बिना भेद-भाव का काम करने का डंका पीटने वाली उत्तर प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी की सरकार के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने फ़ैज़ाबाद ज़िले का नाम बदलकर ‘अयोध्या’ कर दिया है. इस प्रकार फ़ैज़ाबाद जो अपनी गंगा-जमुनी तहज़ीब के लिए जाना जाता था अतीत में चला गया है.
फ़ैज़ाबाद नवाबों द्वारा बसाया गया शहर था. यह अवध के नवाबों की पहली राजधानी थी जिसमें अयोध्या की भी अपनी शानो-शौक़त थी. दोनों शहर दो संस्कृतियों, स्थापत्य कला, साहित्य, संगीत, परम्परा को समेटे हुए जी रहे थे. किसी को किसी से न कोई शिक़वा थी, न शिकायत. दोनों शहरों की अपनी कहानी थी, अपनी ज़ुबानी थी.
अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्ज़िद जैसी स्थानीय समस्या के अन्तरराष्ट्रीय बन जाने के बावजूद साम्प्रदायिक सौहार्द के प्रतीक के रूप में इन दोनों नगरों की गिनती थी. इक्का-दुक्का घटनाओं को छोड़ दिया जाए तो प्यार मोहब्बत की मिसाल रहे हैं ये शहर.
फ़ैज़ाबाद, राजनीति चिन्तक एवं विचारक आचार्य नरेन्द्र देव और डॉक्टर राममनोहर लोहिया की भूमि रही है. साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर कुंवर नारायण, साहित्यकार और आलोचक डॉक्टर विजय बहादुर सिंह, हिन्दी उर्दू के विद्वान अनवर जलालपुरी, कविता के हस्ताक्षर शलभ श्रीराम सिंह, संगीत और कला के क्षेत्र में ठुमरी गायिका बेग़म अख़्तर, पखावज का अवधी घराना स्थापित करने वाले बाबा पागलदास, उर्दू के शायर मीर अनीस, मीर गुलाम हसन, ख़्वाजा हैदर अली आतिश, पंडित ब्रजनारायण चकबस्त, मजाज़ लखनवी, मेराज़ फ़ैज़ाबादी आदि कितने ही नाम लिए जाएं जो फ़ैज़ाबाद की ही धरोहर हैं. खेल के क्षेत्र में अन्तरराष्ट्रीय मुक्केबाज़ अखिल कुमार भी इसी फ़ैज़ाबाद की धरती पर पैदा हुए.
1857 की क्रांति के दूत मंगल पाण्डेय फ़ैज़ाबाद के थे. बाबा रामचन्द्र का किसान आन्दोलन यहीं शुरू हुआ था. मौलवी अहमदउल्ला शाह उर्फ़ डंका शाह ने अवध के विलय के बाद भी फै़ज़ाबाद को आज़ाद रखा था. देश की आज़ादी के लिए काकोरी केस के अशफ़ाक़ उल्ला खां की शहादत फै़ज़ाबाद जेल में हुई, जहां फांसी के दिन प्रतिवर्ष 19 दिसम्बर को एक बड़ा जलसा होता है.
पत्रकारिता की दुनिया में पत्रकारों एवं कर्मचारियों की सहकारिता के आधार पर फै़ज़ाबाद में एक नया प्रयोग जनमोर्चा 1958 में आरम्भ हुआ था, जो आज भी संचालित हो रहा है जिसके मुख्य संस्थापक महात्मा हरगोविन्द थे.
फै़ज़ाबाद का इतिहास
दिल्ली के शहंशाह के दरबार से अवध का सूबेदार नियुक्त होने के बाद नवाब सआदत अली खां (शासनकाल 1722-1739) ने अयोध्या में ही अपना आशियाना बनाया, जहां से वे शासन प्रबन्ध करते थे.
यह आशियाना सरयू नदी के तट पर और टीलेनुमा ऊंचाई पर था जिसे ‘किला मुबारक’ के नाम से जाना जाता था. उन्होंने अयोध्या के बाहरी इलाक़े में नदी के किनारे एक कच्ची मिट्टी की दीवार की किलेनुमा घेरेबन्दी का अहाता अपने सैनिकों के लिए बनवाया जहां वे स्वयं भी रहने लगे.
यह अहाता और आवासीय परिसर इतना बड़ा था कि इसे ‘बंगला’ की संज्ञा दी गई और इसके आस-पास बसी आबादी ने इस इलाके को ‘बंगला’ नाम से जाना.
अवध के दूसरे नवाब मंसूर अली ‘सफ़दरजंग’ (शासनकाल 1739-1754) ने इसका नाम ‘फै़ज़ाबाद’ रख दिया. इसके पहले इसका नाम बंगला था. अवध के तीसरे नवाब शुजाउद्दौला (शासनकाल 1754-1775) के समय में यह मुकम्मल राजधानी बना. 1764 में बक्सर के युद्ध में हारने के बाद वे वापस फ़ैज़ाबाद लौटे और यहीं स्थायी तौर पर रहने का तय किया. तभी फै़ज़ाबाद में इमारतों का निर्माण और इसे राजधानी के तौर पर विकसित करने का सिलसिला आरम्भ हुआ.
अवध का अपना अलग ही स्थापत्य इन इमारतों में दिखा. जहां दो मछलियां आमने-सामने के जोड़ो में मेहराबों पर दिखती हैं. अवध का शाही निशान ही, आगे चलकर उत्तर प्रदेश का शासकीय चिन्ह भी बना. दो मछलियों से युक्त जिसमें बीच में धनुष का चिन्ह बना हुआ है. यह अवध की पहचान है. यही अवध की पहली राजधानी बनी. अवध के नवाबों ने एक नया नगर, अयोध्या से लगभग 5-6 किलोमीटर की दूरी पर बसाया.
सफदरजंग की मृत्यु के बाद अवध के तीसरे नवाब शुजाउद्दौला ने गद्दी सम्भालने के बाद कई युद्ध लड़े जिसमें विजयश्री हासिल की, लेकिन 1764 में शाह आलम और मीर क़ासिम के हाथों बक्सर के युद्ध में पराजित होने के बाद फ़ैज़ाबाद को ही अपनी राजधानी बना लिया जिसे वो अपने जीवन के अन्तिम समय तक सजाते संवारते रहे. उनका महल फ़ोर्ट कलकत्ता के खंडहर गवाही देते हैं कि यहां कभी बुलन्द इमारत थी. इनके शासनकाल में फै़ज़ाबाद बाहर के लोगों के लिए आकर्षण का केन्द्र बना. साथ ही हाट-बाज़ार, कला, संस्कृति, शिक्षा का भी केन्द्र बना.
गुलाबबाड़ी और बहू बेगम का मक़बरा दो आलीशान इमारतें इतिहास में दर्ज हैं, जो फै़ज़ाबाद की पहचान बन गईं. शुजाउद्दौला की मृत्यु के बाद उनके पुत्र आसिफुद्दौला (शासनकाल 1775-1797 )अवध के नवाब नियुक्त किए गए और अपनी मां बहू बेगम से नाइत्तफ़ाकियों के चलते उन्होंने अपनी राजधानी लखनऊ स्थानान्तरित कर ली और फै़ज़ाबाद के सारे मुहल्ले लखनऊ में बसा दिए जबकि बहू बेगम अन्तिम समय तक फै़ज़ाबाद में ही रहीं. अवध से अब उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ हो गई.
अयोध्या का इतिहास
अयोध्या का ज्ञात इतिहास बौद्धकाल से प्रारम्भ होता है. बौद्धकाल के साहित्य में अयोध्या का नाम प्रायः बहुत कम मिलता है. पाली बौद्ध साहित्य में साकेत और श्रावस्ती के नाम का उल्लेख मिलता है.
साकेत को ही प्राचीन अयोध्या कहा जाता है. यह प्रमुख व्यापारिक केन्द्र और विशाल नगर के रूप में विकसित था. मगध के विकसित होने के बाद काशी और कोसल आपस में विलीन हो गये. बिम्बिसार को मारकर अजातशत्रु ने मगध पर शासन प्रारम्भ किया. इस दौरान अयोध्या उपेक्षित रही.
मौर्यों के उदय के बाद चन्द्रगुप्त मौर्य के समय अयोध्या का महत्व बढ़ा. चीनी यात्राी ह्नेनसांग और फ़ाह्यान ने अपने यात्रा विवरणों में अयोध्या में बौद्ध विहारों की मौजूदगी का उल्लेख किया है. मौर्यों के सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने अपने ही शासक वृहद्रथ की हत्या कर स्वयं को शासक घोषित किया. बौद्ध भिक्षुओं का विनाश करने वाले पुष्यमित्र शुंग ने साकेतनगर को अयोध्या में बदला और स्वयं को चक्रवर्ती राजा घोषित कर अश्वमेध यज्ञ किया, जिसका शिलालेख पाली भाषा में अयोध्या के रानोपाली मंदिर में है.
नवाबों के काल में अयोध्या एक बार फिर से पुष्पित-पल्लवित हुई. हनुमानगढ़ी, जन्मस्थान, रानोपाली का उदासीन मंदिर, नारायणाचारी के मंदिर सहित लगभग एक दर्जन मंदिर और अखाड़ों को नवाबों और स्थानीय मुसलमान ज़मींदारों ने अपनी जागीरें दीं जिनसे मंदिरों की व्यवस्था चलती रहे.
हनुमानगढ़ी नवाबों के राजकोष के धन से बनाया गया. अयोध्या के बारे में पौराणिक कथ्य है कि मनु से इसे बसाया. प्रलय के समय अयोध्या सर्वोच्च ऊंचाई पर था जिसके कारण मनु कश्ती के साथ यहाँ पहुंचे. यह स्थान अत्याधिक ऊंचाई पर था सो कोई इसे जीत नहीं सकता था. इसलिए इसका नाम अयोध्या पड़ा. अयोध्या को अनेक नामों से जाना जाता है. अवध और साकेत इनमें से प्रमुख हैं. कोसल राज्य की दो राजधानियां थीं, उत्तर में अयोध्या और दक्षिण में श्रावस्ती. पुराणों और महाकाव्यों से प्राप्त सूचना के आधार पर इसकी भौगोलिक परिकल्पना करना कठिन है.
(इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं. इसमें शामिल तथ्य और विचार बीबीसी के नहीं हैं और बीबीसी इसकी कोई ज़िम्मेदारी या जवाबदेही नहीं लेती है.)
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