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असमः मियाँ कवि क्यों है डर के साए में?

<p> </p><p><strong>मेरी मा</strong><strong>तृभूमि</strong><strong> (शीर्षक)</strong><strong> </strong></p><p>तुम हमारी माँ हो..</p><p>तुम्हारी गोद से मेरा जन्म हुआ</p><p>तुम्हारी गोद से पिता-भैया भी जन्मे माँ</p><p>फिर भी तुम कहती हो मैं तुम्हारी अपनी नहीं</p><p>मैं तुम्हारी कुछ नहीं लगती माँ…</p><p>मुझसे तुम घृणा करती हो माँ</p><p>क्योंकि मेरा परिचय तुम्हारी गोद से जन्म लेना है</p><p>मैं वही ‘अभिशप्त मियाँ’ हूं माँ…</p><p>&quot;मैंने यह कविताएं दो साल पहले […]

<p> </p><p><strong>मेरी मा</strong><strong>तृभूमि</strong><strong> (शीर्षक)</strong><strong> </strong></p><p>तुम हमारी माँ हो..</p><p>तुम्हारी गोद से मेरा जन्म हुआ</p><p>तुम्हारी गोद से पिता-भैया भी जन्मे माँ</p><p>फिर भी तुम कहती हो मैं तुम्हारी अपनी नहीं</p><p>मैं तुम्हारी कुछ नहीं लगती माँ…</p><p>मुझसे तुम घृणा करती हो माँ</p><p>क्योंकि मेरा परिचय तुम्हारी गोद से जन्म लेना है</p><p>मैं वही ‘अभिशप्त मियाँ’ हूं माँ…</p><p>&quot;मैंने यह कविताएं दो साल पहले भी लिखी थीं, उस समय कई लोगों ने मेरी सराहना की. मुझे आगे भी लिखते रहने के लिए मेरा हौसला बढ़ाया. लेकिन पिछले महीने जब मैंने वही कविताएं अपने फेसबुक पर पोस्ट की तो तूफ़ान आ गया. मुझे जान से मारने की धमकियां दी गई. कईयों ने बलात्कार करने की धमकी तक दे डाली. इंसान हूं डर तो लगेगा ही. मुझे सबसे ज्यादा लिंचिंग से डर लगता है.&quot;</p><p>गुवाहाटी विश्वविद्यालय में असमिया भाषा पर शोध करने वाली 28 साल की पीएचडी स्कॉलर रेहना सुल्ताना जब ये बातें कह रही थीं तो उनके चेहरे पर दिख रहा खौफ़ बहुत कुछ बयां कर रहा था. </p><p>देश में कई जगहों से सामने आ रही लिंचिंग की घटनाओं ने रेहना के अंदर भी डर का माहौल पैदा कर दिया है. </p><p>दरअसल बीते 10 जुलाई को गुवाहाटी के एक पत्रकार प्रणवजीत दोलोई ने जिन 10 मियाँ कवियों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज कराई थी उनमें से एक रेहना सुल्ताना भी है. </p><figure> <img alt="असमः ‘कविता ही तो लिखी है, क्या लिंचिंग कर देंगे’" src="https://c.files.bbci.co.uk/18564/production/_108248699_d9f19b7a-a331-4f4a-8d29-65f6b737e289.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Reuters</footer> </figure><p>पत्रकार दोलोई ने अपनी शिकायत में कहा है कि एक नई शैली में मियाँ कविता लिखने वाले लोग दरअसल &quot;राज्य में सांप्रदायिक गड़बड़ी&quot; पैदा करने और एनआरसी यानी नेशनल रेजिस्टर ऑफ़ सिटिज़न्स की प्रक्रिया को बाधा पहुंचाने का प्रयास कर रहें हैं. </p><p>पत्रकार की शिकायत के अनुसार ये मियाँ कवि विश्व के सामने असमिया लोगों को &quot;ज़ेनोफोबिक&quot; के रूप में बदनाम करने की कोशिश कर रहें है.</p><p>रेहना सुल्ताना इन आरोपों का जवाब देते हुए कहती है, &quot;मैंने कुछ भी गलत नहीं किया. ये कविताएं 2016 में भी लिखी थीं उस समय कोई विवाद नहीं हुआ था. लेकिन पता नहीं इस बार क्यों कुछ लोग मेरे खिलाफ़ हो गए. मैंने सिर्फ अपने मियाँ समुदाय की तकलीफों को कविताओं के जरिए कहने की कोशिश की है. मैं असमिया भाषा में भी लिखती हूं. मैंने अपनी पूरी पढ़ाई असमिया भाषा में की है. इसलिए मेरे विचार किसी भी भाषा या समुदाय के ख़िलाफ़ कभी नहीं हो सकते.&quot;</p><p>वो कहती है, &quot;मुझ पर चार एफ़आईआर दर्ज़ इसलिए करवाई गई क्योंकि मैंने ये कविताएं मियाँ बोली (एक तरह की बांग्ला भाषा) में लिखकर फेसबुक पर पोस्ट की थी. ये हमारे घर की बोली है और अगर मैं इसमें कुछ लिखती हूं तो विवाद क्यों होना चाहिए? मैंने कविताओं की सामग्री में विवाद जैसा कुछ भी नहीं लिखा है. केवल मियाँ लोगों के जीवन की उन तकलीफों को लिखा है जिसे मैं महसूस करती हूं. मेरे पिता को असमिया नहीं बल्कि मियाँ कहा जाता है. इस बात से मुझे बहुत तकलीफ होती है.&quot;</p><p>असम में बांग्ला मूल के मुसलमानों के लिए मियाँ शब्द का प्रयोग किया जाता रहा है जिसे ये समुदाय अपने अपमान के तौर पर देखता है. इसके अलावा बंगाल मूल के इन मुसलमानों पर बांग्लादेश के अवैध प्रवासी होने जैसे गंभीर आरोप लगते रहें है. </p><p>इन मुसलमानों का कहना है कि उन्होंने सालों से असमिया भाषा को अपनी मातृ भाषा के तौर पर अपना रखा है फिर भी उन्हें यहां असमिया के तौर पर कोई स्वीकार नहीं करता. इसकी एक बड़ी वजह असम में बांग्लादेश से हुई ‘घुसपैठ’ को माना जाता हैं. </p><h1>असम में मुसलमानों का प्रवास</h1><p>दरअसल 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के परिणामस्वरूप प्रवासन की एक लहर असम की तरफ आने की बात कही जाती रही है. इसी कारण 1979 में घुसपैठ के खिलाफ़ असम आंदोलन की शुरूआत हुई. जबकि असम में इन मुसलमानों के प्रवास का इतिहास काफी पुराना है. </p><figure> <img alt="असम में बांग्ला मुसलमान" src="https://c.files.bbci.co.uk/9C54/production/_108202004_0bzkaji1.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Dilip Sharma/BBC</footer> </figure><p>गुवाहाटी विश्वविद्यालय के प्रोफे़सर अब्दुल मनन बताते है, &quot;याण्डबू समझौते के बाद अंग्रेज़ पहली बार पूर्वी बंगाल के मुसलमानों को कृषि उत्पादन खासकर जूट की खेती के लिए असम लेकर आए थे. दरअसल अंग्रेज़ हावड़ा में उस समय मौजूद अपनी जूट इंडस्ट्री को बचाना चाहते थे. क्योंकि वहां के उत्पादन में लगातार गिरावट हो रही थी.&quot;</p><p>&quot;इसलिए अंग्रेजों ने असम में खाली पड़ी ज़मीन पर जूट की खेती करने का फैसला किया. वहीं दूसरी तरफ बंगाल में जमींदारी व्यवस्था के बोझ तले रह रहें मुसलमानों ने दूसरी जगह जाने के विकल्प को हाथों हाथ लिया था. इस तरह बंगाली बोलने वाले मुसलमानों की एक बड़ी आबादी 1870 के बाद यहां प्रवास के तहत आ गई. बांगला मूल के मुसलमानों का यह प्रव्रजन करीब 1940 तक चलते रहा. ब्रह्मपुत्र के पास बंजर पड़ी जमींन में इन लोगों को बसाया गया था.&quot;</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-49202642?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">एक बड़ी मानवीय त्रासदी की कगार पर है असम?</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-49185265?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">एनआरसी से जुड़ा तनाव लोगों को आत्महत्या के लिए मजबूर कर रहा है?- बीबीसी विशेष</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-49118229?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">असम: नाव पर रहने को मजबूर बाढ़ पीड़ित </a></li> </ul><p>प्रोफ़ेसर मनन के अनुसार बांगला मूल के मुसलमानों ने आजादी के समय से ही असमिया भाषा को अपनी मातृ भाषा के तौर पर स्वीकार कर लिया था. अगर पूर्वी बंगाल से आए मुसलमानों ने असमिया को मातृ भाषा के तौर पर अपना लिया था तो फिर यहां इतना बड़ा टकराव कैसे उत्पन्न हो गया?</p><p>इस सवाल का जवाब देते हुए प्रोफे़सर मनन कहते है, &quot;पहले इन दोनों समुदाय (मूल असमिया और बांग्ला मूल के मुसलमान) के बीच किसी तरह का टकराव नहीं था. लेकिन एक आनुवांशिक समस्या थी क्योंकि बांगला मूल के मुसलमानों की वृद्धि दर अन्य समुदाय के लोगों के मुकाबले थोड़ी अधिक थी.&quot; </p><p>&quot;1961 की जनगणना के समय असम में मुसलमानों की आबादी 24 फीसदी थी जो 2011 की जनगणना में 34 फीसदी हो गई. इस तरह कुछ दशकों के भीतर इनकी जनसंख्या चिंताजनक अनुपात में बढ़ गई. जनसंख्या में वृद्धि की प्रवृत्ति से बाकि समुदाय के लोगों में चिंता उत्पन्न हुई और यही धीरे-धीरे टकराव का कारण बनती गई.&quot;</p><p>प्रोफे़सर मनन कहते है, &quot;धीरे-धीरे 1979 से आरएसएस इस पूरे मामले को उठाने लगी. आरएसएस अलग-अलग तरह से विदेशियों के ख़िलाफ़ भारत में आवाज़ उठा रही थी और बाद में असम में बड़ी तादाद में घुसपैठ का मुद्दा उठाया गया. और इस तरह यह बहुत बड़ा मुद्दा बन गया. इसके बाद असम आंदोलन हुआ और दोनों समुदाय के बीच स्थिति बिगड़ती चली गई.&quot;</p><h1>विवाद के मूल में क्या है?</h1><p>गुवाहाटी के पुलिस आयुक्त की एक जानकारी के अनुसार मियाँ कविता लिखने और इसका समर्थन करने वाले 10 लोगों के खिलाफ़ भारतीय दंड संहिता की धारा 120 (बी), 153 (ए), 187, 295 (बी), 188 और आईटी अधिनियम की धारा 66 के तहत एफ़आईआर दर्ज की गई है. एफ़आईआर में दो गैर मुस्लिम महिलाएं करिश्मा हज़ारिका और बनमल्लिका चौधरी पर भी मियाँ कविता का समर्थन करने के आरोप लगे हैं.</p><p>यह पूरा विवाद मुख्यधारा के &quot;स्वदेशी&quot; असमिया आबादी और राज्य के बंगाल मूल के मुस्लिम समुदाय के बीच है. </p><figure> <img alt="असम में बांग्ला मुसलमान" src="https://c.files.bbci.co.uk/F690/production/_108202136_g7px04nh.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Dilip Sharma/BBC</footer> </figure><p>ऐसे में असमिया हिंदू समुदाय से आने वाली करिश्मा हज़ारिका ने खुद पर दर्ज एफ़आईआर को लेकर बीबीसी से कहा &quot;मेरा मानना है कि असम में रहने वाला हर कोई असमिया है. जहां तक बात मियाँ डायलेक्ट की है तो यह असमिया भाषा का एक हिस्सा है. मियाँ डायलेक्ट में अगर कोई कविता लिखकर अपनी तकलीफ़ बयां करते है तो उसका विरोध नहीं होना चाहिए. इन कविताओं में मियाँ समुदाय की जो रूढ़िवादी सोच है, शिक्षा के क्षेत्र में जो असमानता है और गरीबी है वो बातें ही कही गई है. इसलिए मैं मानती हूं कि यह प्रगतिशील मियाँ कविताएं असमिया साहित्य का हिस्सा हो सकता है. असमिया भाषा की समृद्धी के लिए मियाँ डायलेक्ट हो, टी ट्राइब की बोली हो, राभा उपभाषा हो सभी में कविताएं- कहानियां लिखी जानी चाहिए.&quot;</p><p>अगर सब कुछ असमिया भाषा की समृद्धी के लिए हो रहा है तो आपके ख़िलाफ़ एफआईआर क्यों हुई? </p><p>गुवाहाटी विश्वविद्यालय में असमिया भाषा पर पीएचडी कर रही करिश्मा कहती है, &quot;मेरे ऊपर दो एफआईआर दर्ज हुई है क्योंकि मैंने मियाँ कविता का समर्थन किया है. ग्रेटर असमियां समाज इसके विरोध में नहीं है. केवल वे लोग विरोध में है जो भाषा और साहित्य पर चर्चा नहीं करते. असमिया समुदाय के कई लोगों ने इसका समर्थन भी किया है.&quot;</p><p>क्या आपको भी धमिकियां मिली है? </p><p>इस सवाल का जवाब देते हुए करिश्मा कहती है, &quot;मुझे फेसबुक पर कुछ लोगों ने चेतावनी दी है. लेकिन मेरी दोस्त रेहना को बहुत बुरी तरह से धमकाया -डराया गया है. एक महिला के ख़िलाफ़ लोग इतना बुरा बर्ताव कैसे कर सकते है? बलात्कार करने जैसी बाते कैसे लिख सकते है?&quot;</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-49102424?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">लिंचिंग से चिंतिंत 49 हस्तियों ने लिखी प्रधानमंत्री को चिट्ठी </a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-48823211?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">मॉब लिंचिंग के मामले में झारखंड यूं ही ‘बदनाम’ नहीं है!</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-49187936?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">क्या ‘जय श्री राम’ ना बोलने पर हुई ख़ालिक़ की हत्या?</a></li> </ul><p>तीन साल पहले 67 वर्षीय लेखक डॉ. हाफ़िज़ अहमद ने अपने फेसबुक प्रोफाइल पर ‘आई एम मियाँ’ नामक एक कविता को साझा किया था. हालांकि उस दौरान उन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई लेकिन इस बार जिन 10 मियाँ कवियों के खिलाफ़ एफ़आईआर दर्ज़ हुई है उनमें हाफ़िज़ अहमद का नाम सबसे ऊपर है. </p><p>ऐसे आरोप लग रहें है कि लेखक अहमद से प्रेरित होकर नई पीढ़ी के पढ़े लिखे बंगाली मूल के मुसलमान लड़के-लड़कियां इस तरह की कविताएं लिख रहें है.</p><p>हालांकि रेहाना इन तमाम आरोपों को आधारहीन मानती है. वो कहती है, &quot;मैं जब यही कविताएं असमिया भाषा में लिखती हूं तो कोई विरोध नहीं होता. क्यों हमें मियाँ के नाम पर अपमानित किया जाता है. हम अपनी तकलीफ को बयां भी नहीं कर सकते.&quot;</p><figure> <img alt="असम में बांग्ला मुसलमान" src="https://c.files.bbci.co.uk/144B0/production/_108202138_h0s24pxq.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Dilip Sharma/BBC</footer> </figure><p>इस सवाल के उत्तर में कि क्या इस तरह की धमकियों से डर नहीं लगता, रेहना कहती हैं, &quot;जब मैं बाहर जाती हूं तो मुझे बहुत डर लगता है. मन में इस तरह की बातें आती है कि कोई मुझे फॉलो तो नहीं कर रहा है. कहीं लोग मेरे ऊपर हमला तो नहीं कर देंगे. सबसे ज्यादा डर लिंचिंग से लगता है. अब इस डर के साथ मैं चल रहीं हूं.&quot;</p><p>मियाँ कवियों ने सभी कविताएं मियाँ डायलेक्ट में लिखी है जिनमें असमिया लिपि का उपयोग किया गया है. </p><p>जानेमाने असमिया विद्वान और सार्वजनिक बुद्धिजीवी हिरेन गोहाई ने मियाँ पोएट्री पर एक लेख प्रकाशित कर सवाल खड़े किए कि क्यों नई पीढ़ी के मियाँ कवियों ने अपनी कविताओं को लिखने के लिए असमिया के बजाय अपनी &quot;कृत्रिम&quot; बोली का उपयोग किया. </p><p>हिरेन गोहाई ने यह भी पूछा कि अगर मियाँ कवि वास्तव में अन्याय और अत्याचार के बारे में चिंतित हैं, तो वे धार्मिक कट्टरता के कारण अपने समुदाय में महिलाओं के साथ होने वाले दुर्व्यवहार के बारे में कुछ पंक्तियाँ क्यों नहीं लिखते हैं?</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-44424101?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">असम में दो युवकों की पीट-पीटकर हत्या</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-44946029?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">भारत में मॉब लिंचिंग को ऐसे देख रहा विदेशी मीडिया</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-48783025?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">तबरेज़ को इंसाफ़ दिलाने के लिए देश भर से उठी आवाज़ें</a></li> </ul><figure> <img alt="असम में बांग्ला मुसलमान" src="https://c.files.bbci.co.uk/1018/production/_108202140_wtda3lc9.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Dilip Sharma/BBC</footer> </figure><p>अंग्रेजों ने पूर्वी बंगाल के मुसलमानों को जिस बदहाली में ब्रह्मपुत्र के किनारे लाकर बसाया था आज भी वहां हालात कमोवेश वैसे ही है. </p><p>ब्रह्मपुत्र के बीच निर्मित रेतीले हिस्से जिन्हें असम में चर चापोरी क्षेत्र कहा जाता है वहां की अधिकतर आबादी शुरू से ही मुख्यधारा से कटी हुई रही. </p><p>गरीबी, अशिक्षा और हर साल आने वाली बाढ़ के कारण इन लोगों के जीवन में कोई बदलाव नहीं देखा गया.</p><p>लिहाजा यहां बसे गरीब, दाढ़ी वाले, लुंगी पहने वाले बंगाली भाषी मुस्लिम की पहचान एक मियाँ की तौर पर बनती चली गई. ऐसे में जब एनआरसी की प्रक्रिया शुरू हुई तो इन मुसलमानों के भारतीय नागरिकता से जुड़े कागजातों को लेकर कई तरह के विवाद सामने आए. </p><p>यही मुख्य वजह है कि मियाँ समुदाय में जो थोड़े बहुत पढ़े लिखे लोग है वो अपनी समुदाय की तकलीफों को कविताओं के जरिए से बयां कर रहे है.</p><p>असम में इस महीने 31 अगस्त को एनआरसी की फाइनल लिस्ट जारी होने वाली है. ऐसे में मियाँ पोएट्री के विरोध से दोनों समुदाय के बीच मौजूद कड़वाहट को लेकर चिंता का माहौल है. </p><p>फिलहाल सभी मियाँ कवि जमानत पर बाहर हैं, लेकिन वो डरे हुए हैं. लेकिन उनका कहना है कि वो आगे भी अपनी कविताएं लिखना चाहते है.</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम</a><strong> और </strong><a href="https://www.youtube.com/bbchindi/">यूट्यूब</a><strong> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>

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