सानिया मिर्ज़ा पर एक फ़तवा पहले आया था. अब एक और आया है.
पहला फ़तवा मुस्लिम मौलवियों ने जारी किया था उनकी स्कर्ट की लम्बाई को लेकर.
अब आया है तेलंगाना में भाजपा के एक विधायक की तरफ से, जो उन्हें स्थानीय नहीं मानते. मतलब? उनका इशारा था वो अब पाकिस्तानी बन चुकी हैं क्योंकि उन्होंने एक पाकिस्तानी से शादी की है.
ऐसा लगता है कुछ लोग अब तक ये भूल नहीं सके हैं कि सानिया ने एक पाकिस्तानी से शादी की है.
मैं ऐसे कई भारतीय-पाकिस्तानी जोड़ों को जानता हूं जिनके बीच सरहद या मज़हब की सीमाएँ कभी आड़े नहीं आईं.
ऐसी ही एक नज़ीर है, महाराष्ट्र की एक हिन्दू महिला जिसने कुछ साल पहले लाहौर के एक मुस्लिम से शादी की.
उनका नाम है आशा पाटिल जिन से हमारा समाज बहुत कुछ सीख सकता है.
आशा पाटिल अपने पति से इंटरनेट पर मिली थीं. दोनों का प्यार बढ़ा और इंटरनेट पर ही शादी तय हो गई. अब दोनों ने मिलने का फ़ैसला किया लेकिन आशा को दिल्ली स्थित पाकिस्तानी दूतावास से काफ़ी निराशा हुई क्योंकि उन्हें पाकिस्तान जाने का वीज़ा नहीं मिला.
सरहद की दीवार
दोनों प्रेमियों ने वाघा सीमा रेखा पर मिलने का फ़ैसला किया. वो मिले भी लेकिन सरहद के आर पार. वो एक-दूसरे को केवल देख सकते थे, लेकिन मिल नहीं सकते थे. अंग्रेजी में एक कहावत है “सो नियर एंड यैट सो फ़ार”. यही हाल था उनका उस समय.
आशा हार मानने वाली महिला नहीं थी. इस दूरी को मिटाने के लिए उन्होंने एक बार फिर वीज़ा की फ़रियाद की. इस बार उन्हें सफ़लता मिली. वो लाहौर गईं और शादी भी कर ली.
एक साल बाद एक औलाद भी पैदा हुई लेकिन आशा के 33 वर्षीय पति का अचानक दिल का दौरा पड़ने से देहांत हो गया और आशा 29 साल की उम्र में विधवा हो गईं.
पति के परिवार वालों ने अपने बेटे की अचानक मौत का ज़िम्मेदार आशा को ठहराया. उन्हें काफ़ी मानसिक तकलीफ़ पहुंची और आख़िरकर उन्होंने अपने बच्चे समेत ससुराल हमेशा के लिए छोड़ दिया.
लेकिन उन्हें ये नहीं मालूम था कि उनका ठिकाना कहाँ होगा. एक अजनबी शहर में, अजनबी लोगों के बीच महाराष्ट्र की एक हिंदू लड़की, अपने बच्चे के साथ कहाँ जाएगी? ये उसे भी नहीं मालूम था.
हिंदुस्तानी हैं और रहेंगी
ऐसे में उनकी मदद के लिए आगे आए एक मस्जिद के इमाम. उन्होंने मां और बेटे को पनाह दी और एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की मदद से पैसे जमा कर आशा को मुंबई वापस भेजने का इंतज़ाम किया. उन्होंने पाकिस्तान से आशा को इज्ज़त से विदा किया.
आशा ने मुझे कुछ साल पहले बताया था कि वो भारत और पाकिस्तान के बीच नफ़रत की दीवार को तोड़ने के लिए कुछ करना चाहती हैं. उन्होंने कहा था उनका बच्चा दोनों देशों का है. उनका प्यार इस बात का प्रतीक है कि देश, मज़हब और जात-पात की सीमाओं से ऊपर उठा जा सकता है.
सानिया मिर्ज़ा की कहानी आशा की कहानी का सुखद पक्ष है. सानिया मिर्ज़ा उतनी ही भारतीय हैं जितनी आशा पाटिल. ये मिसालें और कुछ नहीं बल्कि भारत और पाकिस्तान के बीच जुड़ती ज़िंदगियों की कहानी कहती हैं.
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