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अधूरी परियोजनाओं की चुनौती

व्यावसायिक, कल्याणकारी उद्देश्यों के बीच संतुलन पर बल दस साल के यूपीए शासन के बाद एनडीए ने अपना पहला रेल बजट पेश किया. बजट में पहली बार बताया गया कि नौ वर्ष में 99 परियोजनाओं का एलान किया गया, लेकिन सिर्फ एक पर काम शुरू हो पाया. यानी 98 परियोजनाएं लंबित हैं. बावजूद इसके रेल […]

व्यावसायिक, कल्याणकारी उद्देश्यों के बीच संतुलन पर बल

दस साल के यूपीए शासन के बाद एनडीए ने अपना पहला रेल बजट पेश किया. बजट में पहली बार बताया गया कि नौ वर्ष में 99 परियोजनाओं का एलान किया गया, लेकिन सिर्फ एक पर काम शुरू हो पाया. यानी 98 परियोजनाएं लंबित हैं. बावजूद इसके रेल मंत्री डीवी सदानंद गौड़ा ने कई परियोजनाओं पर काम शुरू करने की घोषणा की है.

गौड़ा ने देश में बुलेट ट्रेन चलाने का एलान किया, लेकिन यह नहीं बताया कि इसे शुरू कब किया जायेगा. अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्ववाली सरकार के कार्यकाल में शुरू की गयी स्वर्ण चतुभरुज सड़क परियोजना की तर्ज पर डायमंड चतुभरुज रेल नेटवर्क की बात कही गयी है. इसके लिए भी कोई डेडलाइन तय नहीं की गयी है. बहरहाल, रेल बजट में किराया बढ़ाने का कोई प्रस्ताव नहीं किया गया.

रेल मंत्री ने बजट भाषण में व्यावसायिक और कल्याणकारी उद्देश्यों के बीच संतुलन बनाने की जरूरत पर बल दिया. रेल मंत्री सदानंद गौड़ा ने कहा कि भारतीय रेल व्यावहारिक रूप से सभी की ढुलाई करती है. यह किसी भी वस्तु को ना नहीं करती, बशर्ते उसे मालिडब्बे में ढोया जा सकता हो. सबसे महत्वपूर्ण है कि हम रक्षा संगठन की आपूर्ति श्रृंखला की रीढ़ बन कर राष्ट्र की सुरक्षा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

हालांकि, हम प्रतिदिन 2.3 करोड़ यात्रियों को ढोते हैं, लेकिन अभी भी काफी जनता ऐसी है, जिन्होंने अभी तक रेलगाड़ी में पैर नहीं रखा. हम औद्योगिक समूहों को पत्तनों और खदानों से जोड़ते हुए प्रतिवर्ष एक बिलियन टन से अधिक माल यातायात का लदान करते हैं, लेकिन अभी भी कई अंदरूनी भाग रेल संपर्क की प्रतीक्षा कर रहे हैं. यद्यपि विगत वर्षो में माल यातायात व्यापार निरंतर बढ़ रहा है, भारतीय रेल देश में सभी साधनों से ढोये जानेवाले कुल माल यातयात का 31 प्रतिशत को ही ढोती है. ये ऐसी चुनौतियां है, जिनका हमें सामना करना है.

विविध जिम्मेदारियां निभानेवाले ऐसे विशाल संगठन से एक वाणिज्यिक उद्यम के रूप में आमदनी अजिर्त करने के साथ एक कल्याणकारी संगठन के रूप में भी कार्य करने की उम्मीद की जाती है. ये दो कार्य, रेलपथ की दो पटरियों के समान हैं, जो साथ-साथ चलती हैं, कभी मिलती नहीं. भारतीय रेल इन दो विरोधात्मक उद्देश्यों में संतुलन बनाते हुए इस कठिन कार्य को अब तक निभाती रही है.

हम अजिर्त प्रत्येक रुपया में से 94 पैसा परिचालन पर खर्च कर देते हैं. हमारे पास अधिशेष के रूप में छह पैसे ही बचते हैं. यह राशि कम होने के अलावा किरायों में संशोधन न किये जाने के कारण इसमें निरंतर गिरावट आयी है. अनिवार्यत: किये जानेवाले लाभांश व लीज प्रभारों के भुगतान के बाद वर्ष 2007-08 में यह अधिशेष 11,754 करोड़ रुपये था और मौजूदा वर्ष में 602 करोड़ रुपये होने का अनुमान है.

मात्र चालू परियोजनाओं के लिए पांच लाख करोड़ रुपये अर्थात प्रतिवर्ष लगभग 50,000 करोड़ रुपये अपेक्षित हैं. इससे अपेक्षित राशि अधिशेष के रूप में उपलब्ध राशि के बीच भारी अंतर आ जाता है.

परियोजना को पूरा करने पर जोर देने के बजाय स्वीकृति पर ध्यान दिया गया. 30 वर्षो में 1,57,883 करोड़ की 676 में से सिर्फ 317 परियोजनाएं ही पूरी हो सकीं. शेष 359 को पूरा किया जाना बाकी है, जिन्हें पूरा करने के लिए अब 1,82,000 करोड़ रुपये अपेक्षित होंगे.

पिछले 10 वर्षो में 60,000 करोड़ की 99 नयी लाइन परियोजनाएं स्वीकृत हुईं. इसमें आज की तारीख तक मात्र एक ही पूरी हुई. वास्तव में चार परियोजनाएं 30 वर्ष तक पुरानी हैं. वे किसी न किसी कारण से अभी तक पूरी नहीं हुईं.

जितनी अधिक परियोजनाओं को हम इसमें जोड़ देंगे हम उनके लिए उतना ही कम संसाधन मुहैया करा पाएंगे और उनहें पूरा करने में उतना समय भी लगेगा.

यदि यही प्रवृति जारी रखी गयी तो मैं निश्चित तौर पर कह सकता हूं कि और अधिक हजारों करोड़ रूपए खर्च हो जाएंगे और इससे मुश्किल से ही कोई प्रतिफल प्राप्त होगा.

रेलों द्वारा इस प्रकार जुटाए गये इस बहुत ही कम अधिशेष द्वारा संरक्षण, क्षमता बढ़ाने, अवसंरक्षण, यात्रा ी सेवाओं और सुख-सुविधाओं को बेहतर बनाने के लिए कार्यों को वित्तपोषित किया जाता है.

कांग्रेस के नेता और पूर्व रेल मंत्नी पवन बंसल ने रेल बजट की आलोचना की और कहा कि

बनेगा रेलवे विश्वविद्यालय

रेल मंत्री ने तकनीकी और गैर-तकनीकी दोनों विषयों के लिए रेलवे विश्वविद्यालय की स्थापना करने का प्रस्ताव किया. स्नातक स्तर पर रेलवे से संबंधित विषयों को चालू करने और कौशल विकास के लिए तकनीकी संस्थानों के साथ समझौता किया जायेगा. फिलहाल, ग्राउंड लेवल के कर्मचारियों को स्थानीय तकनीकी संस्थानों में इस्तेमाल करके तकनीकी और गैर-तकनीकी किस्म के अल्प अविध के पाठ्यक्र मों के लिए भेजा जायेगा. उच्च रफ्तार, भारी-कर्षण परिचालन आदि जैसे विशिष्ट क्षेत्रों में अनुभव प्राप्त करने के लिए सभी स्तर के कर्मचारियों और अधिकारियों को भारत तथा विदेश में उपयुक्त संस्थानों में भेजा जायेगा. इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट के अंडरग्रेजुएट्स के लिए ग्रीष्मकालीन इंटर्नशिप की व्यवस्था की जायेगी.

सुरक्षा के लिए दूरदृष्टि नहीं

पीके चौबे, अर्थशास्त्री

रेल बजट में एक मार्ग पर बुलेट ट्रेन और कई अन्य रूटों पर हाइ व सेमी हाइ स्पीड ट्रेन चलाने की बात कही गयी है. लेकिन, यात्रियों की सुरक्षा और संरक्षा जैसे अहम मुद्दे पर कोई ठोस कार्ययोजना पेश नहीं की गयी है. दुर्घटनाओं, टक्कर रोकने के लिए इससे पहले के अंतरिम रेल बजट में ट्रेनों में ‘एंटी-कोलीजन डिवाइस’ लगाने की चर्चा थी, लेकिन मौजूदा रेल बजट में यह नहीं बताया गया है कि इसका कार्यान्वयन किस तरह से किया जायेगा. कुछ अहम रूटों की बात छोड़ दें, तो रेलवे को सबसे पहले लाइनों को मजबूत करना होगा. हर बार जो नये प्रयोग होते हैं, दिल्ली-आगरा और मुंबई-अहमदाबाद तक सिमट कर रह जाते हैं. नयी ट्रेनें चलाने से पहले ट्रैक व सिग्नल सिस्टम बेहतर बनाने की जरूरत है. हाई स्पीड ट्रेनें चलाने से पहले ट्रेनों में टक्कर रोधी उपकरण लगाने की जरूरत है.

दुनिया के कई देश इस प्रणाली का इस्तेमाल करते हैं. नीतीश कुमार के रेल मंत्रित्व काल में ‘रेलवे सेफ्टी फंड’ यानी रेल संरक्षा कोष का गठन किया गया था. इसके तहत काफी रकम जुटायी गयी. सिग्नल एवं ट्रैक सिस्टम को आधुनिक बनाया गया. नीतीश के ठीक बाद लालू प्रसाद रेल मंत्री बने. उन्होंने इस फंड को आगे बढ़ाने का काम ज्यादा दिनों तक नहीं किया. दरअसल, ऑपरेटिंग रेशियो अच्छा दिखाने के लिए इसे रोक दिया गया. ऑपरेटिंग रेशियो अच्छा दिखाने का मतबल यह हुआ कि कम लागत में रेलवे ज्यादा आमदनी कर रही है. सबसे बड़ा मुद्दा फंड को ऑपरेट करने का है.

संरक्षा से जुड़े अधिकांश मसलों को आम आदमी ठीक से नहीं समझ पाता है. आम आदमी को अपने गंतव्य तक समय से पहुंचने की चिंता होती है, सेफ्टी को लेकर वह ज्यादा चिंतित नहीं रहता. सेफ्टी की चिंता करने वाला धनाढ्य वर्ग हवाई जहाज से सफर करता है.

(बातचीत : कन्हैया झा)

बीते अंतरिम बजट को छोड़ दें तो पिछले दो-तीन सालों से इस फंड के बारे में रेल बजट में खास कुछ दिख नहीं रहा. ऑपरेटिंग रेशियो अच्छा हो तो ही इस फं ड में रकम का प्रावधान किया जाता है. यह सही नहीं है. दरअसल, भारत सरकार रेलवे को एक कॉमर्शियल ऑर्गेनाइजेशन के तौर पर मानती है, और ऐसा मानना भी चाहिए. इसलिए भारत सरकार रेलवे को जो रकम मुहैया कराती है, उस पर छह फीसदी की दर से डिविडेंड भी लेती है. हालांकि, छह फीसदी डिविडेंड कोई ज्यादा नहीं है. सरकार यदि रेलवे को कल्याणकारी संगठन मान कर चलेगी तो सरकार को खुद अपनी जेब से तमाम तरह के भुगतान करने होंगे.

अहम सवाल यह है कि बुलेट ट्रेन और हाइ स्पीड व सेमी हाइ स्पीड ट्रेन चलाने की केंद्र सरकार की जो योजना है, उसे पटरी पर उतारने के लिए रेलवे बोर्ड व्यावहारिक तौर पर कितना सक्षम हो पायेगी. सरकार की राजनीतिक मंशा तो जाहिर हो चुकी है कि वह लोगों को तेज गति की यात्रा मुहैया कराना चाहती है, लेकिन इस मामले में व्यावहारिक पहलुओं के बारे में अंतिम रूप से रेलवे बोर्ड ही कुछ बता पाने में सक्षम होगा. हालांकि, रेलवे बोर्ड की ओर से कुछ सकारात्मक प्रतिक्रिया मिलने के बाद ही ये घोषणाएं की गयी हैं, इसलिए इन्हें कोरी घोषणाओं के तौर पर देखना अभी जल्दबाजी होगी. सरकार इस मसले को लेकर प्रतिबद्ध है, इसलिए कुछ न कुछ नतीजा जरूर निकलने की उम्मीद है.

सुरक्षा, संरक्षा को मिली अहमियत

वीके अग्निहोत्री, पूर्व सदस्य, रेलवे बोर्ड

रेल बजट पेश करते हुए रेल मंत्री सदानंद गौड़ा ने यात्रा ी सुविधा, सुरक्षा के साथ-साथ बुलेट ट्रेन और कई रूटों पर हाइ स्पीड ट्रेन चलाने की घोषणा की. लेकिन सवाल है कि मौजूदा संसाधनों के भरोसे इसे कैसा पूरा किया जायेगा? मौजूदा रेल लाइनें हाई स्पीड ट्रेन चलाने लायक नहीं हैं. पहले ही रेल पटरियों पर ट्रेनों की बढ़ी संख्या के कारण अतिरिक्त दबाव है. इसे कम करने के लिए अतिरिक्त पटरियां बिछानी होगी. अच्छी बात यह है कि रेल मंत्री ने निजी निवेश की बात कही है. निजी निवेश से रेल परियोजनाओं को पूरा करने सहायता मिलेगी. इस बजट की खास बात यह है कि काफी समय बाद लोकलुभावन घोषणाएं करने से परहेज किया गया है.

रेलवे की सुरक्षा और संरक्षा को लेकर हर बजट में घोषणाएं होती रही है, लेकिन इस पर अमल नहीं हो पाया है. इस बजट में सुरक्षा और संरक्षा को प्राथमिकता देते हुए ट्रेनों में टक्कर रोधी यंत्र लगाने की बात कही गयी है. इस समय यात्रा ी सुविधा बेहतर करने के साथ ही ट्रेनों के परिचालन को दुरुस्त करने की जरूरत है. अच्छी बात है कि बजट में सूचना तकनीक के प्रयोग को बढ़ावा देने की बात कही है. सूचना-तकनीक का इस्तेमाल कर काफी हद तक ट्रेन हादसों को रोका जा सकता है. माली हालत सुधारने के लिए बजट से पहले यात्रा ी और माल भाड़े में वृद्धि कर दी थी. किराया वृद्धि से रेलवे को 8000 करोड़ रुपये मिलने का अनुमान है. रेलवे की चुनौतियों का जिक्र करते हुए रेल मंत्री ने कहा कि पिछले कुछ सालों में रेलवे को काफी नुकसान हुआ है. यह सही है कि लोकलुभावन और राजनीतिक कारणों से लिए गये फैसलों के कारण रेलवे की हालत खराब होती गयी. यही नहीं यात्री सुरक्षा के समक्ष खतरा भी बढ़ा. पिछले 9 सालों में 99 परियोजनाएं घोषित की गयी, लेकिन सिर्फ एक ही पूरी हो पायी.

एक रुपये कमाने के लिए रेलवे 94 पैसे खर्च करता है. लंबित परियोजनाओं को पूरा करने के लिए लगभग दो लाख करोड रुपये चाहिए, जबकि मौजूदा समय में रेलवे के पास इतने संसाधन नहीं है. इसके लिए अगले 10 साल तक रेलवे को सालाना 50 हजार करोड़ रुपये चाहिए.

रेलवे ट्रैकों के रखरखाव, पुराने पुलों की मरम्मत, सिग्नल व्यवस्था को आधुनिक बनाये बिना रेल यात्रा सुरक्षित नहीं हो सकती है. इस बजट में इस पहलू का खास ख्याल रखा गया है. करोड़ों यात्रियों की सुरक्षा से खिलवाड़ नहीं किया जा सकता है. उम्मीद है कि सुरक्षा को लेकर बजट में जो घोषणाएं की गयी है, उसका क्रियान्वयन भी सही तरीके से होगा. मेरा मानना है कि काफी समय बाद रेलवे की सेहत के लिए अच्छा बजट आया है.

रेल बजट बढ़ायेगा मुद्रास्फीति

अभिजीत मुखोपाध्याय, अर्थशास्त्री

इकोनॉमिक रिसर्च फाउंडेशन, नयी दिल्ली

रेल बजट से पहले ही सरकार ने यात्रा ी किराये में 14.2 फीसदी और माल ढुलाई में 6.5 फीसदी की वृद्धि कर जनता पर भारी बोझ डाल दिया था. हालांकि यह निर्णय पिछली सरकार के दौरान ही लिया गया था और इसे 20 मई से लागू होना था. नयी सरकार ने कार्यभार संभालते ही इसे लागू करने में कोई देरी नहीं की. बजट से कुछ दिन पहले ही ऐसा फैसला परंपरा का उल्लंघन है. इससे आनेवाले दिनों में निश्चित रूप से मुद्रास्फीति बढ़ेगी. सदानंद गौड़ा द्वारा पेश रेल बजट में इस संबंध में एक दिलचस्प तथ्य है.

इसमें कहा गया है कि नयी किराया नीति के अनुसार यात्रा ी किरायों में तेल की कीमतों में वृद्धि के हिसाब से बढ़ोतरी होती रहेगी. अभी पेट्रोल की कीमतें बाजार से निर्धारित होती हैं और डीजल कीमतों में हर माह 50 पैसे की वृद्धि होती है. नयी सरकार डीजल की पूर्व-निर्धारित 50 पैसे की और पेट्रोल में 1.69 रुपये की वृद्धि कर चुकी है. इसका अर्थ यह है कि ईंधन की कीमतें बढें़गी. हालांकि, तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में गिरावट की स्थिति में देशी कंपनियां पेट्रोल या डीजल की कीमतें शायद ही कभी कम करती हैं. नयी रेल किराया नीति के अनुसार, टिकटों की कीमत में अक्सर बढ़ोतरी होती रहेगी. आम आदमी के लिए शायद यही ‘अच्छे दिन’ आये हैं! नयी ट्रेनें चलाने जैसी घोषणाओं और अन्य रचनात्मक वादों के अतिरिक्त यह बजट नयी राह की ओर जाने का संकेत है, जिसमें कहा गया है कि परियोजना खर्च के लिए संसाधन सार्वजनिक उपक्रमों की परिसंपत्तियों के एवज में एफडीआइ और निजी क्षेत्र की हिस्सेदारी के द्वारा जुटाये जायेंगे. कई सेवाओं, सुविधाओं को ठेके पर देने की शुरुआत तो प्रसाद के रेल मंत्री रहते हो गयी थी, लेकिन अब विदेशी निवेशकों और बड़े ब्रांडों को आमंत्रित करने का विचार बिल्कुल अनूठा है.

प्रस्तुति : प्रकाश कुमार से

कुछ ही दिन में हम देखेंगे कि छोटे-छोटे स्थानीय दुकानदार गायब हो जायेंगे और उनकी जगह बड़े ब्रांड अपनी चीजें बेचते नजर आयेंगे. विडंबना है कि एक ‘चायवाला’ प्रधानमंत्री के शासनकाल में पांच-पांच रुपये के चाय-समोसे बेचनेवाले रेलवे स्टेशनों से हटा दिये जायेंगे. बस इतनी उम्मीद है कि प्लेटफार्म पर साफ पानी की उपलब्धता कम-से-कम निजी हाथों में नहीं सौंपी जायेगी.

सदानंद गौड़ा ने यह भी कहा है कि रेल 11,790 करोड़ रुपये बाजार से कर्ज लेगी. यह साफ संकेत है कि करोड़ों लोगों के जीवन को सीधे प्रभावित करनेवाले देश के सबसे बड़े यातायात और ढुलाई के व्यवस्था-तंत्र में धन लगाने में सरकार की रुचि नहीं है.

बजट में वाजपेयी के बहुचर्चित स्वर्णिम सड़क योजना की तर्ज पर हीरक उच्च गति रेल सेवा की घोषणा की गयी है. यह तो समय ही बतायेगा कि यह योजना किस तरह आकार लेती है. तकनीक के प्रति नरेंद्र मोदी के आकर्षण का भी प्रभाव बजट पर है जिसमें कहा गया है कि परियोजनाओं के बारे में जानकारियां ऑनलाइन उपलब्ध होंगी.

देश की आम जनता को बड़ी उम्मीद बंधी होगी, जब रेल मंत्री ने चाणक्य के इस उक्ति से अपने बजट भाषण की शुरुआत की- ‘प्रजा की प्रसन्नता में ही शासक की प्रसन्नता निहित है’. लेकिन, बजट के वास्तविक उद्देश्य और दिशा के स्पष्ट होते ही यह उम्मीद टूट गयी होगी और यह आभास हुआ होगा कि ‘अच्छे दिन’ के बजाय कठोर दिन आनेवाले हैं.

नयी लाइन के सर्वेक्षण का प्रस्ताव

कनहनगढ़-पनातूर-कनियुरु, मुगलसराय-भभुआ वाया नौघर-होशियारपुर-अंब-अंदौरा, औरंगाबाद-चालीसगांव, सिंगरौली-घोरावल-लूसा-गब्बूर-बेल्लारी, शिमोगा-श्रींगेरी-मंगलौर, बदोवन-झारग्राम वाया चांडिल-तालगुप्पा-सिद्धपुर, भभुआ-मुंडेश्वरी, जींद-हिसार, गदग- हरफनहल्ली (अद्यतन), उना-हमीरपुर, उज्जैन-झलावाड़-अगार-सुसनेर-सोयठ (अद्यतन), हिसार-नरवाना, सोलापुर-तुलजापुर (अद्यतन), चारधाम केदरानाथ-बद्रीनाथ आदि के लिए रेल संपर्कता, नयागढ़-बांसपानी के बीच लौह अयस्क की खान तक रेल संपर्कता दोहरीकरण (तीसरी लाइन और चौथी लाइन) आमान परिवर्तन और विद्युतीकरण जयपुर कोटा का दोहरीकरण, चांदना फोर्ट नागभीड़ का दोहरीकरण मंगलौर उल्लाल सूरतकल का दोहरीकरण, रेवाडी महेंद्रगढ़ का दोहरीकरण, भुसावल बड़नेरा वर्धा तीसरी लाइन, करजत लोनावला चौथी लाइन इटारसी भुसावल तीसरी लाइन, मेहसाणा तक अहमदाबाद क्षेत्र में मीटर आमान लाइन का आमान परिवर्तन, पीलीभीत शाहजहांपुर का आमान परिवर्तन (अद्यतन).

पोस्ट ऑफिस से भी कटेगा टिकट

रेलवे में निजी निवेश से मिलेगी मजबूती

नयी दिल्ली : भारतीय रेलवे दुनिया की चौथी सबसे बड़ी रेल सेवा है. लोकलुभावन नीतियों की वजह से यहां किराया बहुत कम है. इसकी सेवा विश्वस्तरीय नहीं है. ट्रेनों की स्पीड बहुत कम है. रेलवे का समुचित विकास नहीं हुआ, तो देश की अर्थव्यवस्था भी प्रभावित हुई. हर साल उसे 300 अरब की केंद्रीय सब्सिडी दी जाती है.

केंद्र पर निर्भरता खत्म करने के लिए बड़ी परियोजनाओं के लिए पीपीपी मॉडल शुरू किया जा रहा है. रेलवे मंत्री सदानंद गौड़ा ने मंगलवार को अपना पहला रेल बजट पेश करने के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में ये बातें कहीं. उन्होंने कहा कि ब्रिटिश सरकार के जमाने से भारतीय रेल एक ही ट्रैक पर दौड़ रही है. तब रेलवे नेटवर्क देश की बड़ी औद्योगिक संपत्ति थी और आय के प्रमुख स्रोत में से एक था. लेकिन, आजादी के बाद की सरकारों ने रेलवे के विकास पर ध्यान नहीं दिया और रेलवे दिन-ब-दिन कर्ज में डूबती चली गयी. इसे जल्द से जल्द कर्ज से उबार कर विश्वस्तरीय बनाना है.

गौड़ा को याद आये कौटिल्य

संसद में अपने बजट भाषण के दौरान रेल मंत्री डीवी सदानंद गौड़ा ने जनता को कड़वा घूंट को जायज ठहराने के लिए कौटिल्य के साथ एक और संस्कृत का श्लोक पढ़ा, जो इस प्रकार था :

प्रजासुखे सुखं राज्ञ: प्रजानां च हिते हितम।

नात्मप्रियं हितं राज्ञ: प्रजानां तु प्रियं हितम।

अर्थात, जनता की खुशियों में शासक की खुशी निहित होती है. उनका कल्याण उसका कल्याण होता है. जिस बात से शासक को खुशी होती है, वह उसे ठीक नहीं समङोगा. परंतु जिस बात से जनता खुश होती है, शासक उसे ठीक समङोगा.

गौड़ा ने बजट भाषण के बीच में दूसरा यह श्लोक पढ़ा :

यत्तदग्रे विषिमव परिणामे अमृतोपमम.

अर्थात दवा खाने में तो कड़वी लगती है, लेकिन उसका परिणाम मधुर होता है.

भाषण के अंत में उन्होंने सुविख्यात कन्नड़ कवि, दार्शनिक और लेखक मन्कुटिम्मा को उद्धृत किया, जिसका अर्थ है : ऐसा नहीं कि इस पुस्तक को पढ़ने के बाद कोई शंकाएं नहीं रहेंगी. ऐसा भी नहीं कि आज की हमारी धारणा सदैव कायम रहेगी. यदि कोई कमियों की ओर ध्यान दिलाता है, तो मैं खुले मन से उसमें सुधार कर सकता हूं. परंतु अभी मेरी धारणा है यही सही है.

भूतपूर्व रेल मंत्रियों की नजर में डीवी सदानंद गौड़ा का पहला रेल बजट

नयी परियोजनाओं, नयी रेल लाइन का अभाव दिखता है. इसमें प्रधानमंत्री के गृह प्रदेश गुजरात का ही ध्यान रखा गया है. ‘यह पीपीपी और एफडीआइ बजट है, रेल बजट नहीं है. बजट में गरीबों के लिए कुछ भी नहीं है और केवल अमीरों का ध्यान रखा गया है.

मल्लिकाजरुन खड़गे

कहां-कहां अच्छी ट्रेनें चला सकते हैं, बजट में इसका ज़िक्र नहीं किया गया. पीपीपी का कॉन्सेप्ट यूपीए का था और अब बीजेपी इस ओर आगे बढ़ रही है. कांग्रेस उनका साथ देगी, लेकिन जब कांग्रेस ने ऐसे कदम उठाये थे, तो उन्होंने इसका विरोध किया था.

पवन बंसल

एनडीए सरकार का देश में बुलेट ट्रेन चलाने का विचार अच्छा है, लेकिन पहले रेलवे लाइनों की सुरक्षा को चौक-चौबंद करने की जरूरत है. जब देश में अच्छे ट्रैक ही नहीं होंगे, तो बुलेट ट्रेनें दौड़ेंगी कहां. रेल दुर्घटनाओं को रोकने पर भी ध्यान देने की जरूरत है.

दिनेश त्रिवेदी

बजट में दृष्टि की कमी है. इसमें गरीबों के लिए कुछ नहीं दिया गया है. यह बहुत ही खराब बजट है. इसमें केरल और पश्चिम बंगाल जैसे ढेर सारे राज्यों को छोड़ दिया गया है. इसमें ‘कल्पनाशीलता’ और ‘सामरिक दृष्टि’ का अभाव है.

राहुल गांधी, उपाध्यक्ष, कांग्रेस

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