‘भारत के टेलीविज़न सीरियल पिछले दस सालों से एक जैसे ही हैं और उनमें कोई तब्दीली नहीं आई है.’
ये कहना है ‘शिप ऑफ़ थीसियस’ के निर्देशक आनंद गांधी का, जो एक ज़माने में ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ की पटकथा लिखा करते थे.
एक नए टीवी चैनल ‘ज़िंदगी’ में कुछ पाकिस्तानी सीरियल का प्रसारण हो रहा है.
दर्शकों और टीवी विशेषज्ञों के बीच इन कार्यक्रमों की ख़ासी चर्चा भी हो रही है.
ज़िंदगी चैनल पर दिखाए जा रहे सीरियल जैसे ‘नूरपुर की रानी’, ‘काश मैं तेरी बेटी न होती’, और ‘ज़िंदगी गुलज़ार है’ को लोग काफ़ी पसंद कर रहे हैं.
पर आख़िर इनमें ऐसा क्या ख़ास है जो इन्हें भारतीय डेली सोप्स से अलग बनाता है?
भारतीय सोप बड़े ‘मेलोड्रामैटिक’
टीवी समीक्षक पूनम सक्सेना कहती हैं, "देखिए भारतीय सीरियल काफ़ी मेलोड्रामैटिक होते हैं और छोटी से छोटी बात को बहुत बढ़ा चढ़ा के दिखाया जाता है. ऐसे कार्यक्रमों में किरदार नक़ली और नकारात्मक लगते हैं."
वो कहती हैं, "ऐसे सीरियल में कोई न कोई किरदार ऐसा होता ही है जो परिवार की शांति भंग करने में लगा रहता है. जो कहानी सुनाने का अंदाज़ है उसका भी एक तरह का टेम्प्लेट बन गया है जो सालों से चला आ रहा है."
वहीं पाकिस्तानी कार्यक्रमों की तारीफ़ करते हुए पूनम ने कहा, "इनमें कहानी बयां करने का अंदाज़ बिल्कुल अलग है. इनकी भाषा बड़ी शालीन और वास्तविक है. उनमें कोई मेलोड्रामा नहीं है और वो काफ़ी विश्वसनीय लगते हैं."
लिखाई है अलग
एक ज़माने में ‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ के लेखक रह चुके निर्देशक आनंद गांधी कहते हैं, "हम अपने दर्शकों के साथ जुड़ने के लिए उनकी भावनाओं का सहारा लेते हैं."
वहीँ भारत में दिखाए जा रहे पाकिस्तानी सीरियल ‘ज़िंदगी गुलज़ार है’ की लेखिका उमैरा अहमद कहती हैं, "हम जान बूझ कर भावनाओं को पकड़ने की कोशिश नहीं करते हैं. हम कहानी पर ज़्यादा तवज्जो देते हैं और क्या बात कही जा रही है इस पर हमारा सारा ध्यान रहता है."
पाकिस्तान के सीरियल छोटे भी हैं. ‘ऑन ज़ारा’ सिर्फ़ 19 एपिसोड्स में ख़त्म हो गया और भारतीय डेली सोप साल दर साल खिंचते चले जाते हैं.
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