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खेलों में क्यों हरियाणा आगे, पंजाब पीछे?

सुशांत एस मोहन बीबीसी संवाददाता, दिल्ली पंजाब में एक कहावत पुराने समय से चलती आई है कि ‘पंजाब के हर घर में एक बेटा या तो फ़ौज का मेडल लाता है या खेल का’. मिल्खा सिंह, अजीत पाल सिंह, प्रवीण कुमार और परगट सिंह जैसे खिलाड़ियों ने इस कहावत को चरितार्थ भी किया. वरिष्ठ खेल […]

पंजाब में एक कहावत पुराने समय से चलती आई है कि ‘पंजाब के हर घर में एक बेटा या तो फ़ौज का मेडल लाता है या खेल का’.

मिल्खा सिंह, अजीत पाल सिंह, प्रवीण कुमार और परगट सिंह जैसे खिलाड़ियों ने इस कहावत को चरितार्थ भी किया.

वरिष्ठ खेल पत्रकार नोरिस प्रीतम ने बताया, "एक वक़्त में भारतीय हॉकी टीम में पंजाब के खिलाड़ियों का बोलबाला था. वहां फ़ुटबॉल के खिलाड़ी भी थे और एशियन खेलों और ओलिंपिक में तो भारत का प्रतिनिधित्व पंजाब के खिलाड़ी ही करते थे. खेलों के मामले में पंजाब के पास एक सुनहरा अतीत है."

लेकिन अतीत चाहे जो रहा हो, वर्तमान में कुछ भी सुनहरा दिखाई नहीं देता.

पंजाब के खेलों का ग्राफ़ काफ़ी तेजी से नीचे गिर रहा है और अब कोई भी बड़ा खिलाड़ी यहां से निकलता नज़र नहीं आता.

एशियन खेल, कॉमनवेल्थ और ओलिंपिक की बात तो दूर पंजाब के खिलाड़ी खेलों की राष्ट्रीय स्तर की प्रतिस्पर्धाओं में भी अच्छा नहीं कर पा रहे हैं और इसकी वजह खेलों से जुड़ी हुई कतई नहीं है.

नशाख़ोरी से जूझता पंजाब

पंजाब के सामने जो समस्या मुंह बाए खड़ी है वो है गांव गांव में फ़ैलता ड्रग्स का जाल. नशाख़ोरी की आदत ने पंजाब की युवा पीढ़ी को ज़ंग लगा दिया है.

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राष्ट्रीय एथलेटिक्स कोच सुखदेव सिंह पन्नो ने बताया "पंजाब के पास युवाओं की कमी नहीं है लेकिन जब से नशाखोरी की आदत ने पंजाब को घेरा है, यहां का युवा बेकार हो गया है. वो खेलों में जाने के लिए फ़िट नहीं है और किसी को इसकी परवाह भी नहीं है."

पटियाला में स्थित राष्ट्रीय खेल अक़ादमी के निदेशक एस. एस. रॉय ने कहा "पंजाब में युवाओं का पलायन भी एक बड़ी समस्या है. युवाओं का खेती से रूझान ख़त्म होने के बाद पुराने किसानो ने अपनी खेती की ज़मीने बेचनी शुरू कर दी और अचानक से उनके पास पैसा आ जाने से युवा विदेश जाने लगे. पैसा आने के बाद पसीना कौन बहाता है ? हां पैसे से नशे की लत लगनी जरूर शुरु हो गई है."

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ये बात वाकई काबिलेगौर है कि पंजाब के पटियाला में स्थित राष्ट्रीय खेल अकादमी में अधिकांश खिलाड़ी हरियाणा से हैं.

लेकिन ये सिर्फ़ नशाख़ोरी नहीं जो पंजाब के खेलों को खा रही है. प्रशासन का रवैया भी उदासीन है.

प्रशासन की वादाख़िलाफ़ी

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पंजाब के स्टार ट्रिपल जंपर और नेशनल रिकॉर्ड धारक अरपिंदर सिंह ने बताया कि कैसे उन्हें नज़रअंदाज किया गया है "हमसे नेशनल मीट के दौरान मेडल लाने पर ईनाम का वादा किया गया था. मैनें मेडल के साथ रिकॉर्ड भी बनाया, लेकिन ईनाम अभी भी बाकी हैं."

पंजाब के पूर्व गोला फेंक खिलाड़ी प्रवीण कुमार ने भी कुछ ऐसा ही कहा "खिलाड़ियों का मनोबल उंचा करने के लिए पंजाब के प्रशासन ने कोई काम नहीं किया. यहां खेलों की बागडोर मिल्खा सिंह, परगट सिंह जैसे लोगों के हाथ में भी रही लेकिन उन्होने भी नाम बड़े और दर्शन छोटे ही रखे."

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वो आगे कहते हैं "पंजाब प्रशासन ने खेल के साथ खिलाड़ियों को भी नज़रअदाज़ किया है. मैं एशिया का गोल्ड मेडलिस्ट हूं लेकिन खिलाड़ियों को मिलने वाली पेंशन मुझे नहीं मिलती. ऐसे में आगे खेलने वाले खिलाड़ियों को क्या संदेश मिलेगा."

लेकिन पंजाब की यही कमी हरियाणा का फ़ायदा बन गई.

नंबर 1 हरियाणा

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भारत के पहलवान योगेश्वर दत्त हरियाणा से ही हैं.

बीते दशक में खेलों में भारत के लिए सर्वाधिक राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय मेडल जीतने वाला राज्य हरियाणा रहा है.

पंजाब के छोटे से हिस्से को काटकर बने इस राज्य में यूं तो खेल सुविधाएं और संसाधन पंजाब से काफ़ी कम हैं लेकिन हरियाणा सरकार की नीतियों ने इस राज्य को खेलों में अव्वल दर्जा दिलवा दिया है.

हरियाणा सरकार ने खेलों को बढ़ावा देने के लिए न सिर्फ़ खिलाडियों को नौकरी दी बल्कि देश के लिए मेडल लाने वाले खिलाड़ियों को पैसे भी दिए.

2010 में हरियाणा सरकार की नई खेल नीति के बाद तो अपना नाम हरियाणा से रजिस्टर कराने वाले खिलाड़ियों की लिस्ट लंबी हो गई.

‘पदक लाओ, पद पाओ’ की इस नई नीति के तहत नेशनल मेडल पर 5 लाख़, कॉमनवेल्थ मेडल पर 50 लाख़ और सरकारी नौकरी और ओलिंपिक मेडल पर 1 करोड़, ज़मीन और पेंशन का प्रस्ताव था.

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भारतीय खेल प्राधिक्करण के निदेशक जीजी थॉमसन का कहना था "हरियाणा अपने यहां खेलो को जिस तरह बढ़ावा देता है वो देखने लायक है. वहां स्कूल के स्तर से ही बच्चों को खेलों के लिए तैयार किया जाता है. वो खेल अकादमियों के लिए जगह भी देते हैं और उसके बाद खिलाड़ियो के लिए ईनाम भी बहुत है."

हैरानी की बात नहीं कि इसके बाद देशभर के अलग अलग हिस्सों से आने वाले खिलाड़ियों ने अपना पंजीकरण हरियाणा राज्य से करवा लिया. यहां तक कि हैदराबाद की साईना नेहवाल और दिल्ली के सुशील कुमार का पंजीकरण भी हरियाणा राज्य से हुआ.

भारत के ओलिंपिक पदक विजेता योगेश्वर दत्त ने बताया "हरियाणा में हमें खुली छूट है. यहां सरकार द्वारा हमें कहा जाता है कि आप प्रैकिट्स पर ध्यान दो. घर परिवार सब उनकी जिम्मेदारी है."

अब ऐसे में खिलाड़ी हरियाणा से न खेलें तो क्या करें ?

हरियाणा ने भले ही खिलाड़ियों को लुभाने के लिए पूरी बिसात तैयार कर रखी है लेकिन पंजाब के पास अभी भी मौका है. कोई खिलाड़ी अपना होम टाउन छोड़ कर दूसरी जगह नहीं जाना चाहता बशर्ते अपने घर पर उसे हर सुख सुविधा मिले और जीविका के साधन भी.

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