<figure> <img alt="भगत सिंह कोश्यारी" src="https://c.files.bbci.co.uk/17A17/production/_109819769_gettyimages-529162020.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>”राजनीति और क्रिकेट में कभी भी कुछ भी हो सकता है.” यह बयान बीजेपी के वरिष्ठ नेता नितिन गडकरी ने कुछ दिन पहले महाराष्ट्र के राजनीतिक हालात पर दिया था.</p><p>उनके ये शब्द तब सच साबित हो गए जब महाराष्ट्र सहित देश की अधिकांश जनता शिव सेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को राज्य का अगला मुख्यमंत्री बनने की ख़बरें सुनते हुए सोने के लिए गई लेकिन सुबह उठी तो बीजेपी के नेता देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके थे और उनके साथ एनसीपी के प्रमुख नेता अजित पवार ने उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी.</p><p>कुछ पल के लिए आम जनता ही क्या राजनीतिक जगत की हर ख़बर सूंघने का दम भरने वाले बड़े पत्रकार और कई नेता अचंभे में थे. </p><p>धीरे-धीरे ख़बरें खुलने लगीं और मालूम चला कि रात ही रात में बीजेपी ने अजित पवार के समर्थन से सरकार बनाने की पेशकश की. </p><p>इसके बाद राज्यपाल ने प्रदेश में जारी राष्ट्रपति शासन को हटाने की प्रक्रिया प्रारंभ की और सुबह तड़के देवेंद्र फडणवीस को राज्य की कमान सौंप दी गई.</p><h1>रात भर में कैसे पलटी बाजी </h1><p>महाराष्ट्र के इतिहास में 22 नवंबर की रात हमेशा के लिए दर्ज हो गई. पूरी रात महाराष्ट्र की सत्ता की चाभी एक गठबंधन से दूसरे गठबंधन में किस तरह निकली या निकाली गई, यह अपने-आप में बेहद दिलचस्प है. </p><p>मीडिया में आई ख़बरों के मुताबिक ये पूरा खेल 22 नवंबर को देर शाम शुरू हुआ जब एनसीपी प्रमुख शरद पवार के भतीजे अजित पवार करीब 54 विधायकों के हस्ताक्षर वाली चिट्ठी लेकर राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के पास पहुंचे. </p><p>इसके बाद देर रात देवेंद्र फडणवीस ने राज्यपाल से मुलाक़ात की और सरकार बनाने का दावा पेश किया. उन्होंने अपने साथ एनसीपी के विधायकों के समर्थन की बात बताई.</p><p>इसके बाद मामला पूरी तरह राजधानी दिल्ली शिफ्ट हो गया. राज्यपाल कोश्यारी ने केंद्र को इस पूरे घटनाक्रम से अवगत कराया, इसके बाद राष्ट्रपति भवन तक जानकारी भेजी गई. </p><p>शनिवार यानी 23 नवंबर की सुबह 5.47 मिनट पर केंद्र ने महाराष्ट्र में जारी राष्ट्रपति शासन को हटाने की बात कही. महाराष्ट्र में राज्यपाल ने 12 नवंबर को राष्ट्रपति शासन लगा दिया था.</p><p>राष्ट्रपति शासन हटते ही महाराष्ट्र में नई सरकार के गठन का रास्ता साफ हो गया और फिर सुबह करीब 7.30 बजे देवेंद्र फडणवीस ने राजभवन में शपथ ग्रहण कर ली.</p><figure> <img alt="महाराष्ट्र" src="https://c.files.bbci.co.uk/AF65/production/_109810944_4ac94a8b-c11d-4907-bf18-08743ce2c70a.jpg" height="350" width="624" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h1>क्या संवैधानिक तरीके से बनी सरकार?</h1><p>जिस तरह से बीजेपी ने अजित पवार के समर्थन से रात ही रात में सरकार बनाई उसे विपक्षी दल असंवैधानिक बता रहे हैं.</p><p>कांग्रेस सांसद अहमद पटेल ने कहा, "महाराष्ट्र के इतिहास में आज का दिन काला धब्बा है. सब कुछ सुबह-सुबह और जल्दबाज़ी में किया गया. कहीं न कहीं कुछ तो गड़बड़ है. इससे ज़्यादा शर्मनाक कुछ नहीं हो सकता."</p><p><a href="http://www.ptinews.com/news/11012561_Prez-rule-revoked-in-Maharashtra-at-5-47-am.html">समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार </a>राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इस मामले पर अपनी मंजूरी पत्र पर हस्ताक्षर करते हुए लिखा, ”संविधान के आर्टिकल 356 के खण्ड दो में दिए गए अधिकारों के तहत, मैं राम नाथ कोविंद, भारत का राष्ट्रपति, मेरे द्वारा 12 नवंबर 2019 को महाराष्ट्र में लगाए गए राष्ट्रपति शासन को, 23 नवंबर 2019 को हटाए जाने का आदेश देता हूं.”</p><p>महाराष्ट्र की राजनीति पर नज़र रखने वाले संविधान विशेषज्ञ उल्हास बापत मानते हैं कि अगर संविधान के नियमों के हिसाब से देखें तो इसमें कुछ भी ग़लत नहीं हुआ है, लेकिन नैतिकता के आधार पर यह कोई अच्छा उदाहरण नहीं है.</p><p>उल्हास बापत कहते हैं, ”राज्यपाल के पास यह अधिकार है कि वह किसी भी दल को सरकार बनाने के लिए बुला सकते हैं, उन्हें अगर लगता है कि कोई दल सरकार बनाने के लिए बहुमत साबित कर सकता है तो वह उसे निमंत्रण भेज सकते हैं. लेकिन बीजेपी पहले ही राज्यपाल के सामने सरकार ना बनाने की बात कह चुकी थी ऐसे में उन्हें दोबारा सरकार बनाने का मौका देना नैतिकता के आधार पर सही नहीं है.”</p><figure> <img alt="महाराष्ट्र" src="https://c.files.bbci.co.uk/D675/production/_109810945_e9240444-77ce-4714-a039-35b1d3154652.jpg" height="323" width="624" /> <footer>Ani</footer> </figure><h1>कैबिनेट की मंज़ूरी कैसे मिल गई?</h1><p>महाराष्ट्र में 12 नवंबर से राष्ट्रपति शासन जारी था. 23 नवंबर की रात इसे हटाया गया और उसके बाद सरकार का गठन हुआ. </p><p>सवाल उठाया जा रहा है कि राष्ट्रपति शासन हटाने के लिए कैबिनेट की मंजूरी की ज़रूरत होती है, ऐसे में रात भर में कैबिनेट की मंजूरी कैसे ली गई?</p><p>यह सवाल कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाल ने पार्टी की प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी उठाया.</p><p>इस सवाल के जवाब में केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा है कि यह ‘एलोकेशन ऑफ़ बिज़नेस रूल्स’ के रूल नंबर 12 के तहत लिया गया फ़ैसला है और वैधानिक नज़रिए से बिल्कुल ठीक है." </p><p>रूल नंबर 12 कहता है कि प्रधानमंत्री को अधिकार है कि वे एक्सट्रीम अर्जेंसी (अत्यावश्यक) और अनफ़ोरसीन कंटिजेंसी (ऐसी संकट की अवस्था जिसकी कल्पना न की जा सके) में अपने-आप निर्णय ले सकते हैं.</p><p>उल्हास बापत इस बारे में बताते हैं, ”संविधान में यह बताया गया है कि जब भी राष्ट्रपति कोई निर्णय लेते हैं तो वह इसके लिए कैबिनेट की मंजूरी लेते हैं.” </p><p>”अब इस मामले में कैबिनेट की बैठक कब हुई यह साफ़ नहीं है. फिर भी नियमों के अनुसार अगर प्रधानमंत्री अकेले भी राष्ट्रपति के फै़सले पर मंजूरी देते हैं तो वह भी कैबिनेट की ही मंजूरी मानी जाती है.”</p><p><a href="https://www.facebook.com/BBCnewsHindi/videos/431697434422939/">https://www.facebook.com/BBCnewsHindi/videos/431697434422939/</a></p><h1>राज्यपाल की भूमिका पर सवाल</h1><p>महाराष्ट्र में चले सियासी ड्रामे के बीच एक बार फिर संवैधानिक पद पर बैठे राज्यपाल की भूमिका सवालों के घेरे आ गई है. सवाल उठाए जा रहे हैं कि आखिर उन्होंने एनसीपी के किन विधायकों के समर्थन की चिट्ठी प्राप्त की और अगर उनके पास देवेंद्र फडणवीस सरकार बनाने के लिए आए भी तो उन्होंने सुबह तक का इंतज़ार क्यों नहीं किया?</p><p>कांग्रेस ने राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी पर अमित शाह के हित के लिए काम करने का आरोप लगाया.</p><p>इस बात पर उल्हास बापत भी अपनी सहमति जताते हैं. वो कहते हैं, ”राज्यपाल जो शपथ लेते हैं उसमें वो लोगों के हित में फ़ैसले लेने की बात करते हैं लेकिन हक़ीक़त ऐसी नहीं रहती. असल में राज्यपाल का पद प्रधानमंत्री की इच्छा पर ही निर्भर रहता है. सरकारें ही राज्यपालों की नियुक्तियां देखती हैं, इसलिए वो भी सरकारों के पक्ष में ही फ़ैसले करते हैं. यह रास्ता इंदिरा गांधी के समय से शुरू हुआ और अब नरेंद्र मोदी तक चला आ रहा है.”</p><p>महाराष्ट्र में जिस तरह से राजनीतिक हालात लगातार बदल रहे हैं. उसमें एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने एक बार फिर दावा किया कि उनके अधिकतर विधायक उन्हीं के साथ बने हुए हैं. ऐसे में बीजेपी की सरकार ने जो बहुमत साबित करने की बात कही है उस पर सवाल उठने लगे हैं.</p><p><a href="https://www.facebook.com/BBCnewsHindi/videos/2497667943847148/">https://www.facebook.com/BBCnewsHindi/videos/2497667943847148/</a></p><p>इस पर उल्हास बापत कहते हैं, ”यह बातें निश्चित तौर पर राज्यपाल पर सवाल उठाने का काम करती हैं. उन्हें देवेंद्र फडणवीस से पूछना चाहिए था कि सरकार बनाने के लिए जो विधायक उनके साथ हैं उनके सिर्फ हस्ताक्षर ही नहीं चाहिए वो खुद भी राजभवन में मौजूद होने चाहिए.”</p><p>ख़ैर फडणवीस के शपथ ग्रहण का मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. शिव सेना ने देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार के शपथ ग्रहण को चुनौती देने वाली याचिका दायर की. अब देश की सर्वोच्च अदालत ही यह फ़ैसला करेगी कि रात में बनी इस सरकार में कितने नियमों को ताक रखा गया.</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम </a><strong>और </strong><a href="https://www.youtube.com/user/bbchindi">यूट्यूब</a><strong>पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>
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क्या महाराष्ट्र में संविधान को ताक पर रखकर बनी सरकार?
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