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‘थाने पहुँचे तो सबसे पहले हमारी जात पूछी’

दिव्या आर्य बीबीसी संवाददाता, बदायूँ से "जब हम पुलिस के पास पहुँचे तो सबसे पहले हमारी जात पूछी, जात बताने पर नीचे खड़ा रहने के लिए कह दिया, गंदी-गंदी गालियाँ देकर हमारा मज़ाक़ बनाने लगे. दो घंटे की मिन्नतों के बाद वे चारपाई से उठे. मुझे कई बार उनके पैर छूने पड़े." उत्तर प्रदेश के […]

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'थाने पहुँचे तो सबसे पहले हमारी जात पूछी' 2

"जब हम पुलिस के पास पहुँचे तो सबसे पहले हमारी जात पूछी, जात बताने पर नीचे खड़ा रहने के लिए कह दिया, गंदी-गंदी गालियाँ देकर हमारा मज़ाक़ बनाने लगे. दो घंटे की मिन्नतों के बाद वे चारपाई से उठे. मुझे कई बार उनके पैर छूने पड़े."

उत्तर प्रदेश के बदायूँ ज़िले में गैंगरेप के बाद पेड़ से लटकी मिली दो लड़कियों में से एक के पिता के ये शब्द इस इलाक़े में व्याप्त जातिवाद की तस्वीर है.

बदायूँ के कटरा शहादतपुर गाँव में पुलिस के ख़िलाफ़ भारी ग़ुस्सा है. पीड़ित परिवारों को लगता है कि यदि पुलिस उनकी मदद करती तो उनकी बेटियाँ बच सकती थीं.

पीड़ितों का आरोप है कि अभियुक्त और पुलिसवाले एक ही जाति के थे इसलिए पुलिस ने अभियुक्तों की ही मदद की.

पुलिस का रवैया

वो कहते हैं, "सिपाही सर्वेश यादव ने गाँव जाकर आरोपियों को भगाने में मदद की, लेकिन एक आरोपी को मैंने पकड़ लिया था. पुलिस पूछताछ में उसने क़बूला कि लड़कियाँ उसके घर पर हैं. इसके बावजूद लड़कियों को बरामद करने का प्रयास करने के बजाए सिपाही सर्वेश ने कहा कि दो घंटे बाद तुम्हारी लड़कियाँ मिल जाएंगी."

मृत लड़की के पिता कहते हैं, "दो घंटे बीत गए लेकिन लड़कियाँ नहीं मिली. पुलिस से फिर पूछा तो कहा कि लड़कियाँ नहीं हैं, जाओ जाकर ढूंढो, कहीं पेड़ पर लटकी मिल जाएंगी."

वो आरोप लगाते हैं कि बच्चियों की लाश मिलने के बाद भी पुलिस ने पीड़ित परिवार की कोई मदद नहीं की. वो कहते हैं, "पुलिस ने हमारी मदद करने के बजाए अभियुक्तों की ही मदद की. हमारी बेटियाँ चार बजे तक पेड़ पर लटकी रहीं, उसके बाद ही पुलिस ने हमारी कोई बात सुनी."

पीड़ित परिवार अब मामले की सीबीआई जाँच की माँग कर रहे हैं. लड़की के पिता कहते हैं, "हमें यहाँ की पुलिस पर कोई भरोसा नहीं हैं. हमारी बेटियों के शव पेड़ से लटके रहे और आरोपी खुले घूमते रहे. अब हमें सीबीआई जाँच चाहिए."

जातिवाद

ग्रामीणों का कहना है कि दस हज़ार की आबादी वाले इस गाँव में जाति की अहम भूमिका है. इन परिवारों के पड़ोसी रमेश कहते हैं कि भले ही प्रभावशाली जाति के लोगों की संख्या कम है लेकिन पुलिस और प्रशासन में उनकी जाति की भारी मौजूदगी के कारण वे लोग ताक़तवर हैं.

रमेश कहते हैं, "भले ही कुछ पुलिसवाले निलंबित कर दिए गए हैं लेकिन इससे कुछ नहीं बदलेगा क्योंकि जो नए आएंगे वे भी वैसे ही होंगे. वे भी भेदभाव करेंगे. हमारी जाति के लोग ग़रीब और कम पढ़े-लिखे होने की वजह से ताक़तवर और प्रभावशाली पदों तक नहीं पहुँच पाते हैं."

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