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दाइयों की कमी से मरते हैं अधिक बच्चे

-सेंट्रल डेस्क- दुनिया के ज्यादातर विकासशील देशों में पेशेवर दाइयों की भारी कमी है और इस वजह से भारी संख्या में नवजात बच्चों की मौत हो जाती है. सिर्फ बच्चे ही नहीं, बल्किमांओं के जीवन को भी खतरा होता है. निचले व मध्यम दरजे के आयवाले 73 देशों में सिर्फ चार में पर्याप्त संख्या में […]

-सेंट्रल डेस्क-

दुनिया के ज्यादातर विकासशील देशों में पेशेवर दाइयों की भारी कमी है और इस वजह से भारी संख्या में नवजात बच्चों की मौत हो जाती है. सिर्फ बच्चे ही नहीं, बल्किमांओं के जीवन को भी खतरा होता है. निचले व मध्यम दरजे के आयवाले 73 देशों में सिर्फ चार में पर्याप्त संख्या में दाइयां मौजूद हैं, जो प्रसव के दौरान मदद करती हैं. ये हैं, आर्मेनिया, कोलंबिया, डोमिनिकन रिपब्लिक व जॉर्डन. ये आंकड़े संयुक्त राष्ट्र पॉपुलेशन फंड व विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में सामने आये हैं.

सिजेरियन में कमी संभव

संयुक्त राष्ट्र के जनसंख्या कोष से कार्यकारी निदेशक बाबाटुंडे ओसुटीमेहिन का कहना है, महिलाओं और लड़कियों के मातृत्व और प्रजनन स्वास्थ्य अधिकार बहुत महत्वपूर्ण हैं. उन्हें गर्भधारण और प्रसव के बाद सम्मानजनक स्थिति चाहिए, जो कई देशों में नहीं है. जानकारों का कहना है कि इसका आर्थिक पक्ष भी है. डेस्टिर्कमिसाल तौर पर कहती हैं कि इससे सिजेरियन ऑपरेशन में कमी आ सकती है और तीन दशक में लगभग 13 करोड़ डॉलर बचाये जा सकते हैं. सिर्फ बांग्लादेश में कुछ सुधार होता दिख रहा है, जहां सरकार ने 2010 में 3000 दाइयों को ट्रेनिंग देने की पहल की. हालांकि इसके बाद भी वहां जन्म के दौरान कई बच्चों की मौत हो रही है.

नहीं है प्रशिक्षण की सुविधा

इनमें भारत के अलावा चीन, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और केंद्रीय अफ्रीकी गणराज्य, चाड, ग्वाटेमाला और मेक्सिको जैसे देश शामिल हैं. ज्यादातर देशों में बुनियादी ढांचे की कमी है और कई जगह तो दाइयों को प्रशिक्षण देने की सुविधा भी नहीं है. इस मामले में जरूरी आंकड़े जुटाना अलग चुनौती है.

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