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पाकिस्तानी टिड्डे के हमले से कैसे लड़े उत्तरी गुजरात के किसान

<figure> <img alt="BBC" src="https://c.files.bbci.co.uk/139AF/production/_110330308_fb2be600-ccc1-43d8-8f0f-cb570ccf2c89.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><p>दो सप्ताह पहले पाकिस्तान की ओर से भारत में दाख़िल हुए एक बड़े टिड्डी दल ने गुजरात के किसानों को रुलाकर रख दिया है.</p><p>उत्तरी गुजरात के बनासकांठा ज़िले में इस टिड्डी दल ने सरसों, अरंडी, मेथी, गेहूँ और जीरे की फसल को भारी नुकसान पहुँचाया है.</p><p>गुजरात के […]

<figure> <img alt="BBC" src="https://c.files.bbci.co.uk/139AF/production/_110330308_fb2be600-ccc1-43d8-8f0f-cb570ccf2c89.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><p>दो सप्ताह पहले पाकिस्तान की ओर से भारत में दाख़िल हुए एक बड़े टिड्डी दल ने गुजरात के किसानों को रुलाकर रख दिया है.</p><p>उत्तरी गुजरात के बनासकांठा ज़िले में इस टिड्डी दल ने सरसों, अरंडी, मेथी, गेहूँ और जीरे की फसल को भारी नुकसान पहुँचाया है.</p><p>गुजरात के किसान संगठनों के अनुसार आठ हज़ार हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में खड़ी फसल को इस टिड्डी दल ने नुकसान पहुँचाया है और बनासकांठा ज़िले की सुईगाम, डांटा, थराड और वाव तहसीलों के किसान इससे सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए हैं.</p><p>हालांकि गुजरात सरकार का दावा है कि स्थिति अब नियंत्रण में है और पाँच हज़ार हेक्टेयर से अधिक भूमि पर तक़रीबन 4,900 लीटर कीटनाशक का स्प्रे करके या तो टिड्डियों को मार दिया गया है या उन्हें खदेड़ा गया है.</p><p>साथ ही राज्य के कृषि विभाग ने ख़राब हुई फसल के बदले में किसानों को मुआवज़ा देने का आश्वासन दिया है.</p><p>टिड्डी दल के हमले से किसान कैसे निपटे, फसल का कितना नुकसान हुआ है और फ़िलहाल वे बचाव के लिए क्या कर रहे हैं, इन सवालों के जवाब ढूंढने के लिए <strong>बीबीसी संवाददाता तेजस वैद्य</strong> बनासकांठा पहुँचे.</p><figure> <img alt="बीबीसी" src="https://c.files.bbci.co.uk/1317B/production/_110330287_54e24be4-0550-44b6-9e46-b02f86185da9.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><h3>किसानों की व्यथा</h3><p>बनासकांठा ज़िले के नारोली गाँव में उनकी मुलाक़ात कुछ किसानों से हुई जो टिड्डियों को उड़ाने के लिए खेतों में जमा हुए थे.</p><p>इन लोगों के हाथों में थालियाँ थीं. टिन के डब्बे थे और उन्हें बजाने के लिए सभी ने लड़कियाँ ले रखी थीं.</p><p>इन्हें पीटने पर जो आवाज़ निकलती है, वो खेतों में काफ़ी दूर तक सुनाई देती है.</p><p>स्थानीय लोगों का तजुर्बा है कि टिड्डियाँ तेज़ आवाज़ सुनकर अपनी जगह छोड़ देती हैं.</p><p>लेकिन इस काम में उनका बहुत सारा वक़्त ज़ाया हो रहा है और फसल बचाने के लिए यह मेहनत फ़िलहाल उनकी मजबूरी बनी हुई है.</p><p>नारोली गाँव में रहने वाली कमला पटेल ने बताया कि &quot;पूरा परिवार टिड्डियाँ उड़ाने में लगा है. खाना खाने का वक़्त नहीं निकाल पा रहे. ये हो क्या रहा है, हमें समझ नहीं आ रहा. घर के मवेशियाँ का काम नहीं कर पा रहे. बस सुबह उठते हैं और ये बर्तन लेकर खेतों में आ जाते हैं. फिर भी फसल को काफ़ी नुकसान हो चुका है.&quot;</p><figure> <img alt="bbc" src="https://c.files.bbci.co.uk/4B03/production/_110330291_46d84f57-f02c-4aad-8829-eda154e1aa4a.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><p>इसी गाँव में रहने वाली पार्वती पटेल की ज़ीरे और मेथी की फसल को काफ़ी नुकसान हुआ है.</p><p>वो कहती हैं, &quot;फसल बोने के बाद हमने इसमें दो महीने लगाये. पर ये टिड्डियाँ दो घंटे में फसल का आधे से ज़्यादा हिस्सा चबा गईं.&quot;</p><p>पार्वती पटेल बताती हैं कि उनके इलाक़े में नाज़ुक फसलें होती हैं. जैसे सरसो, मेथी और जीरा. इन फसलों को अधिक रखरखाव चाहिए. टिड्डियों का हमला ये फसलें नहीं झेल सकतीं.</p><p>इसी गाँव के लक्ष्मण पटेल नुकसान का अंदाज़ा देने के लिए बताते हैं कि उन्होंने तीन बीघे में जीरा, दो बीघे में सरसो, एक बीघे में अरंडी, पाँच बीघे में मेथी बोई थी. अगर फसल ठीकठाक रहती तो इसके बदले उन्हें पाँच लाख रुपये तक मिल सकते थे. लेकिन टिड्डियाँ फसल का एक बड़ा हिस्सा खा गईं.</p><p>उन्हें डर है कि बची हुई उनकी ख़राब फसल के लिए उन्हें पैसा मिलेगा भी या नहीं.</p><p>गाँव के लोग बताते हैं कि 14 दिसंबर को उनके इलाक़े में पाकिस्तान की ओर से आई टिड्डियों की ख़बर फैली थी.</p><figure> <img alt="बीबीसी" src="https://c.files.bbci.co.uk/17F9B/production/_110330289_f73bc281-0a62-4338-9688-e31926fce302.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><h3>कैसे टिड्डियों को मारा गया</h3><p>गुजरात के कृषि मंत्री आर सी फलदू ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि टिड्डों की संख्या से ही यह पता चलता है कि इन्होंने फसल को कितना नुकसान पहुँचाया होगा. पर केंद्रीय सरकार और राज्य सरकार द्वारा बनाई गई टीमें लगातार इस पर काम कर रही हैं.</p><p>राज्य के कृषि विभाग के अधिकारियों का कहना है कि टिड्डी दल के एक बड़े हिस्से का नष्ट कर दिया गया है. इसके लिए सैकड़ों लीटर कीटनाशक इलाक़े में छिड़ना पड़ा है. लोग भी अपने स्तर पर कुछ तरीक़े अपना रहे हैं. फिलहाल बची हुई टिड्डियाँ गुजरात की सीमा से सटे जालौर ज़िले (राजस्थान) की ओर निकल गई हैं. केंद्र सरकार की टीमें इनके पीछे हैं.</p><p>कृषि विज्ञानियों के अनुसार ये ‘डेजर्ट हॉपर’ प्रजाति की टिड्डियाँ हैं जो काफ़ी लंबी दूरी तक उड़ सकती हैं. झुंड के बीच इन टिड्डियों का रवैया बहुत आक्रामक होता है. कुछ वक़्त पहले अफ़्रीकी देशों में इनके प्रकोप की ख़बरें काफ़ी चर्चा में रही थीं.</p><figure> <img alt="BBC" src="https://c.files.bbci.co.uk/9923/production/_110330293_750daa76-5c2e-444c-a501-87f6c251fa7d.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><p>साल 2017 में बोलीविया की सरकार को एक बड़े कृषि क्षेत्र में टिड्डों के हमले के कारण आपातकाल घोषित करना पड़ा था.</p><p>टिड्डों की यह प्रजाति भारत और पाकिस्तान जैसे दक्षिण एशियाई देशों में अपने पूरे दल के साथ फ़सलों को सफाचट करने के लिए ही जानी जाती है.</p><p>ब्रिटेन के खाद्य एवं पर्यावरण संस्थान यानी फ़ेरा ने इस कीट पर एक दफ़ा शोध किया था जिसमें पाया गया था कि इस टिड्डे की खाने की क्षमता और रफ़्तार मवेशियों से कहीं तेज़ है. ये टिड्डे वज़न के आधार पर अपने से कहीं भारी आम पशुओं के मुक़ाबले आठ गुना ज़्यादा तेज़ रफ़्तार से हरा चारा खा सकते हैं.</p><figure> <img alt="BBC" src="https://c.files.bbci.co.uk/E743/production/_110330295_eef7aaae-c40a-4d6c-a9df-1f99af2f9480.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> <figcaption>गुजरात के कृषि मंत्री आर सी फलदू प्रभावित इलाक़े में किसानों से मिले</figcaption> </figure><p>समाचार एजेंसी पीटीआई से कृषि विभाग के वरिष्ठ अधिकारी पूनम चंद परमार ने कहा है कि गुजरात में अब ना के बराबर टिड्डियाँ बची हैं. पिछले तीन दिन चले ऑपरेशन में अधिकांश को मार दिया गया है. केंद्र सरकार की आठ टीमें इसमें हमारी सहायता कर रही हैं.</p><p>उन्होंने बताया, &quot;सरकार ने दस हज़ार हेक्टेयर भूमि का सर्वे करवा लिया है जिसमें से सात हज़ार हेक्टेयर ज़मीन पर टिड्डियों के होने के निशान मिले हैं. ये टिड्डियाँ पाकिस्तान के थारपारकर से आई थीं. उत्तरी गुजरात का यह इलाक़ा इन टिड्डियों के प्रवास मार्ग में पड़ता है.&quot;</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a 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