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केन लोच का सिनेमाई समाजवाद
अजित राय संपादक, रंग प्रसंग, एनएसडी ब्रिटिश फिल्मकार केन लोच इस मायने में विश्व सिनेमा के दुर्लभ फिल्मकार हैं कि समाजवाद में उनका विश्वास अब भी कायम है. वे 82 साल की उम्र में भी अपनी नयी फिल्म ‘सॉरी वी मिस्ड यू’ बनाने में जुटे हुए हैं. यह फिल्म ब्रिटेन में जारी आर्थिक तंगी से […]
अजित राय
संपादक, रंग प्रसंग, एनएसडी
ब्रिटिश फिल्मकार केन लोच इस मायने में विश्व सिनेमा के दुर्लभ फिल्मकार हैं कि समाजवाद में उनका विश्वास अब भी कायम है. वे 82 साल की उम्र में भी अपनी नयी फिल्म ‘सॉरी वी मिस्ड यू’ बनाने में जुटे हुए हैं.
यह फिल्म ब्रिटेन में जारी आर्थिक तंगी से जूझ रहे एक परिवार की कहानी है. दो साल पहले उनकी फिल्म ‘आई, डेनियल ब्लेक’ (2016) को कान फिल्म समारोह में बेस्ट फिल्म का अवाॅर्ड ‘पाम डि ओर’ मिला था.
कान फिल्म समारोह में केन लोच ने कहा था- ‘नवउदारवादी आर्थिक नीतियों के कारण दुनियाभर में गरीबों का जीना मुश्किल हो गया है. इस व्यवस्था ने गरीबों को ही उनकी गरीबी का जिम्मेदार मान लिया है. अब हमें यह बात जोर देकर कहना चाहिए कि एक-दूसरी दुनिया संभव है और जरूरी है.’
वे कहते हैं कि यह कैसा अन्याय है कि यदि आपके पास खाने को नहीं है, तो इसे आपका ही गुनाह मान लिया जा रहा है. आज इस दिग्गज फिल्मकार के साहस को सलाम किया जा रहा है. कान फिल्म समारोह के 71 साल के इतिहास में केन लोच को 29 बार आमंत्रित किया जा चुका है.
केन लोच की फिल्म ‘आई, डेनियल ब्लेक’ उनके पसंदीदा लेखक पॉल लावर्टी के उन सच्चे साक्षात्कारों पर आधारित है, जिसमें ब्रिटेन में भूख और गरीबी से तबाह लोगों ने चकित कर देनेवाले सच का खुलासा किया है. जिस ब्रिटिश राज में कभी सूरज नहीं डूबता था, आज वहां लोग भूख, बेरोजगारी और गरीबी से लाचार हैं.
उत्तरी इंग्लैंड के नार्थकैसल का एक बढ़ई मामूली हार्ट अटैक के बाद काम से प्रतिबंधित कर दिया जाता है. उसे सरकार से गुजारा भत्ता भी नहीं मिलता, क्योंकि निर्दयी नौकरशाही मामले को इतना लंबा खींच देती है कि एक दिन वह दम तोड़ देता है. मरने से पहले वह एक कविता लिख जाता है- ‘मुझे कुछ भी नहीं चाहिए था/ मैं बस एक मनुष्य की तरह जीना चाहता था/ क्योंकि मैं कुत्ता नहीं था/ न इससे कुछ कम न ज्यादा.’
फिल्म में दो कहानियां साथ चलती हैं. लंदन की महंगाई से बचने के लिए केटी अपने दो बच्चों के साथ नार्थकैसल आती है, जहां काउंसिल ने उसे एक खस्ताहाल फ्लैट आबंटित किया है. केटी सरकारी रोजगार दफ्तर के चक्कर लगा के थक चुकी है. यहीं ब्लेक से कुछ मुलाकातों में बाप-बेटी का रिश्ता बन जाता है. केटी के दोनों बच्चे उससे घुल-मिल जाते हैं. अपने-अपने दुख को वे मिल-बांटकर जीने की कोशिश करते हैं.
डेनियल ब्लेक के पास न तो कंप्यूटर है, न इंटरनेट, न स्मार्ट फोन. और सरकारी नियमों के कारण हर जगह उससे आॅनलाइन आवेदन करने को कहा जाता है. एक मार्मिक दृश्य में वह किसी तरह सरकारी लाइब्रेरी में इंटरनेट से आवेदन करने की कोशिश करता है. अभ्यास न होने के कारण फाॅर्म भरते हुए जैसे ही वह अंतिम काॅलम तक पहुंचता है कंप्यूटर पर समय समाप्त का नोटिस आता है. उधर फूड बैंक से खाना लेते समय कई दिनों की भूखी केटी वहीं खाने पर टूट पड़ती है और शर्म से रोने लगती है. बच्चों को पालने के लिए वह वेश्यावृति के मुहाने पर पहुंच जाती है.
इंग्लैंड में नियम-कानूनों का हवाला देकर नौकरशाही ने अन्याय को कलात्मक लालफीताशाही का जामा पहना दिया है. अजीब है कि ब्रिटेन में छोटे से छोटे हक दिलाने के लिए वकीलों व कंसल्टेंट की फौज खड़ी हो गयी है.
लोच ने इस कहानी को व्यंग्यात्मक लहजे में गहरी संवेदनशीलता के साथ कहने की कोशिश की है. जाहिर है, ब्रिटिश भद्रलोक को यह सब पसंद नहीं आयेगा. तीसरी दुनिया में गरीबी और भूखमरी को लेकर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बड़ी-बड़ी बातें करनेवाले ब्रिटेन के लिए इस फिल्म को पचा पाना आसान नहीं है.
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