बात 2003 की है. मौसम पतझड़ था. मैं ईरान की राजधानी तेहरान में व्यस्त वली अस्र स्ट्रीट पर घूम रही थी.
सड़क पर गुज़रती कारों के शोर के बीच भी मैं दूर वायलिन पर बज रहे संगीत की मीठी सी धुन को सुन पा रही थी. ये वायलिन सड़क पर एक व्यक्ति बजा रहा था.
ये संगीत इतना सुकून देने वाला था कि पैदल चलने वाले रुक कर उसे सुन रहे थे. कुछ लोग पहले से ही वहां जमा था. मैं भी उधर चल पड़ी.
जैसे ही मैं वायलिन बजाने वाले की तरफ़ बढ़ रही थी, तो मुझे उसके पास जमा भीड़ का अंदाजा होने लगा और वो पूरे ध्यान से उसे सुन रहे थे. उन सबके चेहरों पर मुस्कान थी और आंखों में चमक.
ये नज़ारा अपने आप में अनोखा था क्योंकि ईरान में 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद से संगीत और नृत्य पर सरकारी नियंत्रण के चलते संगीत का इस तरह सार्वजनिक प्रदर्शन आम तौर पर बहुत ही कम देखने को मिलता है.
संगीत के सुर
इस्लामी क्रांति के बाद ईरान में सड़कों पर संगीत के ज़रिए अपना गुज़ारा करने वाले लोग आपको शायद ही कभी देखने को मिलते हों. ये स्थिति तब है जब संगीत हमेशा से फ़ारसी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रहा है.
वर्ष 2004 की गर्मियों में ईरान से भारत आने से पहले मैंने भी ऐसे दृश्य शायद ही कभी देखें हों.
बाद में मेरे दोस्तों ने बताया कि सड़क पर संगीत पेश करने का चलन ‘लगभग ख़त्म हो गया है’.
लेकिन अब कई वर्षों बाद मैं देखती हूं कि यूट्यूब पर ऐसे बहुत से वीडियो अपलोड हो रहे हैं जिनमें ईरानी शहरों में लोग सड़कों पर अपना संगीत पेश कर लोगों का मनोरंजन कर रहे हैं.
अब पता नहीं कि संगीत के सुर मेरे भी गृह नगर में पहुंचे हैं या नहीं. ऐसा लगता है कि तकनीक के दौर में और ख़ासकर सोशल मीडिया आने के बाद दुनिया के बहुत से इलाकों में सामाजिक परिदृश्य बदल रहा है और ईरान भी इसका अपवाद नहीं है.
हुमायूं शाजारियां जैसे जाने-माने कुछ ईरानी संगीतकार घोषणा कर चुके हैं कि वे भी सड़क पर अपना कार्यक्रम पेश करने को तैयार हैं, शायद किसी ख़ास अभियान को समर्थन देने के लिए.
ग़ैर सरकारी संगठन ‘ईरान्स हाउस ऑफ म्यूज़िक’ के प्रमुख हमीदरेजा नूरबख़्श ने मीडिया को बताया कि सड़क पर संगीत यानी स्ट्रीट म्यूज़िक ‘एक नया चलन’ है जिसे प्रोत्साहित किया जाना चाहिए.
स्ट्रीट म्यूज़िक से पहचान
अर्श (असली नाम नहीं) एक बैंड के सदस्य हैं जिसने तेहरान में कई जगह सड़क पर अपने कार्यक्रम दिए हैं. ये बैंड पारंपरिक फारसी संगीत पेश करता है.
अर्श बताते हैं कि स्ट्रीट म्यूज़िक ने उन्हें बहुत पहचान दी है जिसके बाद संगीत उद्योग में उनके कई संपर्क बन गए हैं. वह कहते हैं कि पेशे के तौर पर स्ट्रीट म्यूज़िक ईरान में अभी अपने ‘बाल्यकाल’ से गुजर रहा है और इसे बढ़ावा दिए जाने की जरूरत है. उन्हें विश्वास है कि संगीतकार इस तरह अपना गुज़ारा आराम से चला सकते हैं.
मैंने अर्श से पूछा कि ईरान में सड़क पर संगीत कार्यक्रम पेश करने वाले लोगों की संख्या क्यों बढ़ रही है? उन्होंने बताया, “ईरान में कंसर्ट के लिए अनुमति हासिल करने का काम बहुत ही पेचीदा और लंबा है और इस बहुत खर्च भी आता है. लेकिन सड़क पर संगीत पेश करने के लिए आपको ये सब करने की ज़रूरत नहीं है.”
सड़क पर संगीत पेश करने से जुड़ी समस्याओं के बारे में अर्श कहते हैं कि पश्चिमी संगीत बजाने वालों पर पुलिस की ख़ास नज़र रहती है और उनके साथ दुर्व्यवहार भी होता है, लेकिन जो लोग फारसी संगीत और ख़ास तौर से पारंपरिक संगीत बजाते हैं, उन्हें आम तौर पर किसी तरह दिक्कत नहीं होती है.
ईरानी संगीत को लेकर अपने अनुभव पर अर्श कहते हैं कि ईरानी संगीत के स्वरूपों (दस्तगाह) और भारतीय रागों के बीच काफ़ी समानता है, जो दोनों संस्कृतियों के बीच सदियों पुराने रिश्ते के कारण है. शास्त्रीय संगीत का प्रशंसक होने के नाते उन्हें सितार वादन सुनना बहुत पसंद है और ख़ास तौर से पंडित रवि शंकर का बजाया हुआ.
फेसबुक ‘मुहिम’
अर्श ने हाल ही में एक फेसबुक पन्ना बनाया है जिसका मकसद संगीत को लेकर लोगों में जागरूकता और समर्थन बढ़ाना है. ये पन्ना ईरान मे स्ट्रीट म्यूज़िक को लेकर समाज की बदलती सोच की बात करता है.
कई लोगों को ये विचार पसंद आ रहा है और वे इसे समर्थन भी दे रहे हैं. कई लोग इसे ऐसे कदम के तौर पर देखते हैं जिससे ‘तेहरान की बेजान गलियों और सड़कों में आनंद और ख़ुशी शामिल होगी.’
हालांकि कई लोगों को इस बात पर शक है कि संगीत को आधिकारिक तौर पर सरकार की तरफ़ से समर्थन मिलेगा.
उनकी इस सोच का कारण है देश के राजनीतिक तंत्र की इस्लामी प्रकृति जो नागरिकों के जीवन से जुड़े हर पहलू पर सरकार की कड़ी निगरानी होती है. ईरान में सार्वजनिक तौर पर संगीत या अन्य तरह के कार्यक्रम पेश करने की अनुमति नहीं है.
हालांकि ये ग़ैर कानूनी नहीं है लेकिन पुलिस आम तौर पर ऐसे कार्यक्रम पेश नहीं होने देती है क्योंकि उन्हें ऐसे युवकों के तौर पर देखा जा सकता है पैदल चलने वालों का रास्ता बंद करके पैसा कमाने की कोशिश कर रहे हैं.
इसीलिए कुछ युवा संगीतकार पुलिस की कार देखते ही अपना बोरिया बिस्तर समेटकर भागने लगते हैं, भले उनकी तरफ़ पुलिस ध्यान हो या न हो.
सामाजिक नज़रिया
दूसरा, समाज में भी सड़क पर संगीत कार्यक्रम पेश करने वालों को अच्छी नज़र से नहीं देखा जाता है. लोग समझते हैं कि वे भीख ही तो मांग रहे हैं. ख़ासकर छोटे शहरों में इस तरह की सोच काफी देखने को मिलती है.
भारत की तरह ईरान में लोग और ख़ासकर बड़ी पीढ़ी के लोग यही सोचते हैं कि अच्छा करियर पढ़ाई करके ही बनाया जा सकता है. वहां भी सबकी पसंद बच्चों को डॉक्टर और इंजीनियर बनाना ही है. वे समझते हैं कि संगीत के ज़रिए आप अपना गुजारा नहीं चला सकते हैं.
मुझे याद है कि पुणे विश्वविद्यालय में जहां मैंने पढ़ाई की, वहां कैसे ईरानी छात्र आज़ादी से संगीत बजाते थे. हम सब तब सोचा करते थे कि ईरान में ऐसे दिन कब आएंगे.
और अब लगता है कि वो दिन आ गए हैं- या कम से कम आने वाले हैं.
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