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स्कूल में बाबरी मस्जिद विध्वंस का नाट्य रूपांतरण, क्या बोले आयोजक?

कर्नाटक के तटीय शहर मंगलुरु में एक स्कूल में बाबरी मस्जिद विध्वंस के नाटकीय रूपांतरण का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है, लेकिन स्कूल प्रशासन ने इसे "राष्ट्रीय गौरव को बढ़ावा देने वाला एक प्रयास" बताया है. रविवार को आयोजित स्कूल के वार्षिक खेल एवं सांस्कृतिक दिवस समारोह में छात्रों ने बाबरी […]

कर्नाटक के तटीय शहर मंगलुरु में एक स्कूल में बाबरी मस्जिद विध्वंस के नाटकीय रूपांतरण का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है, लेकिन स्कूल प्रशासन ने इसे "राष्ट्रीय गौरव को बढ़ावा देने वाला एक प्रयास" बताया है.

रविवार को आयोजित स्कूल के वार्षिक खेल एवं सांस्कृतिक दिवस समारोह में छात्रों ने बाबरी मस्जिद के बड़े पोस्टर को फाड़ दिया. इस दौरान कथाकार उस ऐतिहासिक संरचना को ध्वस्त किए जाने के दौरान लोगों के उत्साह का वर्णन करते रहे.

कथाकार कहते हैं, "उस ढांचे को गिराने के लिए लोगों ने किसी भी उस चीज़ का इस्तेमाल किया, जो तब उनके हाथों में थी. हनुमान भक्त पूरे जोश के साथ बाबरी मस्जिद के ढांचे को गिराते हैं. बोलो, श्री रामचंद्र की जय."

इस व्याख्या के तुरंत बाद, बच्चे पोस्टर को नीचे गिराते हैं और वे उत्साह के साथ हर्ष में कूदना शुरू कर देते हैं. श्री राम विद्या केंद्र के इस इवेंट के मैनेजिंग ट्रस्टी कल्लादका प्रभाकर भट, कर्नाटक के इस तटीय ज़िले के एक ताक़तवर आरएसएस नेता हैं. यह केंद्र हिंदुत्व की प्रयोगशाला माना जाता है.

बच्चों की मासूमियत को नुकसान पहुंचाने वाला

भट बीबीसी हिंदी को बताते हैं, "ढांचे का विध्वंस, जिसे हम बाबरी मस्जिद नहीं बल्कि बाबरी ढांचा मानते हैं, एक ऐतिहासिक घटना है. मुसलमानों के ख़िलाफ़ कुछ नहीं कहा गया. इसके बारे में कुछ बोलने की भी ज़रूरत नहीं थी. इसमें केवल विध्वंस को दिखाया गया."

हालांकि, प्रसिद्ध समाजशास्त्री और टिप्पणीकार शिव विश्वनाथन इस नाटक की प्रस्तुति में बच्चों के इस्तेमाल को "घिनौना" और "बच्चों की मासूमियत को नुकसान पहुंचाने वाला" बताते हैं.

भट कहते हैं, "हर साल हम साल की महत्वपूर्ण घटना का मंचन करते हैं. बीते वर्ष यह चंद्रयान था तो इस साल यह बाबरी मसले पर अदालती फ़ैसला था. इसलिए, इस प्रस्तुति में एलके आडवाणी का भाषण, शिलान्यास, ढांचे का गिराया जाना और पांच जजों के फ़ैसला देने को दर्शाया गया."

लावन्या बल्लाल ने जब इसे ट्वीट किया तो यह वीडियो वायरल हो गया. उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा, "वे नफ़रत के बीज कैसे बोते हैं? देखें कलादका प्रभाकर भट के स्कूल में (बीते हुए) कल क्या हुआ?"

https://twitter.com/LavanyaBallal/status/1206435150478729216?s=19

विध्वंस का बच्चों के दिमाग़ पर क्या असर पड़ेगा?

भट कहते हैं, "इसका प्रभाव यह होगा कि बच्चे सीखेंगे की देश के लिए कैसे जीना है. यह बच्चों को यह भी दिखाएगा कि उन्हें राष्ट्र के अपमान को कैसे मिटाना चाहिए, साथ ही यह राष्ट्रीय गौरव को भी बढ़ाएगा."

वे कहते हैं, "इसका मुसलमान विरोधी चीज़ों को बढ़ावा देने से कोई लेना देना नहीं है. हम डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम और जॉर्ज फर्नांडिस की रखी परंपराओं में विश्वास करते हैं. यह बताता है कि कसाब जैसे आतंकवादियों को प्रोत्साहित नहीं किया जाना चाहिए और किसी भी तरह से यह राष्ट्र विरोधी नहीं है."

लेकिन जाने-माने समाजशास्त्री और टिप्पणीकार शिव विश्वनाथन कहते हैं, "वे मासूमियत का नाटक कर रहे हैं. मुझे लगता है कि इससे बच्चों की मासूमियत प्रभावित होती हैं. जब बच्चे बड़े पैमाने पर प्रदर्शित उस घटना के मंचन को देखते हैं तो उनका एक बड़ा वर्ग इसे सच्चाई मानते हुए अपने ज़हन में सहेज लेता है. और, एक तरह से यही सीख आगे जाकर उन्मादी भीड़ के व्यवहार में दिखती है."

विश्वनाथन मानते हैं कि जब इस तरह के नाटक में बच्चों का उपयोग किया जाता है तो मूल रूप से तीन बातें होती हैं. "जन-उत्तेजना समाज के एक बड़े तबके में आ जाती है. शिक्षा को प्रॉपेगैंडा के रूप में पेश किया जाता है और इससे बच्चों की मासूमियत को नुकसान पहुंचता है."

विश्वनाथन आश्चर्य से कहते हैं, "आजकल ऐसी कई गतिविधियां देखने को मिलती हैं जो लोकतांत्रिक सिद्धांतों या अनेकता या नागरिकता या इतिहास की पूरी तरह से अवमानना को दिखाती हैं और लोग इसे आम बात समझते हैं."

कुछ मनोचिकित्सकों ने इस पर बोलने से इनकार कर दिया क्योंकि "यह एक संवेदनशील मुद्दा है." लेकिन, उनमें से एक ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, "इस तरह गतिविधियों में हिस्सा लेने से बच्चों में आक्रमकता आएगी. वे ऐसी घटनाओं के लिए ज़िम्मेदार विभिन्न पहलुओं को समझ नहीं पाएंगे."

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