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संसद सत्र शुरू यानी जिम्मेवारी शुरू

नयी सरकार बनने के बाद संसद के पहले सत्र का विशेष महत्व होता है. 16वीं लोकसभा के चार जून से शुरू हो रहे पहले सत्र में पहले 4 और 5 जून को नवनिर्वाचित सदस्यों का शपथ ग्रहण होना है. फिर 6 जून को लोकसभा अध्यक्ष का निर्वाचन होगा. सोमवार, 9 जून को महामहिम राष्ट्रपति महोदय […]

नयी सरकार बनने के बाद संसद के पहले सत्र का विशेष महत्व होता है. 16वीं लोकसभा के चार जून से शुरू हो रहे पहले सत्र में पहले 4 और 5 जून को नवनिर्वाचित सदस्यों का शपथ ग्रहण होना है. फिर 6 जून को लोकसभा अध्यक्ष का निर्वाचन होगा. सोमवार, 9 जून को महामहिम राष्ट्रपति महोदय का दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में अभिभाषण होगा. संसद में इस तरह की प्रक्रिया पहले से ही होती आ रही है.

फिर भी 16वीं लोकसभा के पहले सत्र की इस शुरुआत को सिर्फ औपचारिकता कहना बेमानी होगी, क्योंकि इसके बाद संसद काम करने के लिए पूरी तरह तैयार हो जाती है. कोई भी औपचारिकता अच्छी तरह से पूरी हो जाये, तो फिर वह औपचारिकता न रह कर आगे बढ़ने का आधार भी बन सकती है. इस ऐतबार से यह पहला सत्र अच्छी तरह संपन्न होकर बजट सत्र तक के लिए स्थगित हो जाये, तो समङिाए नवनिर्वाचित सरकार के कंधे पर जिम्मेवारियां निभाने का वक्त शुरू हो गया.

तकनीकी दृष्टि से नहीं है विपक्ष

मैं अभी नहीं मानता कि विपक्ष बहुत कमजोर है. अब भी विपक्ष में दो सौ से ज्यादा लोग हैं और अभी संसद में उनकी भूमिका को देखा जाना बाकी है. यह तो आगामी संसद सत्रों के चलने के दौरान ही देखा जा सकता है कि दो सौ सांसदों की शक्ल में यह विपक्ष कमजोर है या मजबूत. लेकिन हां, इतना जरूर है कि संसदीय तकनीकी दृष्टि से विपक्ष का कोई बड़ा नेता नहीं है और न ही कोई बड़ा विपक्षी दल ही है, जिसे प्रमुख विपक्षी दल की मान्यता मिल सके. बड़े से बड़े दल में भी 50 से कम लोग ही हैं, इसलिए लोग यह कह रहे हैं कि अब तो विपक्ष रहा ही नहीं या है भी तो बहुत कमजोर है.

लेकिन मैं ऐसा बिल्कुल नहीं मानता, क्योंकि दो सौ से ज्यादा सांसदों की विपक्षरूपी भूमिका को अभी देखा जाना बाकी है. हां, इतना जरूर होगा कि पिछली लोकसभा की तरह पक्ष-विपक्ष के बीच खींचतान थोड़ी कम होगी, जिससे सरकार को अपना काम करने में कुछ ज्यादा सहूलियत रहेगी.

विपक्ष का मान्यता प्राप्त नेता नहीं

प्रमुख विपक्षी दल और नेता-प्रतिपक्ष के संबंध में जो संवैधानिक व्यवस्था, संसदीय परंपरा और नियम है, उसके आधार पर एक प्रमुख विपक्षी दल के लिए यह जरूरी है कि उसके सदस्यों की संख्या कुल लोकसभा सदस्यों का कम-से-कम दस प्रतिशत हो. तभी उसके नेता को नेता-प्रतिपक्ष के रूप में आधिकारिक मान्यता मिल सकती है. इसके साथ ही उसे केंद्रीय मंत्री की सारी सुविधाएं भी मिल जाती हैं. अब चूंकि कोई प्रमुख विपक्षी दल नहीं है, तो विपक्ष के रूप में कई दल शामिल हैं, जिनके अपने-अपने नेता तो होंगे, लेकिन विपक्ष का कोई नेता नहीं होगा.

विपक्ष के नेता के संबंध में जहां तक सरकार के रुख का सवाल है, यह तो वही बता सकती है कि क्या रुख होगा, लेकिन इतना जरूर है कि इस विपक्ष के खिलाफ जाना संसदीय परंपरा के विरुद्ध होगा. 1952 से लेकर अब तक जब भी प्रमुख विपक्षी दल में 50 से कम सदस्य रहे हैं, तब कोई भी विपक्ष का मान्यता प्राप्त नेता नहीं रहा है.

यूपीए ने की विपक्ष की अनदेखी

मैं समझता हूं कि जो वर्तमान सरकार है, वह विपक्ष को अछूत नहीं समझेगी और उसे साथ लेकर चलना भी चाहिए. आप गौर करें, तो यूपीए शासनकाल में प्रमुख विपक्षी दल भाजपा को अछूत समझा जाता था और उससे कोई राय-मशवरा नहीं लिया जाता था. हालांकि, वह एक मान्यता प्राप्त विपक्ष था. मुझे लगता है कि वर्तमान सरकार ऐसा नहीं करेगी और जो भी प्रमुख मुद्दे होंगे, विपक्ष के नेताओं से बातचीत करके ही सरकार उन पर आगे बढ़ेगी. अगर सचमुच ऐसा होता है, तो मैं समझता हूं कि हम एक मजबूत लोकतांत्रिक देश के एक बेहतरीन शासनकाल में रह रहे हैं.

राष्ट्रपति का अभिभाषण

पहले सत्र में राष्ट्रपति अपने अभिभाषण में सरकार के दृष्टिकोण को संसद के सामने रखते हैं और वह अभिभाषण सरकार के मंत्रिमंडल की ओर से तैयार किया गया होता है. जाहिर है कि इस अभिभाषण की मुख्य बातों में सरकार अपने राष्ट्रीय एजेंडों को स्पष्ट करती है. अब वह क्या होगा, यह तो सरकार ही बता सकती है. फिलहाल राष्ट्रीय मुद्दों के बारे में अभी अपने स्तर से कयास या अनुमान लगाना उचित नहीं होगा. लेकिन अभी तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो बातें कही हैं, उसके मद्देनजर यह कहना ठीक होगा कि वर्तमान सरकार अपने वादों को पूरा करने की पूरी कोशिश करेगी.

म्यूचुअल ब्लैकमेलिंग से मुक्ति

सरकार बने अभी कुछ ही दिन हुए हैं, लेकिन इतने दिन में ही सरकार की जो इच्छाशक्ति नजर आ रही है, अगर वह इसी तरह अपना काम करती रही, तो इसमें जरा भी संदेह नहीं कि यह सरकार विकास को एक नया आयाम देगी. वर्षो बाद ऐसा हुआ है कि पूर्ण बहुमत वाली एक सशक्त और मजबूत सरकार देश में बनी है, इसलिए हमें आशा करनी चाहिए कि 16वीं लोकसभा में ज्यादा से ज्यादा काम होगा. संसदीय इतिहास में 15वीं लोकसभा में सबसे कम कामकाज होने का रिकॉर्ड बना है. इस बार ऐसा नहीं होगा, क्योंकि यह सरकार छोटे-छोटे दलों के गठबंधन से मुक्त है, जो गाहे-ब-गाहे सरकार को ब्लैकमेल करते रहते थे. कभी-कभार सरकार भी उन छोटे दलों को ब्लैकमेल करती थी. इनके बीच संतुलन का अभाव था, जिससे संसद में पक्ष-विपक्ष के बीच खींचतान मची रहती थी. इस प्रकार सरकार और छोटे दलों के बीच म्यूचुअल ब्लैकमेलिंग चलती रहती थी और कामकाज ठप्प हो जाता था. मौजूदा सरकार के सामने ऐसी समस्या है, इसलिए उम्मीद की जा सकती है कि यह सरकार विकास के मामले में सफल होगी और अपेक्षाकृत सुशासन और सुराज देने में कामयाब होगी.

कुछ सुधार बहुत जरूरी

मेरी निजी राय मानें तो इस मजबूत सरकार को अपनी राजनीतिक इच्छाशक्ति का प्रयोग करते हुए राजनीतिक शुद्धिकरण का काम करना चाहिए. बगैर राजनीतिक सुधारों के आर्थिक सुधार भी सफल नहीं हो सकते. इसलिए राजनीति के शुद्धिकरण पर प्राथमिकता के साथ ध्यान देना चाहिए. इसमें भी जो पहला सुधार होना चाहिए, वह है- राजनीतिक दल-व्यवस्था में सुधार और निर्वाचन व्यवस्था में सुधार. अगर ये सुधार जल्दी से जल्दी नहीं किये गये तो पांच साल बाद फिर वही समस्या आयेगी और भ्रष्टाचार और महंगाई के दलदल से बाहर नहीं निकल पायेंगे. एक बात बड़ी अहम यह है कि बिना इन सुधारों के हम उम्मीद भी करें कि भ्रष्टाचार नहीं बढ़ेगा, तो हमारा ऐसा सोचना गलत साबित हो सकता है.

(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)

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