<figure> <img alt="बीबीसी" src="https://c.files.bbci.co.uk/16210/production/_110304609_5f2f13dc-f2c7-4a23-83a9-4964d602cf0f.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>साल 2019 का आख़िरी सूर्यग्रहण गुरुवार यानी 26 दिसंबर को पड़ रहा है.</p><p>भारतीय समयानुसार यह ग्रहण सुबह 8 बजकर 17 मिनट से शुरू होकर 10 बजकर 57 मिनट तक देखा जा सकेगा.</p><p>प्लेनेटरी सोसायटी ऑफ़ इंडिया के निदेशक रघुनंदन के अनुसार अगले एक दशक में पड़ने वाले 4-5 सूर्यग्रहणों की तुलना में यह सूर्यग्रहण सबसे अधिक दिखाई देगा.</p><p>इसी आधार पर इस सूर्यग्रहण को ‘सदी का सबसे बड़ा सूर्यग्रहण’ कहा जा रहा है.</p><p>यूँ तो हर साल सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण होते हैं और पृथ्वी के अलग-अलग हिस्सों पर लोग इन्हें देख पाते हैं. लेकिन यह सूर्यग्रहण पृथ्वी के एक बड़े भू-भाग पर देखा जा सकेगा.</p><p>रघुनंदन के मुताबिक़ इस खगोलीय घटना का संपूर्ण भारत समेत नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, भूटान, चीन, ऑस्ट्रेलिया में असर दिखाई देगा.</p><figure> <img alt="बीबीसी" src="https://c.files.bbci.co.uk/14B0E/production/_110305748_9b4ee7c5-c2b9-4eb4-9e80-5a898dd25612.jpg" height="549" width="976" /> <footer>NASA</footer> </figure><p>यह साल 2019 का अंतिम और तीसरा सूर्यग्रहण है. इसमें 6 जनवरी को पहला और 2 जुलाई को दूसरा सूर्यग्रहण पड़ा था. ये दोनों ही आंशिक सूर्यग्रहण थे जो भारत में दिखाई नहीं दिए थे.</p><p>पीआईबी द्वारा जारी की गई सूचना के अनुसार देश के बाकी हिस्सों की तुलना में दक्षिण भारत में यह सूर्यग्रहण ज़्यादा साफ़ देखा जा सकेगा.</p><p>वैज्ञानिकों के साथ ही विज्ञान से जुड़े शोधार्थियों में भी इस पूर्ण सूर्यग्रहण के अध्ययन के लिए उत्सुकता बनी हुई है.</p><p>असल में यह खगोलीय घटना चंद्रमा के सूरज और धरती के बीच आ जाने के कारण होती है और कुछ समय के लिए एक विशेष इलाक़े में अंधेरा छा जाता है.</p><p>गुरुवार का सूर्यग्रहण इसलिए भी ख़ास है क्योंकि इस दौरान सूर्य ‘रिंग ऑफ़ फ़ायर’ की तरह दिखेगा.</p><p>पीआईबी के अनुसार अगला सूर्यग्रहण 21 जून 2020 को होना है.</p><figure> <img alt="बीबीसी" src="https://c.files.bbci.co.uk/2D78/production/_110304611_6c0a1b35-8873-421e-8dcf-fddfde5a9991.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Alamy</footer> </figure><h3>ग्रहण को लेकर आज भी कायम डराने वाले विश्वास</h3><p>दुनिया में ऐसे लोग भी हैं जिनके लिए ग्रहण किसी ख़तरे का प्रतीक है- जैसे दुनिया के ख़ात्मे या भयंकर उथलपुथल की चेतावनी.</p><p>हिंदू मिथकों में इसे अमृतमंथन और राहु-केतु नामक दैत्यों की कहानी से जोड़ा जाता है और इससे जुड़े कई अंधविश्वास प्रचलित हैं.</p><p>ग्रहण सदा से इंसान को जितना अचंभित करता रहा है, उतना ही डराता भी रहा है. </p><p>असल में, जब तक मनुष्य को ग्रहण की वजहों की सही जानकारी नहीं थी, उसने असमय सूरज को घेरती इस अंधेरी छाया को लेकर कई कल्पनाएं कीं, कई कहानियां गढ़ीं. 7वीं सदी के यूनानी कवि आर्कीलकस ने कहा था कि भरी दोपहर में अंधेरा छा गया और इस अनुभव के बाद अब उन्हें किसी भी बात पर अचरज नहीं होगा. मज़े की बात यह है कि आज जब हम ग्रहण के वैज्ञानिक कारण जानते हैं तब भी ग्रहण से जुड़ी ये कहानियां, ये विश्वास बरकरार हैं.</p><figure> <img alt="बीबीसी" src="https://c.files.bbci.co.uk/7B98/production/_110304613_55172540-7591-479c-bd89-b80e1eaf2c53.jpg" height="549" width="976" /> <footer>AFP</footer> </figure><p>कैलिफोर्निया की ग्रिफिथ वेधशाला के निदेशक एडविन क्रप कहते हैं, ‘सत्रहवीं सदी के अंतिम वर्षों तक भी अधिकांश लोगों को मालूम नहीं था कि ग्रहण क्यों होता है या तारे क्यों टूटते है. हालांकि आठवीं शताब्दी से ही खगोलशास्त्रियों को इनके वैज्ञानिक कारणों की जानकारी थी.'</p><p>क्रप के मुताबिक, ‘जानकारी के इस अभाव की वजह थी- संचार और शिक्षा की कमी. जानकारी का प्रचार-प्रसार मुश्किल था जिसके कारण अंधविश्वास पनपते रहे.’ वह कहते हैं, ‘प्राचीन समय में मनुष्य की दिनचर्या कुदरत के नियमों के हिसाब से संचालित होती थी. इन नियमों में कोई भी फ़ेरबदल मनुष्य को बेचैन करने के लिए काफ़ी था.'</p><p>प्रकाश और जीवन के स्रोत सूर्य का छिपना लोगों को डराता था और इसीलिए इससे जुड़ी तरह-तरह की कहानियां प्रचलित हो गई थीं. सबसे व्यापक रूपक था सूरज को ग्रसने वाले दानव का. एक ओर पश्चिमी एशिया में मान्यता थी कि ग्रहण के दौरान ड्रैगन सूरज को निगलने की कोशिश करता है और इसलिए वहां उस ड्रैगन को भगाने के लिए ढोल-नगाड़े बजाए जाते थे.</p><p>वहीं, चीन में मान्यता थी कि सूरज को निगलने की कोशिश करने वाला दरअसल स्वर्ग का एक कुत्ता है. पेरुवासियों के मुताबिक यह एक विशाल प्यूमा था और वाइकिंग मान्यता थी कि ग्रहण के समय आसमानी भेड़ियों का जोड़ा सूरज पर हमला करता है.</p><figure> <img alt="बीबीसी" src="https://c.files.bbci.co.uk/FCEE/production/_110305746_a2fe15e9-bd98-48b2-96e4-fea36e40613c.jpg" height="549" width="976" /> <footer>EPA</footer> </figure><p>खगोलविज्ञानी और वेस्टर्न केप विश्वविद्यालय में प्रोफेसर जरीटा हॉलब्रुक कहते हैं, ‘ग्रहण के बारे में विभिन्न सभ्यताओं का नज़रिया इस बात पर निर्भर करता है कि वहाँ प्रकृति कितनी उदार या अनुदार है. जहां जीवन मुश्किल है, वहाँ देवी-देवताओं के भी क्रूर और डरावने होने की कल्पना की गई और इसीलिए वहाँ ग्रहण से जुड़ी कहानियाँ भी डरावनी हैं. जहां जीवन आसान है, भरपूर खाने-पीने को है, वहाँ ईश्वर या पराशक्तियों से मानव का रिश्ता बेहद प्रेमपूर्ण होता है और उनके मिथक भी ऐसे ही होते हैं.'</p><p>मध्यकालीन यूरोप में, प्लेग और युद्धों से जनता त्रस्त रहती थी, ऐसे में सूर्यग्रहण या चंद्रग्रहण उन्हें बाइबल में प्रलय के वर्णन की याद दिलाता था. प्रोफ़ेसर क्रिस फ्रेंच कहते हैं, ‘लोग ग्रहण को प्रलय से क्यों जोड़ते थे, इसे समझना बेहद आसान है.</p><p>बाइबल में उल्लेख है कि कयामत के दिन सूरज बिल्कुल काला हो जाएगा और चाँद लाल रंग का हो जाएगा. सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण में क्रमश: ऐसा ही होता है. फिर लोगों का जीवन भी छोटा था और उनके जीवन में ऐसी खगोलीय घटना बमुश्किल एक बार ही घट पाती थी, इसलिए यह और भी डराती थी.'</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम </a><strong>और </strong><a href="https://www.youtube.com/user/bbchindi">यूट्यूब</a><strong>पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>
सूर्यग्रहण को इस बार क्यों बताया जा रहा है ख़ास?
<figure> <img alt="बीबीसी" src="https://c.files.bbci.co.uk/16210/production/_110304609_5f2f13dc-f2c7-4a23-83a9-4964d602cf0f.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>साल 2019 का आख़िरी सूर्यग्रहण गुरुवार यानी 26 दिसंबर को पड़ रहा है.</p><p>भारतीय समयानुसार यह ग्रहण सुबह 8 बजकर 17 मिनट से शुरू होकर 10 बजकर 57 मिनट तक देखा जा सकेगा.</p><p>प्लेनेटरी सोसायटी ऑफ़ इंडिया के निदेशक रघुनंदन के अनुसार अगले एक दशक में पड़ने वाले […]
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