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पटना: पानी निकलने तक की सुविधा नहीं फिर ज़मीन, फ़्लैट इतने महंगे क्यों?

<p>देश में सबसे तेज़ी से बढ़ती आबादी वाले राज्य बिहार की राजधानी पटना में ज़मीन की मांग ज़्यादा होने की वजह से यहां फ़्लैट और मकानों की कीमतें आसमान छू रही हैं. हालांकि यह शहर अपने लोगों के लिए मूलभूत सुविधायें तक उपलब्ध कराने में भी नाकाम साबित होता रहा है.</p><p>ग़ैर योजनाबद्ध तरीके से बसे […]

<p>देश में सबसे तेज़ी से बढ़ती आबादी वाले राज्य बिहार की राजधानी पटना में ज़मीन की मांग ज़्यादा होने की वजह से यहां फ़्लैट और मकानों की कीमतें आसमान छू रही हैं. हालांकि यह शहर अपने लोगों के लिए मूलभूत सुविधायें तक उपलब्ध कराने में भी नाकाम साबित होता रहा है.</p><p>ग़ैर योजनाबद्ध तरीके से बसे पटना में ज़मीन अति सीमित है और प्रदेश की आबादी के बढ़ने की रफ़्तार भी सबसे तेज़ है.</p><p>क़रीब 12 करोड़ की आबादी वाले बिहार में लगभग हर साल बारिश से जानलेवा जलजमाव, बाढ़, सूखा और आपराधिक मामलों में बढ़ोतरी होती रहती है.</p><p>व्यवस्थित और स्वच्छ शहर के मापदंड से कोसों दूर रहने के बावजूद इस राज्य के हर व्यक्ति के मन में यह इच्छा होती है कि राजधानी पटना में उसका आशियाना हो.</p><p>वरिष्ठ वास्तुविद जेके लाल का मानना है कि बिहार के लोग पटना में इसलिए बसना चाहते हैं क्योंकि यहां रहने के बावजूद वह अपनी मूल जगह से ज़्यादा जुड़ा रहते हैं और उन्हें अपने मूल स्थान से अधिक सुविधा भी उपलब्ध होती है.</p><p>यहां ज़मीन-मकान ख़रीदने से लोगों का उनके मूल स्थान से भौगौलिक और भावनात्मक जुड़ाव बना रहता है.</p><p><strong>ये भी पढ़ें</strong><strong>: </strong><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-49914554?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">पटना की बाढ़ आपदा है या सरकारी नींद? </a></p><figure> <img alt="पटना" src="https://c.files.bbci.co.uk/12411/production/_109096747_jklallarchitectpatna-1.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Niraj Sahai/ BBC</footer> <figcaption>वरिष्ठ वास्तुविद जेके लाल</figcaption> </figure><h3>बाकी बिहार से बेहतर है पटना</h3><p>वो कहते हैं, &quot;पटना एक पुराना शहर है और नए पटना के लिए टाउन प्लानिंग को लेकर सम्बन्धित विभाग संवेदनशील नहीं रहे हैं. अतिक्रमण की समस्या स्मार्ट सिटी बनाने में बड़ा रोड़ा रहा है.&quot;</p><p>उधर वरिष्ठ चार्टर्ड अकाउंटेंट नीरज कुमार लाल का मानना है कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के नवंबर, 2016 में नोटबंदी लागू करने के बाद ज़मीन का बाज़ार भाव सर्किल रेट की तुलना में कम हो गया.</p><p>उनके अनुसार, &quot;नोटबंदी के बाद ज़मीन के भाव के संदर्भ में बात पहले की तरह नहीं रही. साथ ही कड़े बिल्डिंग बायलॉज, मकान का नक्शा पास कराने की पेचीदगी आदि कारणों से ज़मीन का बाज़ार भाव या तो स्थिर हो गया या कम हो गया.&quot;</p><figure> <img alt="चार्टर्ड अकाउंटेंट नीरज कुमार लाल" src="https://c.files.bbci.co.uk/0141/production/_109112300_24ee9287-88aa-4b4c-abb3-47966449a8be.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Niraj Sahai /BBC</footer> <figcaption>चार्टर्ड अकाउंटेंट नीरज कुमार लाल</figcaption> </figure><p>वे कहते हैं, &quot;पटना में जिस दो कट्ठे की ज़मीन का भाव नोटबंदी के पहले दो करोड़ रुपये था वो आज भी उसी दर में बिक रही हैं. इससे जाहिर है कि नोटबंदी के बाद काले धन को होल्ड कर लिया गया है. इससे पटना में ज़मीन का भाव स्थिर हो गया है.&quot;</p><p>थोड़ी सी बारिश में शहर के कुछ हिस्से डूब जाते हैं और यह समस्या कई दशक से बनी हुई है. सरकार को यह मालूम है, लेकिन इस मोर्चे पर सरकार विफल रही है.</p><p>राज्य के अन्य जिला मुख्यालयों की तुलना में पटना में सुविधाएं ज़्यादा हैं. यहां बेहतर स्कूल-कॉलेज और अस्पताल हैं इसलिए राज्य के अन्य हिस्सों के लोग यहां आकर बसते हैं. पटना में महंगी ज़मीन रहने का एक कारण यह है.</p><p>दूसरा कारण सर्कल रेट (सरकारी दर) और बाज़ार भाव में भारी अंतर रहना है. ज़मीन का सरकारी भाव कम रहना और बाज़ार मूल्य अधिक रहने से एक ख़ास तबके के लिए जमीन में निवेश करना आसान होता है. </p><p>इस कारण भी यहां ज़मीन महंगी है.</p><p><strong>ये भी पढ़ें</strong><strong>: </strong><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-49916709?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">हर साल बाढ़ झेलने को मजबूर जेपी के गांव वाले</a></p><figure> <img alt="पटना" src="https://c.files.bbci.co.uk/1661F/production/_109097619_vsdubeyexchiefsecretarybihar-jharkhand..jpg" height="549" width="976" /> <footer>Niraj Sahai/BBC</footer> <figcaption>पूर्व मुख्य सचिव वीएस दूबे</figcaption> </figure><h3>जनसंख्या और जनसंख्या घनत्व का मसला</h3><p>जेके लाल की बातों से स्पष्ट है कि बाज़ार और सरकारी भाव में भारी अंतर पटना में ज़मीन-मकान में काले धन को निवेश करने के रास्ते आसान बना रहे हैं.</p><p>वहीं वरिष्ठ पत्रकार एसए शाद के अनुसार पटना में आसमान छूते ज़मीन के दाम के दो कारण गिनाते हैं. </p><p>वो कहते हैं, &quot;अन्य राज्यों की तुलना में बिहार का जनसंख्या घनत्व सबसे अधिक है. यहां करीब 1100 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर में लोग रहते-बसते हैं जबकि राष्ट्रीय औसत 350 का है. वहीं पटना में 1850 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर में हैं. ऐसे में आवासीय भूमि की भारी कमी है.” </p><p>पिछले एक दशक से अधिक की अवधि में बिहार का बजट 4,000 करोड़ से बढ़कर दो लाख करोड़ का हो गया है. </p><p>इस दौरान ख़ासा निर्माण कार्य हुआ है जिसके लिए बनने वाले डीपीआर में 10 से 11 प्रतिशत की राशि बतौर मुनाफ़ा मिलती है. इससे एक बहुत बड़ी राशि बाजार में आती है. </p><p><strong>ये भी पढ़ें</strong><strong>: </strong><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-49927705?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र वाराणसी बारिश के पानी से बेहाल</a></p><figure> <img alt="पटना" src="https://c.files.bbci.co.uk/3187/production/_109097621_ppghoshdirectoradri..jpg" height="549" width="976" /> <footer>Niraj Sahai/BBC</footer> <figcaption>एशियाई डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टिट्यूट (आद्री) के निदेशक प्रो पीपी घोष</figcaption> </figure><h3>ज़मीन सीमित, लोग असीमित</h3><p>वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने 90 के दशक में एक रिपोर्ट दिया था जिसमें कहा गया था कि सरकारी योजनाओं से जुड़ी राशि का 30 प्रतिशत भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है. </p><p>अगर इसे 20 प्रतिशत भी मान लिया जाए तो इस बात का अंदाज़ा आसानी से लगाया जा सकता है कि इतने दिनों में कितना काला धन बाजार में आया होगा. </p><p>पटना में ज़मीन महंगी होने का यह मुख्य कारण है, जिसे लोग खरीदने को तैयार हैं, जबकि भूमि की उपलब्धता अति-सीमित है.</p><p>इनकी बातों से जाहिर है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भले ही यह दावा करते हैं कि भ्रष्टाचार पर उनका ‘ज़ीरो टोलरेंस’ रहता है, लेकिन वास्तविकता तो यह है कि भ्रष्टाचार को रोकने में यहां की सरकारें लगातार विफल रही हैं.</p><p>इससे लगातार अकूत काला धन पैदा होता रहा है और इस काले धन को निवेश करने का सबसे सुगम रास्ता लोगों को ज़मीन-मकान में नजर आता है.</p><p><strong>ये भी पढ़ें</strong><strong>: </strong><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-49888949?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">पटना का एक बड़ा हिस्सा क्यों डूब गया: पांच कारण</a></p><h3>’भ्रष्टाचार और काला धन भी वजहें'</h3><p>वरिष्ठ पत्रकार कुमार दिनेश पटना में ज़मीन और फ़्लैट के दाम बेतहाशा बढ़ने के तीन बड़े कारण गिनाते हैं. </p><p>उनके अनुसार,&quot;पहला कारण देश में दूसरी सबसे आबादी वाले राज्य बिहार में जनसंख्या वृद्धि की तेज रफ़्तार, दूसरा सरकारी योजनाओं में बेलगाम भ्रष्टाचार और तीसरा राजधानी पटना में ज़मीन या मकान को सामाजिक हैसियत से जोड़ना. </p><p>इनमें से पहली दो बातें यानी जनसंख्या नियंत्रण और भ्रष्टाचार पर रोक लगाने में लगभग हर सरकार का विफल होना एक ऐसी परिस्थिति बनाता है जिसमें लोगों का काला धन पटना के सीमित आवासीय भू-भाग के दाम को आसमान पर पहुंचाने में सहायक रही हैं.</p><p>रही बात जनसंख्या नियत्रंण की तो ये लगभग सभी दलों के राजनीतिक एजेंडों से बाहर है.</p><p>पूर्व मुख्य सचिव वीएस दुबे का मानना है कि सरकार ने एकाध अपवादों जैसे राजेन्द्र नगर-कंकड़बाग के कुछ हिस्से को छोड़ कर पटना शहर को विकसित नहीं किया है. </p><p>पटना में शहरी विकास को लेकर सरकार ने कुछ नहीं किया है. यह शहर निजी लोगों के प्रयास से विकसित हुआ है और ज्यादातर हिस्सों में पटना का योजनाबद्ध तरीके से विकास नहीं हो पाया है. </p><p><strong>ये भी पढ़ें</strong><strong>: </strong><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-49882511?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">पटना में बाढ़: सवालों के घेरे में नीतीश ही नहीं, बीजेपी भी है</a></p><h3>’इतनी महंगी ज़मीन तार्किक नहीं'</h3><p>दुबे कहते हैं, &quot;यहां बेहतर स्वास्थ्य-शिक्षा की व्यवस्था है और कुछ हद तक व्यापार भी है. जब बिहार का हर एक आदमी पटना में बसना चाहेगा तो उतनी जमीन उपलब्ध कहां से होगी? ज़ाहिर है, इससे जमीन की कीमत बढ़ेगी. </p><p>उनका मानना है कि पटना में इतनी महंगी जमीन कहीं से तार्किक नहीं है. </p><p>चूंकि सरकार की ओर से शहर को विकसित करने और मुहल्ले बसाने के लिए कोई योजना नहीं है इसलिए सड़क, बिजली और नाले हों या न हों लोग इसकी चिंता किये बगैर जमीन खरीदते हैं. </p><p>यह सब अत्यधिक मांग और न्यूनतम आपूर्ति क्षमता पर ही आधारित है. इस कारण भी ज़मीन के दर आसमान छू रहे हैं.</p><p><strong>ये भी पढ़ें</strong><strong>: </strong><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-49875737?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">पटना में बारिश रुकी, पर जमा पानी कहाँ जाएगा?</a></p><figure> <img alt="पटना" src="https://c.files.bbci.co.uk/3B56/production/_109109151_92340ea3-ea0a-45e1-a522-950c77337135.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Saroj Kumar/BBC</footer> </figure><h3>पलायन: एक बड़ी समस्या</h3><p>एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टिट्यूट (आद्री) के निदेशक प्रोफ़ेसर पीपी घोष का मानना है कि पटना के शहरीकरण की समस्या जनसंख्या से सम्बन्धित है. </p><p>वो कहते हैं, &quot;अतिरिक्त जनसंख्या को समाहित करने के लिए अतिरिक्त साधन चाहिये. इसके लिए आर्थिक साधन और ज़मीन चाहिये, लेकिन दुर्भाग्यवश पटना के संदर्भ में ज़मीन की समस्या बहुत गंभीर है.”</p><p>पीपी घोष के मुताबिक़, &quot;पटना शहर को पूरब की ओर विस्तारित नहीं किया जा सकता क्योंकि उधर पुराना पटना है. पश्चिम में मिलिट्री कैंटोनमेंट है, उत्तर दिशा में गंगा नदी है और दक्षिण की ओर की ज़मीन काफी नीचे है.”</p><p>&quot;रही बात आर्थिक संसाधनों की तो वह दूसरी समस्या है. पटना के शहरीकरण की समस्या जनसंख्या और यहां पर आर्थिक गतिविधि और जमीन का अतिसीमित रहना है. यहां फ़्लाईओवर बनाने के लिए काफ़ी खर्च किया गया, लेकिन उस तुलना में ड्रेनेज पर ध्यान नहीं दिया गया. प्राथमिकता ही गलत है.&quot; </p><p>पटना में दिल्ली के स्तर का एम्स अस्पताल नहीं है. जवाहर नेहरू विश्वविद्यालय नहीं हैं, दिल्ली विश्वविद्यालय नहीं है. बेंगलुरु-हैदराबाद शहरों जैसे आईटी हब नहीं है और न ही मुंबई जैसी आर्थिक गतिविधि है. फिर भी यहां ज़मीन-मकान काफ़ी महंगे हैं. ऐसा क्यों है?</p><p>इसपर प्रोफ़ेसर घोष कहते हैं कि किसी भी पिछड़े राज्य में जहां इंडस्ट्री नहीं है, वहां ग़ैर कृषि गतिविधि सेवा क्षेत्र में ही होती है. सेवा क्षेत्र शुरुआती दौर में वहीं विकसित होता है जहां प्रशासनिक मुख्यालय हो. पटना के संदर्भ में भी यही हो रहा है.</p><p>यहां बैंक, अस्पताल और यूनिवर्सिटी हैं जिसका फ़ायदा लेने के लिए राज्य के दूसरे शहरों से लोग पटना में पलायन कर रहे हैं. उस तुलना में ज़मीन की आपूर्ति नहीं हो पा रही जबकि पलायन हर दिन हो रहा है. इसलिए जमीन की कीमत बढ़ रही है. </p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम </a><strong>और </strong><a href="https://www.youtube.com/user/bbchindi">यूट्यूब</a><strong> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>

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