<figure> <img alt="सोशल मीडिया पर किन नियमों की बात कर रहा है सुप्रीम कोर्ट?" src="https://c.files.bbci.co.uk/12BD1/production/_108935767_aa9efc1f-6335-4e3b-93ae-de40b4cfab00.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से सवाल किया है कि वो सोशल मीडिया के दुरुपयोग पर रोक के लिए दिशा-निर्देश कब तक लाएगी.</p><p>सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया को लेकर तीन बातें कही हैं.</p><p>सोशल मीडिया से लोगों के निजी जीवन की निजता प्रभावित होती हैं, यह राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला है और इसके आधार पर जो आपराधिक घटनाएं हो रही हैं इन्हें लेते हुए कोर्ट ने चिंता ज़ाहिर की.</p><p>शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि केंद्र ने मद्रास हाई कोर्ट के सामने कहा था कि सोशल मीडिया को लेकर जल्दी ही नियम बनाए जा रहे हैं, उसकी रिपोर्ट क्या है.</p><p>देश में आईटी क़ानून पहले से हैं. इसके तहत अनेक नियम बने हैं. सोशल मीडिया कंपनियों को इंटरमीडियरी कहा जाता है. इनके लिए 2011 में नियम बने थे.</p><p>उनको अपडेट करने के लिए केंद्र सरकार ने कई महीने पहले एक ड्राफ़्ट रूल जारी किया है. उस पर चर्चाएं हो रही हैं लेकिन उन्हें लागू नहीं किया गया है.</p><p>सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रिपोर्ट मांगी है.</p><figure> <img alt="सोशल मीडिया पर किन नियमों की बात कर रहा है सुप्रीम कोर्ट?" src="https://c.files.bbci.co.uk/179F1/production/_108935769_7ae8985e-9ce1-48c3-8a54-002b1a882971.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h1>क्या है पूरा मामला?</h1><p>सोशल मीडिया कंपनियों के दो पहलू हैं. पहला पहलू है कि इस प्लेटफॉर्म पर लोग आपस में बातचीत करते हैं, जो अभिव्यक्ति की आज़ादी के तहत आता है. </p><p>दूसरा, इन कंपनियों की तमाम तरह की जवाबदेही होती है और वो क़ानून के दायरे में रहते हैं. लेकिन अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर ये कंपनियां अपनी जवाबदेही से बचना चाहती हैं. </p><p>देश का एक क़ानून है कि अगर सोशल मीडिया कंपनियों के मार्फ़त कोई अपराध हुआ तो उस अपराधी व्यक्ति की जानकारी देने की ज़िम्मेदारी सोशल मीडिया कंपनियों की है. </p><p>तमिलनाडू में ऐसे तमाम मामले पुलिस विभाग ने और सरकार ने देखे, जिसमें सोशल मीडिया कंपनियों ने सरकार के साथ सूचनाएं देने में सहयोग नहीं किया. </p><p>और इस बात पर मद्रास हाई कोर्ट के सामने एक पीआईएल में दो बाते हुईं. पहली ये कि क्या सोशल मीडिया कंपनियों के खातों को केवाईसी के तहत आधार से जोड़ा जाना चाहिए. विवादों के बात ये बात अब ख़त्म हो गई है और सरकार ने भी साफ़ किया है कि ऐसी कोई बात नहीं चल रही है. </p><p>और दूसरी बात ये हुई कि व्हाट्सऐप और एप्पल जैसे प्लेटफॉर्म, जहां मैसेज इंक्रिप्टेड होते हैं, वहां एंड टू एंड इंक्रिप्शन की वजह से सरकार को सूचनाएं नहीं मिल पाती हैं. वहां आईआईटी के एक प्रोफेसर ने कहा कि तकनीकी तौर पर ये संभव है. </p><p>सोशल मीडिया कंपनियों का कहना है कि ये मामले सुप्रीम कोर्ट में चल रहे थे. आधार का मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा था. ये अंतरराष्ट्रीय मसला है, इसलिए इसका फ़ैसला सुप्रीम कोर्ट को लेना चाहिए. तो मद्रास, बॉम्बे और मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के मामलों पर सुप्रीम कोर्ट में सुवाई हो, इससे जुड़ी याचिका पर इस वक़्त सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है. </p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/social-49781910?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">सोशल मीडिया में क्यों ट्रेंड हुए युधिष्ठिर और अशोक?</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-49803995?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">पाकिस्तान: टिक टॉक वाली एयरहोस्टेस को वार्निंग </a></li> </ul><figure> <img alt="सोशल मीडिया पर किन नियमों की बात कर रहा है सुप्रीम कोर्ट?" src="https://c.files.bbci.co.uk/4559/production/_108935771_b9bb3438-501f-43be-a858-a92508d9818a.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h1>अभिव्यक्ति की आज़ादी का हनन?</h1><p>भारतीय संविधान में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है, लेकिन इसके साथ अनेक अपवाद भी हैं. उस अभिव्यक्ति के तहत आप दूसरे की अवमानना नहीं कर सकते हैं, दूसरे को कोई चोट नहीं पहुंचा सकते हैं, सामाजिक धार्मिक दुर्भावना नहीं फैला सकते हैं. </p><p>अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की भी अपनी सीमाएं हैं. प्रिंट और इलेक्ट्रेनिक मीडिया में जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, सोशल मीडिया पर उससे अधिक स्वतंत्रता नहीं है. </p><p>सोशल मीडिया की सबसे ख़ास बात और कमज़ोरी ये है कि यहां पर कोई एडिटर नाम की चीज़ नहीं होती है, कि इसपर जवाबदेही दी जा सके. </p><p>क्योंकि इंटरमीडियरी कंपनियों को आईटी एक्ट के तहत तमाम ज़िम्मेदारियों से छूट मिली हुई है और इस प्लेटफॉर्म को ग़लत कामों के लिए इस्तेमाल करने वाले गुमनाम होकर या फ़र्ज़ी नामों से इसे इस्तेमाल करते हैं. </p><figure> <img alt="सोशल मीडिया पर किन नियमों की बात कर रहा है सुप्रीम कोर्ट?" src="https://c.files.bbci.co.uk/7AE7/production/_108936413_beb25bb3-ff31-4bc4-9a3e-5f31a70b1e8d.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>उनके आधिकारिक डेटा के मुताबिक़ फेसबुक और ट्वीटर में लगभग आठ से दस प्रतिशत लोग बोगस हैं. लेकिन इंडस्ट्री का अनुमान है कि तीस प्रतिशत लोग बोगस हैं. ये तीस फीसदी बोगस लोगों को कोई एक देश नियंत्रिक नहीं कर सकता है. अगर भारत में कोई नियम बन भी जाए तो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दूसरे देशों से कुछ ऐसी गतिविधियां हो सकती हैं. इसलिए इसके लिए इंटरनेशनल प्रोटोकॉल बनाना होगा, जिसमें सोशल मीडिया कंपनियों के बारे में एक आचार संहिता लागू हो. </p><p>जिसमें लोगों की अभिव्यक्ति की आज़ादी के साथ राष्ट्रीय सुरक्षा और सामाजिक सदभाव की व्यवस्था बरक़रार रहे. </p><p>इसमें अहम बात ये है कि तकनीक बहुत तेज़ी से विकास करती है और क़ानून बहुत धीमे-धीमे बढ़ते हैं. इस वजह से आज देश में सोशल मीडिया कंपनियों के ऊपर बनाए गए नियम अप्रासंगिक होते जा रहे हैं. </p><p>ना पुलिस प्रशासन और हमारी न्यायिक व्यवस्था में उन नियमों को लागू करने की समझ है और ना ही हम उनको सही तरीक़े से अपडेट कर पा रहे हैं. </p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-49808148?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">इंदिरा गांधी और नेहरू की वायरल तस्वीर का सच</a></li> </ul><p>दो बातों के छूट जाने से बहुत दिक्क़त पैदा हो रही है. सोशल मीडिया कंपनियां अभिव्यक्ति की आज़ादी को आगे रखकर अपने व्यवसाहिक ढांचे को बचाने की कोशिश कर रहे हैं. जो विश्व की आर्थिक विक्षमता के साथ भारत की मंदी का बड़ा कारण है. </p><p>ये कंपनियां अपनी कॉरपोरेट जवाबदेही से नहीं बच सकती हैं. चार-पांच महत्वपूर्ण पहलू हैं. पहला सोशल मीडिया कंपनियों के लिए भारत सबसे बड़ा बाज़ार है. इन कंपनियों को भारत में अपना डेटा रखना चाहिए. एक डेटा सेंटर से हज़ार लोगों को रोज़गार मिलता है, तो भारत के डेटा से भारत में रोज़गार सृजन होगा. </p><p>दूसरा, इन कंपनियों को भारत में अपने दफ्तर बनाने चाहिए, जिसपर ये टेक्स देंगी. </p><p>तीसरा, इन कंपनियों को भारत में अपना शिकायत अधिकारी या नोडल अधिकारी नियुक्त करना चाहिए, नियम और क़ायदे के हिसाब से 36 घंटे के अंदर आपत्तिजनक सामग्री को हटा सके. </p><p>सोशल मीडिया कंपनियां ये व्यवस्थाएं नहीं करना चाहती हैं, क्योंकि इससे उनपर सिविल और क्रिमिनल लाइबिलिटी बढ़ने के साथ उनके ख़र्चे बढ़ जाएंगे, उनका मुनाफ़ा कम हो जाएगा. </p><p>(बीबीसी संवाददाता दिलनवाज़ पाशा से बातचीत पर आधारित)</p><p>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप <a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a> कर सकते हैं. आप हमें <a 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सोशल मीडिया पर किन नियमों की बात कर रहा है सुप्रीम कोर्ट?: नज़रिया
<figure> <img alt="सोशल मीडिया पर किन नियमों की बात कर रहा है सुप्रीम कोर्ट?" src="https://c.files.bbci.co.uk/12BD1/production/_108935767_aa9efc1f-6335-4e3b-93ae-de40b4cfab00.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से सवाल किया है कि वो सोशल मीडिया के दुरुपयोग पर रोक के लिए दिशा-निर्देश कब तक लाएगी.</p><p>सुप्रीम कोर्ट ने सोशल मीडिया को लेकर तीन बातें कही हैं.</p><p>सोशल मीडिया से […]
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