।।दक्षा वैदकर।।
जब भी हमसे कोई गलती हो जाती है और बॉस कह देते हैं कि कल से नौकरी पर मत आना, जब हमें पता चलता है कि हमारा नहीं, बल्कि दूसरे साथी का प्रोमोशन हो गया, जब हमें परीक्षा में मन चाहे नंबर नहीं मिल पाते, तब हम तनाव में आ जाते हैं. भगवान को कोसने लगते हैं कि मेरे साथ ऐसा क्यों किया? लेकिन ऐसे वक्त में हमें भगवान को कोसने की बजाय खुद पर संयम रखना चाहिए. आस्था बनाये रखना चाहिए. क्योंकि भगवान की इच्छा सवरेपरि होती है और वे कभी भी लोगों का बुरा नहीं चाहते.
एक नाविक था. वह प्रभु का अनन्य भक्त था. एक बार वह जहाज से बड़ी यात्र पर निकला. एक रात जब उसकी प्रार्थना का वक्त हुआ, तो उसने देखा कि पूरे जहाज में जश्न मन रहा है. वह प्रार्थना करने जहाज से बंधी एक छोटी नाव पर चला गया. थोड़ी ही देर में एक बड़ी लहर आई और उसने नाव को दूर फेंक दिया. देखते ही देखते जोर की लहर उठने लगीं और जहाज उसकी आंखों से ओझल हो गया. सुबह उसने खुद को एक टापू पर पाया. उसने भगवान को धन्यवाद दिया कि वह सुरक्षित है. उसने इधर-उधर देखा. उसे नाव के टुकड़े दिखायी दिये.
उसने सोचा कि पहले खाने की चीज तलाश लूं, फिर नाव की मरम्मत करूंगा. दो घंटे के प्रयास के बाद वह कुछ मछलियां पकड़ पाया. कच्ची मछली वह नहीं खा सकता था इसलिए उसने सोचा की नाव वाली जगह जाकर कुछ जुगाड़ किया जाये. जब वह उस जगह पर पहुंचा, तो उसने देखा कि वो टुकड़े धू-धू कर जल रहे हैं. अब उसे लगा कि वह कभी नाव बना कर लौट नहीं पायेगा, लेकिन उसने फिर भी ईश्वर को धन्यवाद दिया कि कम-से-कम वह जिंदा तो है. उसने आग में मछली भूंज कर खायी और सो गया.
अचानक किसी के हिलाने से उसकी नींद खुली. उसने देखा कि एक जहाज का कप्तान सामने खड़ा है. कप्तान ने उसे बताया कि कल रात बहुत जोर समुद्री तूफान आया. जिसमें एक जहाज डूब गया (जो नाविक से छूट गया था). जब हम देख-खोज कर हार गये और हमें लगा कोई जिंदा नहीं बचा, तब हमें दूर से धुआं दिखायी दिया (नाव के टुकड़ों में लगी आग के कारण) और हम तुम्हें लेने चले आये. नाविक ने फिर प्रभु को धन्यवाद दिया.
बात पते कीः
-जिंदगी में बहुत-सी बातें हमें नुकसानदेह लगती हैं, लेकिन सच तो यह है कि वह सुपरिणाम का हिस्सा होती हैं. इसलिए अपनी आस्था बनाये रखें.
-कुछ भी गलत होने पर गुस्से या तनाव में अपना आपा न खोयें, न ही निराश हों. भगवान पर भरोसा रखें और अपना काम निरंतर जारी रखें.