तंबाकू चबाने से मुंह में छाले पड़ जाते हैं, अंदरूनी चमड़ा कठोर हो जाता है, जो भविष्य में गांठ को जन्म देता है. इससे मुंह खोलने में परेशानी होने लगती है. ऐसी स्थिति को ‘ओरल सबम्यूकस फाइब्रोसिस’ कहते हैं. आगे चल कर यही मुंह के कैंसर में बदल जाता है. यह शरीर के अन्य हिस्सों में भी फैल जाता है. यदि शुरुआत में ही इसका उपचार हो, तो इस पर काबू पाया जा सकता है.
दिमाग को जकड़ लेता है निकोटिन
तंबाकू में 4000 केमिकल पाये जाते हैं. इनमें 28 कैंसर का कारण बनते हैं. इनमें सबसे खतरनाक तत्व होता है निकोटिन. वैसे तो कई पौधों में भी यह पाया जाता है, लेकिन तंबाकू में इसकी मात्र काफी अधिक होती है. तंबाकू की सूखी पत्तियों में यह लगभग 0.6 से 3} तक पाया जाता है. निकोटिन की मात्र शरीर में ज्यादा पंहुच जाने के कारण व्यक्ति का बीपी सामान्य से अधिक हो जाता है. यदि व्यक्ति तंबाकू का सेवन नहीं करता है, तो उसे थकान महसूस होने लगती है. तंबाकू का सेवन करते ही शरीर फिर से एक्टिव हो जाता है.
शरीर में निकोटिन की बढ़ती मात्र से दिमाग का संतुलन भी बिगड़ जाता है और वह निकोटिन के सेवन करने पर ही एक्टिव रहता है. इसके लंबे समय तक सेवन से ब्लड वेसेल्स सिकुड़ जाते हंै और ब्रेन स्ट्रोक का खतरा बन जाता है. निकोटिन का अत्यधिक सेवन लिवर के लिए भी काफी खतरनाक है. इससे लिवर सिरोसिस जैसी घातक बिमारी होने का खतरा बढ़ जाता है. यह कैंसर के बाद दूसरी सबसे खतरनाक बीमारी मानी जाती है, जिसका इलाज केवल लिवर ट्रांसप्लांट है. निकोटिन के सेवन से लिवर की कोशिकाओं में ब्लड सरकुलेशन कम होने लगता है, जिससे लिवर के टिशूज खराब हो जाते हैं.
गला व फेफड़े तक फैल जाता है कैंसर
मुंह के कैंसर की कोशिकाएं मिल कर एक ग्रुप बनाती हैं और टय़ूमर का रूप ले लेती हैं. उसके बाद वे वहां से पूरे शरीर में फैलने लगती हैं. इस प्रोसेस को मेटास्टेसिस कहते हैं. इस तरह यह फैल कर गला और फेफड़े में भी कैंसर उत्पन्न कर देती हैं.
वरिष्ठ पेट रोग विशेषज्ञ, फोर्टिस हॉस्पिटल, दिल्ली