योग गुरु रामदेव के क़रीबी कहे जाने वाले पत्रकार वेद प्रताप वैदिक की भारत विरोधी संगठन जमात उद दावा के प्रमुख हाफ़िज़ सईद से मुलाक़ात का मुद्दा गर्मा गया है.
सोमवार को ये मामला संसद में भी उठा. इस बारे में शोर-शराबे के बाद राज्य सभा को स्थगित करना पड़ा.
बाद में राज्यसभा सदस्य और वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा, "हाफ़िज़ सईद आतंकवादी हैं. किसी पत्रकार या किसी अन्य के उनसे मिलने से भारत सरकार का कोई लेना-देना नहीं है."
बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने इस मामले में उच्च स्तरीय जांच की मांग की है.
वेद प्रताप वैदिक दो जुलाई को लाहौर में हाफ़िज़ सईद से मिले थे.
भारत कहता रहा है कि जमात उद दावा, लश्करे तैयबा का ही दूसरा नाम है और हाफिज़ सईद 26/11 मुंबई हमलों के कथित मास्टरमाइंड हैं.
राजनितिक प्रतिक्रिया
हालांकि इस मामले पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए भारतीय जनता पार्टी के उपाध्यक्ष मुख़्तार अब्बास नक़वी ने कहा है कि इस मामले में वैदिक ही बताएं कि उनकी मुलाक़ात का मक़सद और मंशा क्या थी.
वहीं समाजवादी पार्टी के पूर्व नेता शाहिद सिद्दकी ने इस मुलाक़ात की निंदा की है. उन्होंने कहा, "वैदिक साहब रामदेव के बेहद क़रीबी समझे जाते हैं और वो जाकर हाफ़िज़ सईद से मिलें और उनको सम्मान दें, ये एक तरह से हाफ़िज़ सईद को मान्यता देना है. हाफ़िज़ सईद ने जिस तरह से आतंकवाद का साथ दिया है, वे भारत-पाकिस्तान सहित पूरी दुनिया, इंसानियत और इस्लाम के लिए ख़तरा हैं."
कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने ट्विटर पर लिखा है, "वेद प्रताप वैदिक हाफ़िज़ सईद से मिले हैं. इस बारे में सोशल मीडिया पर कोई प्रतिक्रिया? क्या वे एनडीए सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर गए थे या फिर प्रधान मंत्री के निजी प्रतिनिधि की तरह?
इससे पहले बीबीसी संवाददाता फ़ैसल मोहम्मद अली से बातचीत में वेद प्रताप वैदिक ने कहा है कि भारत सरकार ही नहीं, ख़ुद उनको भी पहले से इस मुलाक़ात के बारे में कोई जानकारी नहीं थी.
ये पूछे जाने पर कि वे किस मैंडेट के तहत हाफ़िज़ सईद से मिले थे, वैदिक ने कहा, "एक पत्रकार का मैंडेट क्या होता है? एक पत्रकार का काम है कि हर किसी से मिले, उनकी बात सुने और अपनी बात कहे. मैंने दोनों बात की. मैंने हाफ़िज़ सईद की बात भी सुनी और अपनी बात भी खुल कर कही."
वैदिक का कहना है कि ये मुलाक़ात अचानक हुई है और इसमें सरकार की किसी प्रकार की हामी नहीं है.
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