गरमी आते ही ठंडे पानी की जरूरत होने लगती है. ऐसे में फ्रीज और वाटर कूलर की मांग बढ़ जाती है. इनसे हमें आसानी से ठंडा पानी मिल जाता है. जब बिजली चली जाये तब क्या? तब याद आता है हमारा मिट्टी का मटका. मटके का पानी न सिर्फ ठंडा होता है, बल्कि इसके पानी में मिट्टी की सोंधी-सोंधी खुशबू भी आती है. यह गांव और प्रकृति की याद दिलाता है. क्या तुमने कभी सोचा है कि आखिर मटके में पानी ठंडा क्यों रहता है? चलो, हम तुम्हें बताते हैं.
दरअसल, मिट्टी के बने मटके में सूक्ष्म छिद्र होते हैं. ये छिद्र इतने सूक्ष्म होते हैं कि इन्हें नंगी आंखों से नहीं देखा जा सकता. इन्हें देखने के लिए सूक्ष्मदर्शी की जरूरत होती है. पानी का ठंडा होना वाष्पीकरण की क्रिया पर निर्भर करता है. जितना ज्यादा वाष्पीकरण होगा, उतना ही ज्यादा पानी भी ठंडा होगा. इन सूक्ष्म छिद्रों द्वारा मटके का पानी बाहर निकलता रहता है. गरमी के कारण पानी वाष्प बन कर उड़ जाता है. वाष्प बनने के लिए गरमी यह मटके के पानी से लेता है. इस पूरी प्रक्रिया में मटके का तापमान कम हो जाता है और पानी ठंडा रहता है. गरमी के मौसम में जलवाष्प कम होते हैं. अत: वाष्पीकरण की प्रक्रिया इस मौसम में ज्यादा होती है. बरसात में वातावरण में जलवाष्प ज्यादा होने के कारण यह प्रक्रिया निम्नतम स्तर पर होती है.
यह पूरी प्रक्रिया बिल्कुल वैसी ही है, जैसे पसीना आने पर हम पंखे या कूलर के पास बैठते हैं, तो हमें ठंडक महसूस होती है. वाष्पीकरण की यह प्रक्रिया लोहा, कांसा, स्टील, तांबे आदि बरतनों में नहीं होती क्योंकि उनमें मटके की तरह छिद्र नहीं होते. वाष्पीकरण की प्रक्रिया न होने के कारण इन बरतनों में पानी ठंडा नहीं हो पाता. पुराने मटके में पानी अपेक्षाकृत कम ठंडा होता है. इसका कारण समय के साथ मटके के छिद्रों का भर जाना है. इससे मटके के सूक्ष्म छिद्रों से पानी बाहर नहीं निकल पाता और पानी ठंडा होना बंद हो जाता है.
लेख : पवन चौहान