।। अनुराग चतुर्वेदी ।।
(वरिष्ठ पत्रकार)
गोपीनाथ मुंडे ग्रामीण महाराष्ट्र के बहुजन समाज को जाननेवाले, भारतीय जनता पार्टी के एकमेव नेता थे. महाराष्ट्र में पिछड़ी जातियों में मराठों के बाद जो तीन प्रमुख जातियां हैं, उनमें से वनजारी समुदाय के वे ताकतवर नेता थे. वनजारी समुदाय गन्ने की कटाई का परंपरागत कार्य करता है. महाराष्ट्र में पठारी जमीन होेने के कारण जमीन की जोत बड़ी नहीं है.
छोटी जमीन में ही गन्ने की खेती होती है. गन्ने की खेती एक पंक्ति में होती है. पत्ते कटीले होते हैं और गन्नों की दूरी भी ज्यादा नहीं होती है और कटाई के समय धूप भी प्रचुर होती है. यह कठिन काम करनेवाले वनजारी समुदाय का फैलाव पूरे महाराष्ट्र में नहीं है. नासिक, लातूर, उसमानाबाद और मुंबई के पास पालघर में इनकी आबादी है. आबादी सघन है पर इतनी भी नहीं कि चुनाव जीत सके. बीड़ जिले जहां से गोपीनाथ मुंडे चुनाव जीतते थे, वहां मराठों की आबादी ज्यादा है. लेकिन मुंडे अपने चुंबकीय व्यक्तित्व के कारण और पिछड़ों को इकट्ठा कर यह चुनाव जीतते थे.
गोपीनाथ मुंडे की वनजारी जाति महाराष्ट्र की राजनीति में कोई बड़ी ताकतवर जाति नहीं है, न संख्या में और न अतीत के महापुरुषों की परंपरा में. अन्य दो पिछड़ी जातियां जिन्हें गोपीनाथ मुंडे ने अपने सामाजिक इंजीनियरिंग से जोड़ा, वे हैं माली और धनगर समाज. माली समाज के पितृ पुरुष महात्मा फुले और महिला जागृति की ज्योति बा सावित्री फुले हैं, नासिक के छगन भुजबल शिवसेना के जरिये राष्ट्रवादी कांग्रेस में माली समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं.
धनगर समाज में अन्ना साहेब शेणगे एक मान्य और प्रतिष्ठित नेता हुए हैं, लेकिन इन तीनों समुदाय को अपने से जोड़ने के साथ गोपीनाथ मुंडे ने महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा युति, जिसे महायुति कहा जाता है, में कई क्षेत्रीय पिछड़े नेताओं को शामिल किया. शेतकरी संगठन को छोड़कर निर्दलीय सांसद बननेवाले जैन समुदाय के राज शेट्टी को गोपीनाथ मुंडे ने युति का हिस्सा बनाया और वे चुनाव जीते भी. इसी तरह महादेव जानगर को बरामती से चुनाव लड़वा कर शरद पवार के साम्राज्य को चुनौती दी और रामदास अठावले की रिपब्लिकन पार्टी को युति में शामिल किया.
गोपीनाथ मुंडे; शिवसेना और भाजपा के बीच सेतु थे. वे प्रमोद महाजन-बाल ठाकरे की परंपरा को माननेवाले नेता थे. जब भाजपा के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी, राज ठाकरे से दोस्ती बढ़ा रहे थे, तब गोपीनाथ मुंडे के प्रयासों के कारण ही शिवसेना-भाजपा युति टिकी और भाजपा राज ठाकरे के मोहपाश से बच पायी. महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी की हालिया जीत का एक कारण मुंडे का राजनीतिक विवेक भी रहा. गोपीनाथ मुंडे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के जरिये भारतीय जनता पार्टी में आये. वसंत भागवत की पैनी नजर ने उन्हें पहचाना और वसंत भागवत उन्हें भारतीय जनता पार्टी में बहुजन चेहरे के रूप में पेश करना चाहते थे. पर, उनकी पहली-पहली पहचान बनी प्रमोद महाजन की बहन के पति के रूप में.
प्रमोद महाजन भाजपा जैसी ब्राह्मण नेतृत्ववाली पार्टी में सहज और सरल रूप से अपना स्थान पा लिये और बाद में कॉरपोरेट भारत के चहेते भी बन गये; पर गोपीनाथ मुंडे के लिए रास्ता इतना आसान नहीं था और प्रमोद महाजन के मृत्यु के बाद उनके लिए राजनीतिक रास्ता और पथरीला हो गया. नितिन गडकरी, विनोद तावड़े ने उनके खिलाफ काफी रोड़े अटकाये और दो वर्ष पहले तो एक बार उन्होंने भाजपा से पूरी तरह संबंध विच्छेद करने का मन बना लिया था.
उन्होंने केंद्र में खुद को मंत्री बनाने और अपने समर्थकों के लिए दो मंत्री पद महाराष्ट्र सरकार में मांगे थे. कांग्रेस द्वारा आनाकानी करने के बाद वे फिर से भाजपा में ही रहे. भाजपा में अपने शिष्यों देवेंद्र फडणवीस, गिरीश महाजन और अतुल को महत्वपूर्ण पदों पर बिठाने में सफल हुए. लेकिन भारतीय जनता पार्टी को उनके निधन से सबसे बड़ी हानि यह हुई है कि उनके पास पूरे महाराष्ट्र में पिछड़ों और अगड़ों में मान्य ऐसा कोई चेहरा नहीं है, जो पूरे राज्य में मान्य हो और भाजपा को चुनाव जीतने की शक्ति रखता हो.
गोपीनाथ मुंडे ने सबसे बड़ी लड़ाई मराठों के सर्वमान्य नेता और कुशल प्रशासक के रूप में प्रतिष्ठित शरद पवार के खिलाफ लड़ी. उन्होंने मुंबई में बिगड़ती कानून-व्यवस्था के लिए शरद पवार और दाऊद इब्राहिम पर सीधा निशाना ताना. रमेश दुबे किस प्रकार दो अपराधियों को रक्षा मंत्री (तत्कालीन)शरद पवार के जहाज में ले गये, शरद पवार और दाऊद इब्रहिम की कथित समुद्र के मध्य मुलाकात जैसे सनसनीखेज मसलों को उन्होंने सार्वजनिक बहस में तब्दील किया.
शरद पवार का राजनीति रुआब खत्म करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही, पर जब भाजपा-शिवसेना शासन आया, तो वे न तो दाऊद का भारत में प्रत्यार्पण करवा पाये और न शरद पवार के खिलाफ कोई पुख्ता सबूत दे पाये, पर उन्होंने शरद पवार का राजनीतिक इकबाल खत्म कर दिया. भाजपा-शिवसेना शासनकाल में गोपीनाथ मुंडे को गृह और ऊर्जा मंत्रालय दिया गया. इन दोनों मंत्रालयों की बदौलत वे मुंबई और भारत के कॉरपोरेट जगत से परिचित हुए और धीरे-धीरे प्रमोद महाजन के प्रभाव से दूर होकर अपनी अलग छवि भी बनाने लगे. लेकिन शरद पवार ने एक महत्वपूर्ण चाल चल कर गोपीनाथ मुंडे के भाई पंडित अन्ना मुंडे और उनके बेटे धनंजय मुंडे को अपनी पार्टी में शामिल किया और सुरेश धस को मुंडे जी के खिलाफ खड़ा किया.
भाजपा ने भी गोपीनाथ मुंडे के होते हुए भी प्रमोद महाजन की बेटी पूनम को प्रिया दत्त के खिलाफ लड़ाया, जहां शुरू में पूनम महाजन की जीत की संभावना बहुत कम थी. गोपीनाथ मुंडे की विधायक बेटी पंकजा उनकी उत्तराधिकारी बन सकती है, जिस तरह से महाजन परिवार का आपसी कलह से नाश हो गया, लगभग उसी तर्ज पर यह दुर्घटना भी मुंडे परिवार की वंशानुगत राजनीति पर विराम लगा सकती है. महाजन और मुंडे परिवार में पुरुष प्रधान राजनीति नहीं होनेवाली है इसलिए महाराष्ट्र की राजनीति में परिधि पर ही ये दोनों परिवार रहेंगे. इनके केंद्र में रहने की संभावना फिलहाल समाप्त हो गयी है.
गोपीनाथ मुंडे की असामयिक मृत्यु का असर भाजपा पर पड़नेवाला है. अब महाराष्ट्र भाजपा के पास ग्रामीण क्षेत्र में कोई ऐसा चेहरा नहीं है, जिसे भाजपा पेश करके चुनावी मैदान में उतार सकती है. भारी पराजय के कारण कांग्रेस महाराष्ट्र में कमजोर हो चुकी है; वरना उन्हें गोपीनाथ मुंडे की मृत्यु से रिक्त हुए स्थान को भरने में आसानी हो सकती है. तीन दिन पहले ही राष्ट्रवादी पार्टी के नेता शरद पवार ने मुंबई पार्टी कार्यवाहक अध्यक्ष वनजारी समाज के नेता जितेंद्र अव्हाड़ को पृथ्वीराज चव्हाण मंत्रिमंडल में मेडिकल शिक्षा मंत्री बनाया है. राष्ट्रवादी इस समय आंशिक रूप से वनजारी समाज से जुड़ सकता है.
भाजपा के लिए देवेंद्र फडणवीस जैसे ब्राह्मण नेता को तुकबंद के आधार पर मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बनाना जल्दबाजी होगी क्योंकि हाल ही में हुए चुनावों में देश के कई इलाकों में नरेंद्र मोदी का पिछड़े समुदाय से जुड़ना लाभप्रद रहा था. गोपीनाथ मुंडे ने एक दशक पहले से ही भाजपा के ब्राह्मणवादी नेताओं को चुनौती दी थी और उसे एक सीमा तक खत्म भी कर दिया था. महाराष्ट्र भाजपा के सामने असली चुनौती नये नेता में वे सभी गुण खोजने की होगी, जो गोपीनाथ मुंडे में थे.
मुंडे ग्रामीण मन के सहज उपलब्ध होनवाले जनप्रिय नेता थे. उनमें विलास राव देशमुख जैसी गर्मजोशी, प्रमोद महाजन जैसी कर्मठता थी. वे संबंधों को बनाते थे और उन्हें निभाते थे. वे यह भी जानते थे कि भारतीय समाज में जातिगत बंधन बहुत हैं. वे पिछड़े समाज के इकट्ठा करने के कुशल कारीगर थे. वे पहली बार केंद्र की राजनीति में सक्रिय हो फिर से महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री हो सकते थे, पर मृत्यु ने यह सपना तोड़ दिया. भाजपा-शिवसेना में पिछड़े नेतृत्व के वे पहली पंक्ति के नेता थे. उन्हें देश के वंचितों और गरीबों के पक्षधर के रूप में याद किया जायेगा.