाना ही बेकार है. वहां सेंटर के लोग आसानी से घुसने भी नहीं देंगे. बेवजह डांटेंगे कि लेट क्यों आये.
मेरे दोस्त ने कहा कि मैं ट्राय जरूर करूंगा. वह अपने दोस्त की बाइक पर बैठा और सेंटर पहुंचा. वह लगभग 10.10 बजे सेंटर पहुंचा. सभी अंदर थे. उसे डर था कि टीचर्स डांटेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. बाहर खड़ा गार्ड तुरंत उसे रूम तक ले गया. टीचर ने भी जगह बतायी. मेरा दोस्त भाग-भाग कर पहुंचने की वजह से हाफ रहा था और हड़बड़ी में बैग से सामान निकाल रहा था. तभी एक टीचर हाथ में एक गिलास ठंडा पानी ले कर आयी. वह उसे पानी देते हुए बोली, ‘हड़बड़ाओ मत. पानी पी लो और पांच मिनट शांत हो कर बैठो. लंबी सांसें लो. टाइम निकलने की चिंता मत करो.
मैं तुम्हें 10 मिनट एक्स्ट्रा टाइम दे दूंगी, लेकिन पहले रिलेक्स हो जाओ.’ दोस्त ने यही किया. हालांकि उसे एक्स्ट्रा टाइम की जरूरत ही नहीं पड़ी, लेकिन उसे इस बात की खुशी हुई कि उस टीचर ने इतना सपोर्ट किया. दोस्त ने किस्सा खत्म करने के बाद कहा, ‘उन मैम की जगह कोई और होता, तो मुङो पहले खूब सुनाता. मना कर देता कि आप लेट हो गये हो. ये कोई आने का वक्त है क्या? वह इतनी आसानी से हॉल में बैठने भी नहीं देता. समय तो एक्स्ट्रा बिल्कुल नहीं देता.’ दोस्त ने आगे कहा, ‘काश सभी टीचर इतने सपोर्ट करने वाले होते.’
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