शरद पवार ने एक बार एक इंटरव्यू में कहा था कि महाराष्ट्र एक ‘कांग्रेस माइंडेड स्टेट’ है.
उन्होंने यह भी कहा था कि महाराष्ट्र के लोग स्वभाव से ही धर्मनिरपेक्ष विचारधारा के होते हैं और उनका बहुत ज़्यादा झुकाव हिंदुत्व की ओर नहीं होता.
इतिहास इसकी गवाही भी देता है. राज्य के अब तक के 17 मुख्यमंत्रियों में से, सिर्फ़ दो ग़ैर कांग्रेसी रहे हैं. लेकिन 14वीं लोकसभा चुनाव परिणाम क्या स्थितियां बदलने की ओर इशारा कर रहे हैं?
लोकसभा चुनावों के आधार पर विधानसभा चुनावों का अनुमान लगाया जाए तो बीजेपी-शिव सेना 288 में से 220 सीटें जीतेंगी.
राज्य में स्थानीय परिस्थितियां भी कांग्रेस के ख़िलाफ़ नज़र आ रही हैं. लोगों में राज्य सरकार के प्रति ग़ुस्सा है.
वैसे स्थानीय निकाय चुनावों में ठीक-ठाक प्रदर्शन करने वाली राज ठाकरे की मनसे शिवसेना-बीजेपी को नुक़सान पहुंचा सकती है.
तो क्या आगामी विधानसभा चुनावों में यह कांग्रेस माइंडेड राज्य अपनी मानसिकता बदल सकता है?
पढ़िए आकार पटेल का पूरा विश्लेषण
अगर हम इतिहास पर नज़र डालें तो पता चलता है कि हमेशा से इस राज्य पर कांग्रेस का दबदबा रहा है.
राज्य के अब तक के 17 मुख्यमंत्रियों में से, सिर्फ़ दो (अगर हम 1978 में शरद पवार की पहली बारी को गिनें तो-तीन) ग़ैर कांग्रेसी रहे हैं.
महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस सिर्फ़ एक बार हारी है- 1995 में, जब बीजेपी-शिवसेना गठबंधन जीता था और उसने पांच साल सरकार चलाई थी.
लेकिन इस साल के अंत में जब राज्य के लोग 13वीं विधानसभा चुनेंगे तो क्या होगा?
हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों को इतिहास की सबसे बड़ी हार मिली है.
लोकसभा की 48 सीटों में से (उत्तर प्रदेश के बाद महाराष्ट्र में सबसे ज़्यादा लोकसभा सीटें हैं) कांग्रेस को सिर्फ़ दो मिली हैं और उसकी सहयोगी एनसीपी को सिर्फ़ चार.
स्थानीय परिस्थितियां
अगर लोकसभा चुनावों के आधार पर विधानसभा चुनावों का अनुमान लगाया जाए तो बीजेपी– शिव सेना 288 में से 220 सीटें जीतेंगी.
क्या देश के सबसे ज़्यादा कांग्रेस समर्थक राज्य में ऐसा परिणाम आना संभव है? आइए हम कुछ स्थानीय स्थितियों पर नज़र डालते हैं.
सबसे बड़ा मुद्दा राज्य सरकार के प्रति लोगों का ग़ुस्सा है. जिस तरह की दिक़्क़तों से यूपीए सरकार ग्रस्त थी कुछ उसी वजह की समस्याएं कांग्रेस-एनसीपी सरकार की है.
विशेषकर मुंबई के रीयल एस्टेट सेक्टर में भ्रष्टाचार इस क़दर व्याप्त है कि मीडिया भी, जिसे बिल्डर बहुत सारे विज्ञापन देकर लाभान्वित करते थे, इसको नज़रअंदाज़ नहीं कर सका.
आदर्श जैसे घोटाले, जो स्थानीय ख़बरें थीं, नेशनल हेडलाइन बन गईं.
साल 2013 में इंस्टीट्यूट ऑफ़ कंपटीटिवनेस ने महाराष्ट्र की अर्थव्यवस्था को गुजरात से भी आगे पहले स्थान पर रखा था.
योगदान
द हिंदू अख़बार में सितंबर, 2013 में छपी एक अन्य रिपोर्ट में भी महाराष्ट्र को गुजरात के मुक़ाबले बेहतर बताया गया था.
इसमें कहा गया कि महाराष्ट्र (12 लाख करोड़) और गुजरात (छह लाख करोड़) दोनों भारत की जीडीपी का 20 फ़ीसदी योगदान देते हैं.
महाराष्ट्र की प्रति व्यक्ति आय 95,339 रुपये थी जबकि गुजरात की 89,668 रुपये.
इन दोनों राज्यों की तेज़ प्रगति की वजह प्राकृतिक संसाधनों और लोगों की उद्यमशीलता का संगम बताई गई थी.
भारत का ज़्यादातर आयात और निर्यात इन दोनों राज्यों के बंदरगाहों से ही होता है.
तो महाराष्ट्र पूरी तरह कुप्रबंधन का शिकार हुआ लेकिन हम कह सकते है कि यह समझा गया कि यह कांग्रेस का कुप्रबंधन था.
खींचतान
कांग्रेस और एनसीपी में लगातार जारी अंदरूनी लड़ाइयों- जिनमें कांग्रेस के मराठा धड़ों और एनसीपी के विभिन्न नेताओं के बीच खींचतान शामिल है, ने सत्तारूढ़ दल को और मुश्किल में डाल दिया.
दूसरी ओर ठाकरे भाइयों के अलग होने जाने की वजह से मुंबई का मराठी वोट बंट गया, हालांकि इससे लोकसभा चुनावों में शिवसेना को कोई नुक़सान नहीं हुआ.
लेकिन यह विधानसभा चुनावों में नुक़सान पहुंचा सकता है, जैसे कि पहले भी स्थानीय निकाय चुनावों में हुआ था जब राज ठाकरे ने 20 फ़ीसदी मत हासिल किए थे.
कुल मिलाकर तीन महीने बाद जब महाराष्ट्र में चुनाव होंगे तो बहुत ज़्यादा बदलाव नहीं होगा.
कांग्रेस अब केंद्र में सत्ता में नहीं है लेकिन राज्य में इसके ख़िलाफ़ हवा बहुत तगड़ी है.
उधर, मोदी सरकार ने अभी तक कोई बड़ी ग़लती नहीं की है और उसका ‘हनीमून पीरियड’ चल रहा है, जो कुछ महीने और जारी रह सकता है.
मुख्यमंत्री
मोदी एक शानदार प्रचारक हैं और शहरी सीटों पर बड़ा फ़र्क़ ला सकते हैं, ख़ासतौर पर मुंबई में जहां बड़ी संख्या में गुजराती रहते हैं.
गोपीनाथ मुंडे की मौत के चलते बीजेपी को कुछ नुक़सान हो सकता है, लेकिन उतना नहीं. बीजेपी और शिवसेना के बीच मुख्य मुद्दा मुख्यमंत्री पद हो सकता है.
लेकिन क्योंकि इस वक़्त बीजेपी में पूरी ताक़त मोदी के पास है इसलिए उन्हें और उद्धव को किसी समझौते पर पहुंचने में कोई मुश्किल नहीं होगी.
कांग्रेस और एनसीपी के लिए भारी हार से बचना बहुत मुश्किल होगा. बीजेपी-शिवसेना को महाराष्ट्र में भी दो-तिहाई मतों के साथ ऐतिहासिक जीत मिल सकती है.
और कांग्रेस जिसने आज़ादी के बाद से महाराष्ट्र में एकछ्त्र राज किया है, यहां भी उसी दयनीय स्थिति में आ सकती है, जिसमें वह लोकसभा में है.
पवार ने महाराष्ट्र के बारे में जो कहा था हो सकता है कि वह पहले सही रहा हो, लेकिन अब यह बदलने वाला है, कम से कम इस चुनाव में.
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