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ऑस्ट्रेलिया में क्यों हावी है चीनी छात्रों की नाराज़गी?

ऑस्ट्रेलिया में पढ़ रहे चीन के कई छात्रों की शिकायत है कि विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में चीन का अपमान किया जाता है. उनकी नाराज़गी तिब्बत, ताइवान, हॉन्गकॉन्ग या भारत-चीन सीमा विवाद से जुड़े पढ़ाई के विषयों से है. कुछ मामले इतने बढ़े कि ऑस्ट्रेलिया के विश्वविद्यालयों को माफ़ी तक मांगनी पड़ी है. मेलबर्न की मोनाश […]

ऑस्ट्रेलिया में पढ़ रहे चीन के कई छात्रों की शिकायत है कि विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में चीन का अपमान किया जाता है.

उनकी नाराज़गी तिब्बत, ताइवान, हॉन्गकॉन्ग या भारत-चीन सीमा विवाद से जुड़े पढ़ाई के विषयों से है.

कुछ मामले इतने बढ़े कि ऑस्ट्रेलिया के विश्वविद्यालयों को माफ़ी तक मांगनी पड़ी है.

मेलबर्न की मोनाश यूनिवर्सिटी के चाइनीज़ स्टडीज़ विभाग में लेक्चरर जोनाथन बेनी कहते हैं, "(ऑस्ट्रेलिया के) विश्वविद्यालय चीन के छात्रों और पैसे पर इतना निर्भर होते हैं कि वो माफ़ी मांगना बेहतर समझते हैं. इन घटनाओं का कारण है कि चीन के छात्र सरकारी प्रोपेगेंडा सुनते, देखते हुए बड़े हुए हैं और वो आलोचना के लिए तैयार नहीं होते. लेकिन ऐसे मामले बहुत कम हैं."

खुले बहस के माहौल पर असर?

जानकारों का कहना है कि पिछले सालों में ऑस्ट्रेलिया को मिलने वाली सरकारी आर्थिक मदद में कमी आई है जिस कारण विदेशी छात्रों से मिलने वाली कमाई पर उनकी निर्भरता बढ़ी है.

इससे ऑस्ट्रेलिया में बहस छिड़ गई कि क्या चीन के छात्रों के इस रुख के कारण विश्वविद्यालों में खुले बहस के माहौल पर असर तो नहीं पड़ रहा है?

सिडनी के कार्नीगी इलाके में हम जॉनी और उनकी गर्लफ़्रेंड वियला से मिले.

चीन के मध्यमवर्गीय परिवारों के ये छात्र पिछले दो-ढाई साल से सिडनी के एक नामी विश्वविद्यालय में पढ़ाई कर रहे थे. वियला की अंग्रेज़ी पर पकड़ जॉनी से बेहतर थी.

ताइवान को अलग बताने पर नाराज़गी

वियला की नाराज़गी उनके विश्वविद्यालय में ताइवान के छात्रों के एक गुट से थी.

वियला ने ग्राउंडफ़्लोर पर स्थित एक कमरे के घर के गार्डन में मुझे बताया, "हमारे विश्वविद्यालय को पता होना चाहिए कि ताइवान चीन का हिस्सा है. आप ताइवान के नाम से एक अलग संगठन की स्थापना नहीं कर सकते."

वो कहती हैं, "मैं इससे खुश नहीं हूं. ताइवान के छात्रों का अलग संगठन बनाना विचित्र और विद्वेषपूर्ण है."

जहां चीन ताइवान को अपना हिस्सा बताता है, ताइवान के कई लोग एक आज़ाद देश का समर्थन करते हैं.

वियला अभी मामले पर चुप हैं लेकिन अपनी पढ़ाई खत्म होने के बाद विश्वविद्यालय पर दबाव बनाने के लिए उसे ईमेल लिखेंगी और दूसरे चीनी छात्रों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करेंगी.

वियला के बगल में बैठे जॉनी ने कहा, "पिछले साल मैक्रोइकोनॉमिक्स की क्लास में पढ़ाया गया कि हॉन्गकॉन्ग एक अलग देश है. मैंने अपना हाथ उठाया और कहा कि ये गलत है, ये तो चीन का हिस्सा है. प्रोफ़ेसर ने कहा- हां, चीन और ताइवान चीन का हिस्सा हैं."

अंतरराष्ट्रीय छात्रों पर ऑस्ट्रेलिया की निर्भरता

जोनाथन बेनी के मुताबिक, "कई बार लेक्चरर सही में चीन के बारे में ग़लत बात बात करते हैं. लेकिन ऐसे मामले हुए हैं जहां ताइवान और तिब्बत जैसे विषयों पर ईमानदारी से विचार-विमर्श हुआ है. ऐसे मामलों में चीन के छात्र अपनी बात रखते हैं."

कच्चे लोहे और कोयले के बाद शिक्षा ऑस्ट्रेलिया का तीसरा बड़ा निर्यात है.

आंकड़ों के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय छात्रों के ऑस्ट्रेलिया आने से वहां 130,000 से ज़्यादा नौकरियां पैदा होती हैं और इससे ऑस्ट्रेलिया की अर्थव्यवस्था को 28 अरब डॉलर से ज़्यादा का फ़ायदा होता है.

ऑस्ट्रेलिया सरकार के आंकड़ों के मुताबिक साल 2017 में 1,33,000 से ज़्यादा चीनी छात्रों ने ऑस्ट्रेलिया के विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा में पढ़ाई के लिए अपना नाम लिखवाया.

ये संख्या कुल अंतरराष्ट्रीय छात्रों का 38 प्रतिशत था. संख्या के लिहाज़ से भारतीय छात्र दूसरे स्थान पर थे.

पिछले साल अगस्त में सिडनी टुडे नाम की एक चीनी भाषा की वेबसाइट पर गुप्त रूप से रिकॉर्ड किया गया एक वीडियो प्रकाशित हुआ जिसमें कुछ छात्र एक भारतीय मूल के प्रोफ़ेसर के ताइवान को एक अलग राष्ट्र बताने पर विरोध जता रहे थे.

माफी भी मांगनी पड़ी

वीडियो में एक छात्र कहता है, "आप बार बार ताइवान का नाम ले रहे हैं और उसे एक देश बता रहे हैं. आपकी बातों से हमें असुविधा हो रही है."

इस पर भारतीय मूल के प्रोफ़ेसर की आवाज़ आती है, "मैं जिस जगह से देख रहा हूं, ताइवान एक अलग देश है. अगर आपको बुरा लगता है तो ये आपका विचार है. जिस तरह आप नहीं चाहते कि आपके विचार पर कोई प्रभाव डाले, आपको दूसरों के विचारों पर प्रभाव नहीं डालना चाहिए."

एक अन्य मामले में सिडनी विश्वविद्यालय में भारतीय मूल के एक लेक्चरर ने जब चीन के दावे वाले क्षेत्र को भारत का हिस्सा दिखाया गया, तो विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले चीनी छात्रों के वीचैट अकाउंट पर उसकी तीखी आलोचना की गई.

लेक्चरर को इसके लिए माफ़ी मांगनी पड़ी.

इससे पहले ऑस्ट्रेलियन नेशनल यूनिवर्सिटी के एक शिक्षक को अंग्रेज़ी और चीनी भाषा में नकल के खिलाफ़ एक ‘चेतावनी’ लिखने के लिए माफ़ी मांगनी पड़ी. चीनी भाषा की मीडिया में इसे चीनी छात्रों को निशाना बनाने वाला कदम बताया गया.

मई में मोनाश यूनिवर्सिटी ने एक लेक्चरर को एक किताब में लिखे एक क्विज़ पूछने पर सस्पेंड कर दिया.

क्विज़ में कहा गया था कि चीन के अधिकारी सिर्फ़ उसी वक्त सच बोलते हैं जब वो "नशे में रहते हैं या फिर लापरवाह."

लेक्चरर जोनाथन बेनी कहते हैं, "हमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए जब ऑस्ट्रेलिया आने वाले चीनी छात्र चीन और उसकी कम्युनिस्ट पार्टी का समर्थन करते हैं. उन्हें वही सिखाया गया है. वहां (चीन) की शैक्षिक व्यवस्था में बताया जाता है कि दूसरे देश चीन पर अत्याचार कर रहे हैं और चीन को उनसे खतरा है."

सच्चाई ये है कि कई छात्र चीन की आलोचना बर्दाश्त कर लेते हैं लेकिन सभी छात्र ऐसा नहीं कर पाते.

चीनी दूतावास का असर?

ऑस्ट्रेलिया में पढ़ रहे चीनी छात्रों की कई संस्थाएं हैं. इनमें से चाइनीज़ स्टुडेंट्ज़ ऐंड स्कॉलर्स एसोसिएशन (सीएसएसए) को सबसे महत्वपूर्ण बताया जाता है.

दुनिया के कई विश्वविद्यालयों में सीएसएसए की शाखाएं हैं और वो खुद को गैर-राजनीतिक और गैर-धार्मिक बताती हैं जिनका मकसद सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ाना है.

ऑस्ट्रेलिया की मीडिया में और बाहर भी आरोप लगे हैं कि ये संस्थाएं चीन सरकार के दूतावास के इशारों पर काम करती हैं और दूतावास इन्हें आर्थिक, कानूनी मदद देता है.

ऑस्ट्रेलिया में राजनीतिक शरण लिए हुए चीन के पूर्व राजनयिक चेन यॉंगलिन ने कहा, "जब मैं काउंसेलेट में था और मान लीजिए लोकतंत्र समर्थक कोई आयोजन या सेमिनार कर रहे हैं तो काउंसिल सीएसएसए सदस्यों से वहां जाने के लिए और जानकारी इकट्ठा करने के लिए कहता था, जैसे वहां किसने भाषण दिए, मेज़बान कौन था, इत्यादि."

ये भी आरोप लगे हैं कि संगठनों से जुड़े छात्र साथी छात्रों की गतिविधि पर निगाह भी रखते हैं.

ऑस्ट्रेलिया में विदेश विभाग और व्यापार की प्रमुख फ्रांसेज़ ऐडमसेन ने एक समारोह में कहा था, "हमारे समाज में कोई भी हो, चाहे छात्र हों, राजनेता और या लेक्चरर, उनको चुप कराना हमारे मूल्यों का अपमान है. ज़बरदस्ती चुप करवाना शैक्षिक आज़ादी के खिलाफ़ है."

‘नागरिकता हासिल करना मक़सद’

ऑस्ट्रेलिया के शिक्षा मंत्री साइमन बर्मिंघम ने बीबीसी से बातचीत में उम्मीद जताई कि दूसरे देश ऑस्ट्रेलिया में पढ़ने वाले छात्रों की आज़ादी, विश्वविद्यालय जाकर गतिविधि, बातचीत की आज़ादी का सम्मान करेंगे.

जहां सीएसएसए ने इस विषय पर बात करने से मना कर दिया, चीनी दूतावास ने भेजे सवालों का जवाब नहीं दिया, लेकिन ऑस्ट्रेलिया की मीडिया में छपी रिपोर्टों के मुताबिक दूतावास के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इन आरोपों से इनकार किया और कहा कि दूतावास के थोड़े से अधिकारी हज़ारों छात्रों को कैसे काबू में रख सकते हैं.

ऑस्ट्रेलिया में पढ़ने वाले चीन के छात्र ज़्यादातर कॉमर्स और बिज़नेस की पढ़ाई करने आते हैं.

कई छात्र पढ़ाई के बाद वापस चीन चले जाते हैं. ऐसा भी होता है कि ऑस्ट्रेलिया में भारी पैसा खर्च करने के बावजूद वापस चीन जाने के बाद छात्रों को नौकरी नहीं मिलती.

चेन यांगलिन के मुताबिक बीज़िंग में तियानानमन स्क्वेयर घटना के बाद करीब 40 हज़ारों छात्रों को ऑस्ट्रेलिया में रहने की अनुमति मिली थी.

वो कहते हैं, "यहां आने वाले चीनी छात्रों की बड़ी संख्या नागरिकता हासिल करने के लिए आती है. अगर वो सही में अच्छी शिक्षा चाहते तो वो अमरीका, ब्रिटेन, फ़्रांस या जर्मनी के टॉप विश्वविद्यालय जाते."

ऑस्ट्रेलिया में चीन के छात्रों पर बहस के कारण उनके खिलाफ़ हिंसा, उन्हें परेशान करने की घटनाएं भी हुई हैं.

हाल ही की एक घटना कैनबरा में हुई तीन चीनी छात्र घायल हो गए.

मेलबर्न में रह रहे जॉनी चैंग ने बताया, "एक बार में अपनी कार में जा रहा था तो कुछ लड़कों ने मुझे गाली दी. मुझे लगा कि वो किस निचले तबके से या गरीब घर से होंगे. लोगों को अपनी आंखें खोलकर रखनी चाहिए. दुनिया बदल चुकी है."

जॉनी की गर्लफ़्रेंड वियला ने कहा, "मैं अपने माता-पिता से इस बारे में कुछ नहीं बताती हूं. अगर उन्हें पता चलेगा तो उन्हें बहुत चिंता होगी लेकिन मुझे पता है कि अपनी सुरक्षा कैसे की जाए."

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