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पाकिस्तान की एक बहादुर लड़की की कहानी

<figure> <img alt="पाकिस्तानी महिलाएं" src="https://c.files.bbci.co.uk/C016/production/_107547194_f8b36ace-d94a-4996-98a3-45bf39aa98e4.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><p>सालों तक हथियारबंद लोगों ने पाकिस्तान के बलूचिस्तान के एक गाँव में लड़कियों के स्कूल को घेरे रखा था, ताकि लड़कियां डर के कारण स्कूल जाना बंद कर दें. </p><p>लेकिन उन लड़कियों में से एक लड़की अपनी पढ़ाई पूरी करने में कामयाब रही और अब पत्रकार […]

<figure> <img alt="पाकिस्तानी महिलाएं" src="https://c.files.bbci.co.uk/C016/production/_107547194_f8b36ace-d94a-4996-98a3-45bf39aa98e4.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><p>सालों तक हथियारबंद लोगों ने पाकिस्तान के बलूचिस्तान के एक गाँव में लड़कियों के स्कूल को घेरे रखा था, ताकि लड़कियां डर के कारण स्कूल जाना बंद कर दें. </p><p>लेकिन उन लड़कियों में से एक लड़की अपनी पढ़ाई पूरी करने में कामयाब रही और अब पत्रकार बनने की ट्रेनिंग ले रही है. उन्होंने <strong>बीबीसी</strong><strong> संवाददाता शुमाइला </strong><strong>ज़ाफ़री </strong>को अपने संघर्ष की कहानी बताई.</p><p>नईमा ज़हरी पाकिस्तान के क्वेटा के सरदार बहादुर ख़ान महिला विश्विद्यालय में पढ़ी हैं. </p><p>वो बताती हैं, &quot;मैंने अपना सारा बचपन डर में गुज़ारा है. अब भी उस बारे में सोचती हूं तो शरीर में कँपकँपी शुरू हो जाती है.&quot;</p><p>नईमा बलूचिस्तान के खुज़दार ज़िले के एक आदिवासी गांव में पली-बढ़ी हैं. वो बताती हैं कि उनका बचपन उस समय बीता जब उनके इलाक़े में अराजकता चरम पर थी. हर तरफ़ डर और हथियार थे. </p><p>नईमा बताती हैं, &quot;बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे ग़रीब प्रांत है. इसने अलगाववादियों और पाकिस्तानी सेना के बीच लंबे समय से चली आ रही दुश्मनी को सहा है. यहां दूरदराज़ के पहाड़ी गांवों में जीवन कठिन है लेकिन ऐसे माहौल में ख़ास तौर से महिलाएं अधिक समस्याएं झेलती हैं.&quot; </p><p>&quot;मेरा जीवन ग़रीबी में गुज़रा. हम सात बहन-भाई थे. हमारे पिता ने हमें छोड़कर किसी दूसरी औरत से शादी कर ली थी. मेरी माँ पढ़ी-लिखी नहीं थीं. अपनी बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए भी हमें दान के भरोसे रहना पड़ता था. ऐसे में पढ़ाई करना आसान नहीं था. हम खर्च नहीं उठा सकते थे.&quot;</p><p>नईमा के लिए पढ़ाई कर पाना एक संघर्ष था. 10 साल की उम्र तक वो गांव के सरकारी स्कूल में पढ़ी थीं, उसके बाद स्कूल बंद हो गया. </p><p>वो बताती हैं कि 2009 से 2013 तक स्कूल को कुछ स्थानीय अपराधियों ने अपने क़ब्ज़े में ले लिया था. उन्हें क़बायली इलाक़े के प्रमुख का समर्थन प्राप्त था. लड़कियां स्कूल नहीं जा सके, इसके लिए वो प्रवेश द्वार पर पहरा देते थे.</p><p>अपने डर को याद करती हुई नईमा कहती हैं, &quot;स्कूल के आगे छह से आठ लोग हमेशा हथियार लेकर खड़े रहते थे. उनके मुंह नक़ाब से ढ़के रहते थे. मुझे बहुत डर लगता था. मुझे लगता था कि वो मुझे गोली मार देगें.&quot;</p><hr /> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-47811830?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">पाकिस्तान: ‘डांस करने से मना किया तो पत्नी का सिर मुंडवाया'</a></li> <li><a href="http://www.bbc.com/hindi/international/2016/03/160302_pakistan_2oscar_winner_sharmeen_rd?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">दो ऑस्कर जीतने वाली पाकिस्तानी महिला</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-44196819?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">ये हैं मनप्रीत, पाकिस्तान की पहली सिख महिला रिपोर्टर</a></li> </ul><hr /><h3>लड़कियों को स्कूल न भेजना</h3><p>हथियारबंद लोग बच्चों को कभी परेशान नहीं करते थे, लेकिन उनके दो मक़सद थे.</p><p><strong>पहला</strong> लड़कियों को पढ़ाई से दूर रखना और <strong>दूसरा</strong> स्कूल को अपने ठिकाने के रूप में इस्तेमाल करना. </p><p>ये उनका साफ़ संदेश था कि लोग अपनी लड़कियों को स्कूल न भेजें. </p><p>गाँव वालों पर इसका बहुत असर पड़ा था. ऐसे माहौल में सरकारी शिक्षक भी काम करने की हिम्मत नहीं कर पाते थे.</p><p>नईमा और उसके साथ की कुछ लड़कियों का दाख़िला पास के गाँव के एक स्कूल में हो गया था, लेकिन ये बस एक औपचारिकता थी. परिवार वाले पढ़ने के लिए नहीं बल्कि मुफ़्त में मिलने वाले खाना बनाने के तेल के लिए बच्चों को स्कूल भेजते थे. लड़कियां स्कूल में हाज़िरी लगाने के बाद तेल लेकर अपने घर आ जाती थीं. </p><p>नईमा कहती हैं, &quot;हमारे गाँव में ऐसे कई स्कूल थे जो सिर्फ़ काग़ज़ों पर ही मौजूद थे. ऐसे स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति भी की गई थी और वो सरकार से सैलरी भी लेते थे, लेकिन स्कूलों की हालत पूरी तरह से ख़राब थी.&quot;</p><p>बलूचिस्तान की बढ़ती हिंसा में नईमा के दो चाचा एक साल के भीतर मारे गए थे. वो बताती हैं कि वे अचानक ग़ायब हो गए थे और महीनों बाद गोलियों से छलनी उनकी लाश मिली थी. </p><p>&quot;उनकी मौत की ख़बर सुनकर मैं बुरी तरह बिखर गई थी. वे बहुत कम उम्र के थे. मैं लंबे समय तक उनकी मौत के सदमे से बाहर नहीं आ पाई थी.&quot;</p><p>इस हादसे ने नईमा को पढ़ने के लिए प्रेरित किया. माध्यमिक पढ़ाई करने के बाद उन्हें स्कूल जाना रोकना पड़ा था, लेकिन इससे उन्हेंने अपनी पढ़ाई में कोई खलल नहीं पड़ने दी. </p><p>&quot;मेरा परिवार मेरी पढ़ाई का खर्चा नहीं उठा सकते थे और वो गाँव वालों के दबाव में भी थे.&quot;</p><p>वो बताती हैं कि जैसे ही उन्हें बलूचिस्तान के एकलौते महिला कॉलेज के बारे में पता चला, वैसे ही वो अपने घरवालों को इसके लिए राज़ी करने में लग गईं. उनके भाइयों ने उनकी बात नहीं मानी, लेकिन उनके चाचा ने उनके कॉलेज की एक साल की फीस भर दी. उसके बाद नईमा ने स्कॉलरशिप के लिए अपलाई कर दिया, जिससे उनकी पढ़ाई पूरी हो पाई. </p><p>महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव पर नईमा कहती हैं, &quot;महिलाओं को पढ़ने के लिए बाहर जाने की अनुमति नहीं होती है लेकिन जब खेतों में पुरुषों की सहायता करने की बात आती है तो वहां कोई पाबंदी नहीं है. जो घर रहती हैं वो सिलाई कर के आमदनी पैदा करती हैं. लेकिन उनकी कमाई को खर्च करने का अधिकार केवल पुरुषों के पास ही होता है.&quot;</p><figure> <img alt="पाकिस्तानी पुरूष" src="https://c.files.bbci.co.uk/13546/production/_107547197_35d9b3bf-c792-47d2-862d-32bc306d0c12.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><p>नईमा ने घर पर रह कर अपनी पढ़ाई जारी रखी. हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद उनके भाइयों के कारण उनकी पढ़ाई कुछ समय के लिए रुक गई थी, लेकिन चाचाओं की मौत के बाद उन्होंने एक संकल्प लिया. उन्होंने जाना कि मीडिया में बलूचिस्तान के हालात पर चुप्पी है, यह बात उनके ज़ेहन में रह गई.</p><p>इस बारे में वो कहती हैं, &quot;क्या हम बलूचिस्तान के लोग इंसान नहीं हैं? हमारी ज़िंदगियों से किसी को क्यों फ़र्क़ नहीं पड़ता? लोग कब हमारे लिए संवेदनशीलता दिखाना शुरू करेगें?&quot; </p><p>इन्हीं सवालों ने नईमा को पत्रकारिता की तरफ़ मुड़ने के लिए मजबूर किया. </p><p>&quot;मैं पत्रकार इसलिए बनना चाहती हूं ताकि मैं अपने लोगों की कहानी दुनिया को बता सकूं. मैं कभी हार मानने वाली नहीं हूं. मैं हमेशा सच के साथ डट कर खड़ी रहूंगी.&quot;</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम</a><strong> और </strong><a href="https://www.youtube.com/bbchindi/">यूट्यूब</a><strong> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>

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