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कोमा में पड़े शख़्स की अद्भुत ‘प्रेम कथा’

सुहैल हलीम बीबीसी उर्दू संवाददाता ये "लव जिहाद" के माहौल में एक अनोखी प्रेम कहानी है जो आपको जीवन और मृत्यु दोनों के बारे में सोचने पर मजबूर कर देगी. मैं इच्छा-मृत्यु पर स्टोरी करने के लिए घर से निकला था कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर में मेरी मुलाक़ात आइवी सिंह और उनकी […]

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ये "लव जिहाद" के माहौल में एक अनोखी प्रेम कहानी है जो आपको जीवन और मृत्यु दोनों के बारे में सोचने पर मजबूर कर देगी.

मैं इच्छा-मृत्यु पर स्टोरी करने के लिए घर से निकला था कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर में मेरी मुलाक़ात आइवी सिंह और उनकी मुंहबोली बेटी भूमिका से हुई.

आइवी अपने ही घर में एक छोटा सा स्कूल चलाती हैं. बच्चों की चहल-पहल की आवाज़ दोपहर तक तो घर में गूंजती रहती है फिर एक चुप्पी सी छा जाती है. इस घर में एक ऐसा शख़्स भी रहता है जिनकी असाधारण कहानी, इच्छा-मृत्यु पर पहले से ही जटिल बहस को और उलझा देती है.

पढ़िए आनंद सिंह की पूरी कहानी

इस बेहद ख़ूबसूरत शख़्स का नाम आनंद सिंह है जो कि आइवी सिंह के पति हैं. आनंद सिंह की जवानी की तस्वीरें देखें तो किसी फ़िल्म स्टार से कम नहीं. लेकिन ये पच्चीस साल पहले की बात है.

वे भारतीय नौसेना में कार्यरत थे, आइवी से शादी के कुछ महीने बाद छुट्टियों के लिए घर लौट रहे थे कि उनकी मोटरसाइकिल दुर्घटना का शिकार हो गई. मस्तिष्क में चोट लगी और उनका जीवन हमेशा के लिए बदल गया.

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अब वह न बोल सकते हैं, न खा सकते हैं, न चलफिर सकते हैं और डॉक्टरों के अनुसार उनके फिर से सक्रिय होने की संभावना नहीं है.

पच्चीस साल से वह बिस्तर पर पड़े हैं, नाक में ट्यूब डली हुई है, खाने के लिए वो टयूब का और खिलाने के लिए आइवी का सहारा लेते हैं.

आइवी सिंह की कहानी

इन पच्चीस वर्षों में उनकी हर ज़रूरत आइवी सिंह ने पूरी की है. उनकी उम्र लगभग 48 साल है.

शादी के समय उन्होंने जवानी में क़दम रखा ही था कि इस हादसे ने उनका जीवन भी हमेशा के लिए बदल दिया.

वे बताती हैं, "हम केवल छह-सात महीने ही साथ रहे. वह भी लगातार नहीं, क्योंकि आनंद की नौकरी ही ऐसी थी और फिर यह दुर्घटना हो गई. तब से मेरा जीवन आनंद की देखभाल में ही गुज़रा है."

(कीनियाई लड़का, भारतीय लड़की की प्रेम कहानी)

जिस कमरे में आनंद दिन-रात लेटे रहते हैं, वह किसी अस्पताल के कमरे से कम नहीं है. एक अलमारी दवाइयों से भरी हुई है और उसमें ज़रूरत का सारा सामान मौजूद है, इंजेक्शन की सिरिंज से लेकर ‘नेबोलाइज़र’ ट्यूब तक. आइवी खुद एक प्रशिक्षित नर्स से कम नहीं हैं.

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मैं झिझकते हुए वो दो सवाल पूछ ही लेता हूँ जो मेरे दिल में तो हैं लेकिन ज़ुबान पर आसानी से नहीं आते कि क्या आपने आनंद को छोड़कर कभी दूसरी शादी के बारे में नहीं सोचा? और आपने अपना जीवन तो आनंद को जीवित रखने में गुज़ार दिया लेकिन वो क्या हालात होंगे जिनमें आप भी ‘मर्सी किलिंग’ या इच्छा मृत्यु का समर्थन कर सकती हैं?

आईवी बताती हैं, "यदि कोई व्यक्ति कोमा में हो, पूरी तरह बेहोश और परिवार के पास इतना पैसा नहीं हो कि देखभाल कर सके तो यह किया जा सकता है क्योंकि उसे तो कुछ पता ही नहीं …" और "हाँ मैंने शादी के बारे में सोचा था, लेकिन मेरी एक शर्त थी कि मेरे जीवन में जो भी दूसरा व्यक्ति आए उसे आनंद को भी स्वीकार करना होगा!"

आइवी सिंह के जीवन में कोई दूसरा व्यक्ति तो नहीं आया. वे कहती हैं, "बीमार कोई जानबूझकर तो होता नहीं, शायद यही मेरी तक़दीर थी, मेरे माता-पिता ने हमेशा ही सिखाया था कि जिससे शादी हो रही है उसके दुख और परेशानी में शामिल रहना."

लेकिन दस साल पहले उन्होंने एक बच्ची को गोद लेने का फ़ैसला किया.

भूमिका की कहानी

आइवी सिंह बताती हैं, ”भूमिका एक यतीमख़ाने में पल रही थी. मुझे बेटी चाहिए थी, मैं उसे घर ले आई.”

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अब भूमिका की उम्र दस-ग्यारह साल है. स्कूल से लौटते ही वह आनंद सिंह के साथ खेल में लग जाती है. "मुंह खोलो, मुंह बंद … बोलो ए, बी, सी … सब चीज़ें एक ही तरह बोलोगे…!"

मुझे भी आनंद की बेजान आँखों में थोड़ी चमक नज़र आती है. वो गले से कुछ आवाज़ तो निकालने की कोशिश करते हैं लेकिन शायद इसका मतलब आइवी और भूमिका ही समझ सकते हैं.

भूमिका भी अब पूरी फुर्ती के साथ वह सारे काम करती है जो पच्चीस वर्षों से आइवी करती आई हैं. इस बच्ची ने अपने जीवन का रास्ता भी तय कर रखा है, बड़े होकर वह डॉक्टर बनना चाहती है.

मुश्किल सा सवाल

आइवी और नन्ही भूमिका ने आनंद को ज़िन्दा रखा है. "उन्हें कुछ दिनों के लिए अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा तो घर बिल्कुल सूना हो गया."

(इच्छा मृत्यु पर कहां क्या है कानून?)

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लेकिन मेरे मन में यह सवाल उठता है कि जो प्यार और देखभाल आनंद को मिली है, वो दूसरे कितने लोगों को मिल पाती होगी? कितने लोग आईवी की तरह अपना जीवन क़ुर्बान करने का जज़्बा रखते होंगे और यदि मरीज़ के ठीक होने की कोई संभावना न हो तो क्या उन्हें ये क़ुर्बानी देनी भी चाहिए?

यही चर्चा आजकल हिंदुस्तान में चल रही है. क्या जीवन के अधिकार में मृत्यु का अधिकार भी शामिल है? किन परिस्थितियों में किसी व्यक्ति को अपना जीवन ख़त्म करने का अधिकार होना चाहिए? जीवन का मालिक कौन है और यह मुश्किल फ़ैसला करने के लिए अधिकृत व्यक्ति कौन है?

यह ज़िंदगी और मौत का सवाल है. ज़िंदगी कब जीने लायक़ नहीं रहती, इस जटिल सवाल का कोई आसान जवाब नहीं है.

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