बॉलीवुड के मशहूर अभिनेता ओम पुरी का कहना है कि उनकी शक्ल-ओ-सूरत तो ऐसी नहीं थी कि फ़िल्मों में आएं, लेकिन बकौल उनके आर्ट फ़िल्मों के चलते वह ‘बच गए’.
बीबीसी से खास बातचीत में ओम पुरी ने कहा, “भारत में आर्ट फिल्मों की वजह से मैं और नसीरुद्दीन शाह जैसे अभिनेता बच गए. क्योंकि जिस तरह की शक्ल-सूरत कमर्शियल सिनेमा को चाहिए, वैसे हम नहीं हैं. हम चिकने नहीं हैं.”
ओम पुरी से ये बातचीत हुई उनकी हॉलीवुड फ़िल्म ‘द 100 फुट जर्नी’ के सिलसिले में जो शुक्रवार को रिलीज़ हुई.
फ़िल्म के निर्देशक स्टीवन स्पीलबर्ग हैं. इसी के प्रमोशन के लिए ओम पुरी अमरीका आए हुए थे.
(कमर्शियल फ़िल्मों ने नाराज़ ओम पुरी)
‘मन माफ़िक किरदार नहीं’
ओम पुरी बताते हैं, “मेरी हमेशा से यह ख़्वाहिश रही है कि मैं एक हरफनमौला कलाकार के तौर पर पहचान बनाऊं. फ़िल्म ‘आक्रोश’ तक तो मुझे सीरियस एक्टर माना जाता था. उसे तोड़ने के लिए मैंने एक हास्य नाटक बिच्छू में मुख्य भूमिका निभाई, तब जाकर मुझे एक कॉमेडी फ़िल्म में भी रोल मिला.”
और वो फ़िल्म थी कुंदन शाह निर्देशित ‘जाने भी दो यारो’.
कमल हासन की फ़िल्म ‘चाची 420’ में भी उनकी हास्य भूमिका को सराहा गया. लेकिन उनके मुताबिक़ अब मन-माफ़िक किरदार मिल नहीं रहे.
थिएटर
ओम पुरी कहते हैं, “पिछले 35 सालों में मैं कभी एक हफ़्ता भी घर में नहीं बैठा, इसलिए आदत पड़ गई है काम करने की. अब जबकि ज़्यादा फ़िल्मों का काम नहीं मिल रहा तो अब मैं स्टेज में वापस जा रहा हूं. कुछ फ़िल्में भी करते रहेंगे.”
(कॉमेडी के लिए भी गंभीरता ज़रूरी: ओम पुरी)
अब वह ‘तुम्हारी अमृता’ का पंजाबी संस्करण का नाटक कर रहे हैं, जो काफ़ी पसंद किया जा रहा है.
ओम पुरी अब हिंदी में ‘एनेमी ऑफ़ द पीपल’ का स्टेज मंचन भी करने जा रहे हैं.
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